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Thursday, September 19

क्यों भीम ने रखा था निर्जला एकादशी का व्रत

अभिनव न्यूज, नेटवर्क।  निर्जला एकदाशी का व्रत करने से व्यक्ति को पुण्य और मोक्ष की प्राप्ति होती है। भीम ने अपने जीवन में केवल एकमात्र जो व्रत किया था वह निर्जला एकादशी का ही था। निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। आइए जानें, निर्जला एकादशी का महात्म्य।

व्यास मुनि के पास जाकर भीमसेन ने पुकार की कि मेरी पूज्य माता कुन्ती व पूज्य भ्राता युधिष्ठिर तथा अर्जुन, नकुल, सहदेव, द्रौपदी सहित सभी एकादशी का व्रत करते हैं और मुझे भी शिक्षा देते हैं-तू अन्न मत खा, नहीं तो नरक में जाएगा। आप बताइए कि मैं क्या करूं?

हर पन्द्रह दिन के बाद यह एकादशी आ जाती है और हमारे घर झगड़ा उत्पन्न हो जाता है। मेरे उदर में अग्नि का निवास है, उसे अन्न की आहुति न दूं तो चर्बी को चाट जाएगी। शरीर की रक्षा करना मनुष्य का परम धर्म है। अतः आप कोई ऐसा उपाय बताइए जिससे सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे अर्थात् ऐसा व्रत कहिए जो वर्ष में एक दिन करना पड़े किन्तु वह मन की व्याधियों का विनाश करने वाला हो। 24 एकादशियों का फल उस एक व्रत के करने से मिल जाए और मुझे स्वर्ग में संबंधियों के साथ ले जाए। व्यास जी बोले-ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम निर्जला है। इसमें ठाकुर जी का चरणोदक वर्जित नहीं है। कारण कि वह तो अकाल मृत्यु को हरण करने वाला है। जो निर्जला एकादशी का व्रत श्रद्धासहित करता है, उसे 24 एकादशियों का फल मिलता है। इस व्रत में पितरों के निमित्त पंखा, छाता, कपड़े के जूते, सोना-चांदी या मिट्टी का घड़ा और फल-फूल इत्यादि दान करें, मीठे जल का प्याऊ लगा दे, हाथ में सुमरनी रखे, मुख में ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ इस द्वादश अक्षर महामन्त्र का जाप करे, ध्रुव भक्त का गुरु मन्त्र यही था।

श्रीमद्भागवत पुराण का सार यही है। आप यदि फलाहारी हों तो ध्रुव के प्रथम मास की तपस्या के तुल्य उसके एक-एक दिन के फल के समान आपका फल हो जाएगा। यदि आप पवनहारी रह सको तो ध्रुव के छठवें मास की तपस्या के समान फल होगा। श्रद्धा को पूर्ण रखना, नास्तिक का संग न करना, दृष्टि में प्रेम का रस भरना, सबको वासुदेव का रूप समझ नमस्कार करना, किसी के हृदय को न दुखाना, अपराध करने वाले का दोष क्षमा करना, क्रोध का त्याग करना, सत्य भाषण करना। जो हृदय में प्रभु की मूर्ति का ध्यान करते हैं और मुख से द्वादश अक्षर मन्त्र का गान करते हैं, वह पूर्ण फल को प्राप्त करते हैं। दिनभर भजन करना चाहिए, रात्रि को रासलीला, कृष्णलीला, कीर्तन के सहारे जागरण करना चाहिए। द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को दक्षिणा दें, फिर उनको भोजन खिलाकर उनकी परिक्रमा कर लें। अपने पग-पग वर मांग लें। ऐसा श्रद्धा भक्ति से व्रत करने वाला कल्याण को प्राप्त होता है। जो प्राणी मात्र को वासुदेव की प्रतिमा समझता है, उसको मैं लाखों प्रणाम के योग्य मानता हूं। निर्जला का माहात्म्य सुनने से दिव्य चक्षु खुल जाते हैं। प्रभु घूंघट उतार कर मन के मन्दिर में प्रकट दिखाई देते हैं। यह कथा ब्रह्मवैवर्त पुराण में वर्णित है।

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