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Thursday, September 19

इरशाद अज़ीज़ की दो ग़ज़लें

बीकानेर अदब की नगरी है। साहित्य की सभी विधाओं सहित प्रत्येक कला यहां पुष्पित- पल्लवित होती रही है। यहाँ की आम आवाम भी साहित्य से अनुराग रखती है। यही वजह है कि यहां उर्दू, हिंदी और राजस्थानी सहित कई ज़बानों में साहित्य रचा जा रहा है। बीकानेर के उर्दू अदब की बानगी के रूप में प्रस्तुत है बीकानेर के लोकप्रिय शाइर ज़नाब इरशाद अज़ीज़ साहब की दो ग़ज़लें। हाल ही में आपका दीवान ‘आहट’ शाया हुआ है।

अजब सी बेक़रारी हो रही है
हमारी जाँ तुम्हारी हो रही है

हमें मालूम है सारी हक़ीक़त
हमी से पर्दादारी हो रही है

मुहब्बत ख़त्म करते जा रहे हो
ये तुम से भूल भारी हो रही है

वो मय्यत पे हमारी रो रहे हैं
हमारी ग़म गुसारी हो रही है

सितारे ख़ुदकुशी कर के गिरे तो
वो समझे चाँद मारी हो रही है

जो क़ातिल है मुहब्बत के यहाँ पर
उन्हीं की ताज़दारी हो रही है

निकल भागो सुनो इरशाद ख़ुद से
के उसकी याद तारी हो रही है

(2)

मैंने सब को ख़ुश रखने की कोशिश की
अन्दर अन्दर बस जलने की कोशिश की

मेरा दिल मैख़ाना है जो भी लाया
खाली पैमाने भरने की कोशिश की

ताक़तवर को आँख दिखाई है लेकिन
कमज़ोरों से हाँ डरने की कोशिश की

उन ख़ुग़र्जो से भी रिश्ता रखा है
जो नुक़सान मेरा करने की कोशिश की

टेढ़े मेढ़े लोगो के जो ख़ाने हैं
सब के ख़ानो में ढलने की कोशिश की

मेरे पास क़लम है सो मैंने हर दम
हर ज़ालिम से बस लड़ने की कोशिश की

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