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Sunday, November 24

धार्मिक वैमनस्य का पोषण आखिर क्यों ?

अपनी बात : संजय आचार्य वरुण

पिछले कुछ समय से कोई विवादित बयान देकर हाथोंहाथ देश भर की मीडिया में छा जाने का तरीका अनेक छुटभैये नेताओं को रास आ गया है।अपनी टी आर पी बढ़ाने का इससे बेहतर शॉर्टकट दूसरा नहीं हो सकता। क्या होगा, दो चार एफआईआर दर्ज हो जाएंगी, एक दो मुकदमे हो जाएंगे, राष्ट्रीय स्तर पर पहचान तो मिलेगी। सौदा महंगा नहीं है। ऐसे लोग अपने राजनीतिक करियर की खातिर देश का सौन्दर्य नष्ट कर रहे हैं। ऐसे नेता चाहे किसी भी धर्म अथवा पार्टी के क्यों न हो, ये अपने राजनीतिक लाभ के लिए दूसरे धर्मों को बुरा बताकर अपने ही धर्म की छवि खराब करते हैं। धर्म विनम्रता सिखाता है। किसी का अपमान करना, निन्दा करना धर्म की परिधि में नहीं आता। पिछले कुछ वर्षों से कहा जा रहा है कि हम असहिष्णुता के दौर में जी रहे हैं। दरअस्ल, हम असहिष्णुता के ही नहीं बल्कि उन्मादी कट्टरता के दौर में भी जी रहे हैं। यह सम्पूर्ण मानवता के लिए शुभ संकेत नहीं हैं। हम लोग इतने मोटिवेशनल विचारकों को पढ़ते- सुनते हैं। उन सबमें एक ही मूल बात होती है कि – नकारात्मकता का त्याग कीजिए और सकारात्मक बनिए। किसी को बुरा बताना, किसी की बुराइयां खोजना, किसी का अपमान करना, किसी के जीवन की अथवा इतिहास की नकारात्मक बातों को ढूंढ ढूंढ कर सामने लाना, ये सभी नकारात्मक प्रवृतियां हैं। इनसे हम कुछ भी प्राप्त नहीं कर सकते। मेरा एक शे’र है –
नुक्स लोगों में ढूंढने की बजाय
ख़ुद को अब और निखारा जाए
विवेकानंद महान बने, कालजयी बने। वे दूसरों की विचारधाराओं का काट करके, विवादित बयान देकर के, किसी की निन्दा करके, इतिहास में दर्ज लोगों की मुख़ालफ़त करके महान नहीं बने। व्यक्ति महान और सम्माननीय बनता है अपनी सकारात्मकता से। ऐसा नहीं बनें कि लोग आपके नाम से भी घृणा करें। ऐसे बनें कि आपके नहीं रहने के सैकडों वर्षों बाद भी लोग आपका अनुकरण करें और आपको श्रद्धा से याद करें। किसी को बुरा बताकर हम कभी भी स्वयं को श्रेष्ठ सिद्ध नहीं कर पाएंगे लेकिन किसी की अच्छी बातों का जिक्र करके हम जरूर श्रेष्ठ हो सकते। संसार में बुराई बहुत है और अच्छाइयां भी बहुत है, हमें बुराई क्यों देखनी है ? कचरे को हमेशा हटाया और छुपाया जाता है, उसे हवा में उछाला नहीं जाता। नकारात्मक और बुरे विचार भी कचरा ही हैं, इनका निस्तारण कीजिए, हवा में उछालिए मत। कचरे से पर्यावरण दूषित होता है और नकारात्मक विचारों से देश का वातावरण।सभी धर्म सम्मान योग्य होते हैं। आप सबका सम्मान करेंगे तो आपको भी सबसे स्नेह और सम्मान मिलेगा। नफ़रत की चिंगारी कहीं दिखे तो उसे पैर से मसल दीजिए। प्रेम और सद्भाव की गुलाल उड़ाइए। ये भारत देश ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ अर्थात पूरी धरती को एक परिवार मानने वाला देश है, इस भारत भूमि पर जन्म लेने के कारण हर धर्म और मजहब के हर व्यक्ति की ये जिम्मेदारी बनती है कि वो भारत की मूल संस्कृति की रक्षा करे।

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