संजय आचार्य वरुण
गत 4 नवम्बर 2022 को बीकानेर की महपौर श्रीमती सुशीला कंवर राजपुरोहित ने सर्किट हाउस, बीकानेर में एक प्रेस वार्ता का आयोजन किया। यह प्रेस वार्ता महपौर और नगर निगम आयुक्त गोपाल राम बिरड़ा के बीच चल रही रस्साकशी का परिणाम थी। महपौर और आयुक्त का ये विवाद 22 अप्रेल 2022 को आयुक्त की नियुक्ति के साथ ही आरम्भ हो गया था। महपौर सुशीला कंवर के अनुसार आयुक्त गोपाल राम बिरड़ा प्रदेश के शिक्षा मंत्री डॉ. बी. डी. कल्ला की शह पर नगर निगम बीकानेर की कार्य व्यवस्था को बिगाड़ने में लगे हुए हैं। महापौर का आरोप है कि आयुक्त न केवल अपने पद के अधिकारों का अतिक्रमण करते हैं बल्कि महापौर के अधिकारों का उल्लंघन भी करते हैं। महापौर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में अपनी बात रखते हुए न केवल आयुक्त को खींचा, साथ ही चालीस साल से राजनीति करने वाले डॉ. बी. डी. कल्ला पर भी शहर के विकास में बाधक बनने के आरोप लगाए। हालांकि राजनीति में ऐसे घटनाक्रम कई बार देखने को मिलते रहते हैं लेकिन सोचने की बात ये है कि पार्टियों की राजनीति में जिम्मेदार पदों पर बैठे लोग शहर के विकास और आम जनता के हितों को भी दांव पर कैसे लगा देते हैं। इस पूरे प्रकरण में आयुक्त, महापौर और मंत्री जी में से कौन सही है, कौन गलत है, ये तो एक अलग मसला है लेकिन इस विवाद की सजा भुगतनी पड़ रही है शहर की जनता को। बिड़दा को शहर की जनता ने नहीं चुना लेकिन मंत्री जी और महापौर जी को इसी शहर की जनता ने वोट देकर चुना है। इसलिए वे दोनों ही बीकानेर की जनता के प्रति जवाबदेह हैं।श्रीमती सुशीला कंवर ने प्रेस के सामने विस्तार से अपना पक्ष रख दिया है, अब गेन्द मंत्री जी के पाले में है। महपौर ने मंत्री जी पर आयुक्त को शह देने और उनका ट्रांसफर न होने देने के जो गंभीर आरोप लगाए हैं, उस पर मंत्रीजी की ओर से कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है। प्रेस वार्ता में महापौर ने बहुत ही स्पष्ट शब्दों में आयुक्त द्वारा एक महिला होते हुए भी उनका सम्मान नहीं करने की बात कही। अगर महपौर के आरोप निराधार हैं तो आयुक्त महोदय को उनका खंडन करना चाहिए। महपौर ने बताया कि इस सम्बन्ध में वे पहले धरना लगा चुकी हैं, सम्बन्धित उच्च अधिकारियों को पूरी स्थिति बता चुकी हैं लेकिन अब तक नतीजा शून्य रहा है।
मामला जो भी हो, राज्य सरकार को इसका समाधान निकालना ही चाहिए क्योंकि नुकसान तो शहर और जनता का हो रहा है। निगम राजनीतिक अखाड़ा बन जाए और शहर के लोग अपने कामों के लिए परेशान होते रहें, यह ठीक नहीं। राजनीति करना अच्छी बात है लेकिन कुछ स्थानों को चुनावों के बाद राजनीति से मुक्त कर देना चाहिए। अधिकारी हों अथवा जनप्रतिनिधि, दोनों ही जनसेवक होते हैं। उन्हें अपने कर्तव्य का पालन उचित ढंग से करना चाहिए। वे अपने दायित्वों को किस तरह निभा रहे हैं, यह निगरानी करना और विशेष परिस्थितियों में तुरंत हस्तक्षेप कर समस्याओं का समाधान करना सरकार की ड्यूटी है। सबको यह देखना चाहिए कि आखिर जनता का क्या दोष है, नेताओं और अधिकारियों के आपसी विवादों का दंड नागरिकों और शहर को क्यों मिले।