अभिनव टाइम्स । रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध की वजह से गेहूं की डिमांड दुनिया में बढ़ी है. ऐसे में भारत से गेहूं का तेजी से निर्यात बढ़ा. इस बार निर्यात 100 लाख टन के पार होने की संभावना है. पहले भारत ने गेहूं के निर्यात पर रोक लगाई. अब मैदा, आटा और सूजी के निर्यात पर भी रोक लगा दी है. ऐसे में सवाल ये है कि क्या देश में गेहूं की कमी हो रही है. क्या आटे के भाव बढ़ेंगे. और भारत ने इनके एक्सपोर्ट पर रोक क्यों लगाई |
रुस और यूक्रेन युद्ध की वजह से दुनिया में गेहूं की कीमतों में उछाल आया. उसका फायदा उठाने के लिए भारत ने अपना निर्यात बढ़ाया. मार्च तक भारत 70 लाख टन गेहूं का निर्यात कर चुका था. मार्च तक भारत का एक्सपोर्ट पिछले साल की तुलना में 215 प्रतिशत था. अप्रैल महीने में भी 14 लाख टन का निर्यात किया. एक तरफ सरकार तेजी से निर्यात कर रही थी. लेकिन देश के भीतर गेहूं की सरकारी खरीद तय लक्ष्य के हिसाब से नहीं हो पाई. मई महीने में देश में गेहूं के संकट का अंदेशा देखते हुए गेहूं के निर्यात पर रोक लगा दी |
जब मार्केट में गेहूं की कीमतें बढ़ी तो किसानों ने मंडी में सरकारी खरीद केंद्रों पर बेचने की बजाय सीधे मार्केट में बिक्री की. परिणाम ये रहा कि FCI तय टारगेट के हिसाब से खरीद नहीं कर पाया. अगस्त महीने तक FCI के गोदामों में जो स्टॉक है वो पिछले 14 साल में सबसे कम है. परिणाम ये रहा कि घरेलू बाजार में भी आम लोगों के लिए गेहूं की कीमतें 11.7 प्रतिशत बढ़ गई. हालांकि सरकार का कहना है कि देश में गेहूं की कोई कमी नहीं है |
गेहूं की कमी के संकेत
मई महीने में सरकार ने गेहूं के निर्यात पर रोक लगाई
27 अगस्त को सरकार ने गेहूं के अलावा आटा, मैदा और सूजी के निर्यात पर भी रोक लगा दी
एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक सरकार गेहूं का आयात बढ़ाने पर विचार कर रही है
आयात बढ़ाने के लिए इंपोर्ट ड्यूटी को घटा सकती है
FCI के पास स्टॉक में कमी क्यों आई ?
इस बार देश में गेहूं की पैदावर भी 25 प्रतिशत कम हुई है
मार्च महीने में गेहूं को 30 डिग्री से कम तापमान की जरुरत होती है जबकि इस बार मार्च में ही हीटवेव शुरु हो गई थी.
मार्च में तापमान 40 प्रतिशत के पार पहुंच गया था. लिहाजा समय से पहले गेहूं पक गया.
समय से पहले पकने की वजह से गेहूं के दानों का वजह भी कम रहा और पैदावर 25 प्रतिशत कम हुई.
11.13 करोड़ टन पैदावर का अनुमान था लेकिन सिर्फ 10 करोड़ टन ही पैदावर हुई.
पिछले साल सरकारी खरीद 4.33 करोड़ टन थी लेकिन इस बार सिर्फ 1.8 करोड़ टन ही सरकारी खरीद हुई
स्पष्ट है कि दुनिया में गेहूं की डिमांड बढ़ी है. भारत में पैदावर कम हुई है. सरकारी खरीद कम हुई है. आने वाले वक्त में त्यौहारी सीजन भी है. देश में आटे की डिमांड भी बढ़ेगी. ऐसे में आटे के साथ साथ गेहूं से जुड़े उत्पादों की कीमतें और बढ़ेगी. भारत को दुनिया फूड सप्लाई के लिहाज से उम्मीद भरी नजरों से देख रही है. लिहाजा ये चुनौती और बड़ी है. लेकिन घरेलू डिमांड को पूरा करना और कीमतों को स्थिर बनाए रखने और गेहूं के आटे की कीमतों में बढ़ोतरी को रोकना भारत सरकार के लिए काफी चुनौतीपूर्ण हो सकता है |