पति और पत्नी का अटूट बंधन प्रेम और स्नेह से लबरेज रहता है। एक सोच और प्यार हो तो एक दूसरे के साथी उम्र भर के रहते है। ऐसा ही वाक्या जी ब्लॉक के कपड़ा व्यवसायी मोहनलाल वधवा और उनकी पत्नी सुनीता के बीच रहा। दोनों उम्रभर साथ-साथ रहे और अंतिम विदाई भी साथ साथ हुई। उनकी इस विदाई वेला में हर कोई अपनी नम आंखों से अलविदा कर रहा था। सात जन्मों के साथी वधवा दंपती को अंतिम बार देखने के लिए उनके रिश्तेदार और बेटे-बहू पिछले चार दिन से इंतजार कर रहे थे। अमरनाथ यात्रा पर इस दंपती की चार दिन पहले वहां मौत हो गई थी।
अमरनाथ हादसे में जान गंवाने वाले कपड़ा व्यापारी मोहनलाल वधवा और उनकी पत्नी सुनीता वधवा के शव आखिर चौथे दिन सोमवार को सुबह करीब सात बजे पहुंचे। जी ब्लॉक में उनके निवास स्थान पर रिश्तेदार और परिजनों में गहमागहमी एकाएक बढ़ गई। इस दंपती के बीच स्नेह ऐसा कि लोग अब मिसाल देने लग गए है। दोनों संग संग रहते। दोनों के दो बेटे है, एक जयपुर और दूसरा गुडगांव में रहता। चार जुलाई को दोनों अमरनाथ यात्रा पर अपने समधी सीआई रहे सुशील खत्री के परिवार के संग गए। लेकिन वहां आठ जुलाई की शाम करीब छह बजे प्राकृतिक आपदा में दोनों की मौत हो गई। इसके बाद शव की खोजबीन हुई तो पहले सुनता वधवा का शव मिला तो दूसरे दिन शनिवार को मोहनलाल वधवा का। इस दंपती के शव शनिवार रात श्रीनगर से हवाई जहाज से नई दिल्ली लाए गए। लेकिन परिजनों ने जब शव को देखा तो वह किसी और महिला का निकला। नई दिल्ली से यह मामला श्रीनगर पहुंचा तो खोजबीन शुरू हुई। रातभर चली कवायद के बाद यह पता चला कि ताबूत पर नाम की स्लिप लगाते समय चूक हो गई। श्रीनगर से जो शव नई दिल्ली आया था उस पर नाम की स्लिप तो श्रीगंगानगर की सुनीता वधवा की थी।