अभिनव टाइम्स की खास रिपोर्ट
संजय आचार्य वरुण
अभिनव रविवार। वह एक डरावना गांव है। उस गांव में मंदिर है, कुछ पुरानी इमारतें हैं, खंडहर हो चुके घरों के अवशेष हैं तो कभी आबाद रहे उस गांव का इतिहास बताते शिलालेख भी हैं। इस गांव में आज भी हजारों लोग जाते हैं, घूमते हैं लेकिन रात होने से पहले डर के मारे सब निकल जाते हैं। सदियां हो गई हैं लेकिन आज तक रात को इस गांव में रुकने का साहस कोई भी नहीं जुटा पाया है।
कहा जाता है कि अठारहवीं शताब्दी में रातों-रात वीरान हो चुके इस गांव को एक लड़की के पिता का शाप लगा हुआ है। इस गांव की ऐतिहासिक विरासत को बचाए रखने के लिए राजस्थान सरकार ने इस गांव को पर्यटन स्थल घोषित कर रखा है और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग इस वीरान गांव की देखभाल करता है।
पालीवाल ब्राह्मणों ने बसाया था ये गांव
जैसलमेर से 14 किलोमीटर दूर है भूतिया गांव के नाम से पहचाना जाने वाला कुलधरा गांव। इस गांव में दो तीन स्थानों पर शिलालेख लगे हैं, उनसे ज्ञात होता है कि तेरहवीं शताब्दी में पालीवाल ब्राह्मणों ने इस गांव को बसाया था। प्रचलित किवदंतियों के अनुसार यह गांव जैसलमेर राज्य के मंत्री सालिम सिंह की जागीर था। सालिम सिंह एक क्रूर और अत्याचारी व्यक्ति था।
वह गांव वालों पर हद से ज्यादा जुल्म करता था। खास तौर से कर की वसूली के मामले में वह बहुत निर्दयी था। कहा जाता है कि उसे गांव की मुखिया की बेटी पसंद आ गई थी। उसने गांव वालों को चेतावनी दी कि वे उसके और मुखिया की बेटी के बीच में आए तो वह उन्हें चैन से जीने नहीं देगा।
रातों-रात पता नहीं कहां चले गए गांव के लोग
अपनी बेटी की इज्जत और गांव वालों की जान बचाने के लिए मुखिया ने कठोर निर्णय लिया और एक रात को अचानक से पूरा कुलधरा गांव वीरान, सुनसान और निर्जन हो गया। कहते हैं कि जाते समय मुखिया ने इस गांव को श्राप दिया था, जिसके कारण ये फिर कभी आबाद नहीं हो पाया। लोगों में यह बात भी प्रचलित है कि अब इस गांव में भूतों का निवास है। वे रात में किसी को भी यहां रुकने नहीं देते। इस गांव में एक देवी का मंदिर भी है जो अब खंडहर बन गया है।
गांव में पुराने कच्चे मकानों के अवशेष दिखाई देते हैं। बताया जाता है जब ये गांव उजड़ा नहीं था, तब इसमें कुल 85 बस्तियां थी। इस गांव के प्रति में लोगों में बहुत जिज्ञासा है, इसलिए आज की तारीख में हजारों लोग कुलधरा गांव को देखने आते हैं। यह सरकार द्वारा एक पर्यटन स्थल के रूप में संरक्षण प्राप्त है। पर्यटक यहां बड़ी संख्या में आते जरूर है लेकिन रात को यहां कोई नहीं रहता। बुद्धिजीवी वर्ग और सरकारी रिकॉर्ड की मानें तो पानी की बेहद कमी इस गांव के उजड़ने का प्रमुख कारण रही थी।
सरकार का दावा है कि नहीं है कोई भी भूत
लक्ष्मी चन्द द्वारा रचित 1899 की इतिहास की पुस्तक तवारिख-ए-जैसलमेर के अनुसार कधान नामक पालीवाल ब्राह्मण कुलधरा गाँव में बसने वाले प्रथम व्यक्ति थे। उन्होंने गाँव में उधानसर नामक एक तालाब खोदा। पूर्व में इस गाँव में घूमने जाने के लिए के अनुमति नहीं थी ,क्योंकि इस गाँव को भूतिया गाँव कहा जाता है लोगों के अनुसार यहां भूत रहते है।
लेकिन अभी राजस्थान सरकार ने यह दावा किया है कि यहाँ कोई भूत नहीं रहते है इसलिए सभी के लिए खोल दिया है और पर्यटन स्थल का दर्जा दिया गया है। इस कारण अब यहां हज़ारों की संख्या में लोग घूमने आते है। यहाँ स्थानीय लोग ही नहीं अपितु देश एवं विदेश से भी आते है।