अभिनव न्यूज, बीकानेर। आज का दिन वाकई एक मनहूस दिन है। आज का सूरज ढलने से पहले एक ऐसी अनूठी शख्सियत को अपने साथ हमेशा के लिए ले गया है जिन्हें ये शहर पेन्टर कालेश के नाम से जानता है। शहर की युवा पीढ़ी उन्हें काका कालेश अथवा ‘काळा काका’ के नाम से पुकारती थी। उनका वास्तविक नाम पुरुषोत्तम आचार्य था लेकिन इस नाम से उन्हें बहुत कम लोग जानते थे। पेन्टर कालेश एक बहुआयामी कलाधर्मी थे।
उनके भीतर अनेक कलाओं ने पोषण पाया था। वे एक बेहतरीन चित्रकार और पेन्टर थे लेकिन उनकी विशेषता ये थी कि उन्होंने यह कला कभी किसी से सीखी नहीं थी। यह उनके भीतर से ही निकली थी। खुद किसी के शिष्य नहीं थे लेकिन अनेक नए लोगों को पेन्टिंग के क्षेत्र में काका कालेश ने आगे बढ़ाया था। उनकी एक बड़ी पहचान थी बेहद लोकप्रिय रम्मत कलाकार के रूप में। होली के अवसर पर आचार्यों के चौक में होने वाली ‘अमरसिंह राठौड़ की रम्मत’ में पेन्टर कालेश लखनऊ के नवाब की भूमिका में जान डाल देते थे। मेरे जैसे सैकड़ों लोग केवल उनका रोल देखने के लिए ही रम्मत में आते थे। पिछले चार पांच साल से, जब से उन्होंने हृदय रोग के चलते रम्मत में भूमिका निभानी बन्द कर दी तब से अनेक लोगों ने रम्मत देखने आना ही बन्द कर दिया था। काका कालेश राजस्थान आवासन मंडल से सेवानिवृत्त हुए थे। उनकी तीसरी कला थी माइक पर बहुत रोचक तरीके से व्यावसायिक संस्थानों का प्रचार करने की। जब वे तांगे या टैक्सी में माइक से बोलते हुए विभिन्न मोहल्लों से निकलते तो लोग उन्हें बहुत चाव से सुनते थे। किसी भी किस्से या कहानी को सुनाने का उनका अंदाज बहुत ही दिलचस्प था।
जब वे आचार्यों के चौक के पाटे पर या शेखर भा की पान की दुकान पर बैठे कोई किस्सा सुनाते तो देखते ही देखते उनके चारों तरफ लोगों का एक झुंड इकट्ठा हो जाता था। वे कई तरह की आवाजें निकालने में माहिर थे। वे हर समय हंसते रहने वाले व्यक्ति थे। जीवन में आए अनेक दुख भी कभी उनकी मुस्कान नहीं छीन पाए थे। रम्मत का अखाड़ा उनके बगैर हमेशा सूना रहेगा। आज वे अपने हर परिचित को हमेशा के लिए उदास कर गए हैं। राजनीति की गहरी समझ रखने वाले पेन्टर कालेश अपने चाहने वालों के हृदयों में हमेशा जीवित रहेंगे। महान व्यक्तित्व को कोटि कोटि नमन।