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Monday, April 21

Tag: संजय आचार्य वरुण

दृष्टिकोण: पूरे पांच दिन लोक और आधुनिक रंगमंच जहां आबाद रहते हैं, उसे बीकानेर कहते हैं

दृष्टिकोण: पूरे पांच दिन लोक और आधुनिक रंगमंच जहां आबाद रहते हैं, उसे बीकानेर कहते हैं

Editorial, मुख्य पृष्ठ, संपादकीय
संजय आचार्य वरुण नौवां बीकानेर थिएटर फेस्टिवल बुधवार की शाम को अगले वर्ष फिर आने के वादे के साथ सम्पन्न हो गया। वरिष्ठ रंगकर्मी एवं अभिनेता राजेन्द्र गुप्ता को समर्पित 2025 का यह फेस्टिवल भी पिछले आयोजनों की तरह यादगार रहा। बुधवार को अंतिम दिवस की अंतिम प्रस्तुति 'हम दोनों' अभूतपूर्व रही। देश के दिग्गज रंगकर्मी स्व. दिनेश ठाकुर द्वारा लिखित 'हम दोनों' का मंचन बीटीएफ में मंगलवार और बुधवार दोनों दिन अलग-अलग अभिनेताओं द्वारा किया गया, और दोनों ही दिन के मंचनों ने दर्शकों के हृदयों को जीत लिया। मुझे बुधवार को अंतिम दो प्रस्तुतियां 'ताजमहल का टेण्डर' और 'हम दोनों' देखने का अवसर प्राप्त हुआ। दिल्ली की युवा टीम द्वारा प्रस्तुत 'ताजमहल का टेण्डर' में कलाकारों का एनर्जी लेवल देखने और सीखने लायक रहा। नाटक में सरकारी विभागों में व्याप्त भ्रष्टाचार पर हल्के- फुल्के हास्य के साथ करारा व्यंग...
दृष्टिकोण: रेल फाटकों की समस्या पर राजनीति नहीं, समाधान के प्रयास करें

दृष्टिकोण: रेल फाटकों की समस्या पर राजनीति नहीं, समाधान के प्रयास करें

Editorial, rajasthan, मुख्य पृष्ठ, संपादकीय
संजय आचार्य वरुण बीकानेर में रेल फाटकों की समस्या पर सरकार के विरोध में धरने और प्रदर्शन करना अब एक आम बात हो गई है। अन्तर केवल इतना होता है कि बैनर बदल जाते हैं। कांग्रेस के राज में भाजपा, और भाजपा के राज में कांग्रेस रेल फाटकों की समस्या का निवारण नहीं होने के लिए सरकार और मौजूदा विधायक अथवा मंत्री आदि को कोसती है। निश्चित रूप से ये बीकानेर का बड़ा मुद्दा है लेकिन राजनीतिक लोगों से हमारा निवेदन केवल इतना भर है कि इस समस्या के समाधान के लिए प्रयास कर सकते हैं तो कीजिए लेकिन कृपया इस बात पर राजनीति मत कीजिए। अब जनता भी आपके इस खेल को समझने लगी है कि दोनों पार्टियां बारी- बारी से सत्ता में भी आती हैं पद और पावर भी मिल जाता है लेकिन तब समाधान नहीं होने के अनेक बहाने भी निकल आते हैं। विधायक भी बदलते हैं पर फिर भी अपने हाथ में सत्ता आने पर दोनों में से कोई भी रेल फाटक समस्या का...
दृष्टिकोण: वरना इस शहर के बारे में अच्छा लिखने को कुछ नहीं बचेगा

दृष्टिकोण: वरना इस शहर के बारे में अच्छा लिखने को कुछ नहीं बचेगा

Editorial, मुख्य पृष्ठ, संपादकीय
संजय आचार्य वरुण अपनी राठौड़ी आन, बान और शान के साथ ही बुलन्दी से खड़ी लाल पत्थर की शानदार हवेलियों के लिए पहचाना जाने वाला एक शहर बीकानेर। वही बीकानेर जहां के स्वादिष्ट भुजिया ने पूरे विश्व को अपने स्वाद के मोहपाश में बांध रखा है। हां, वही बीकानेर जहां की माटी में जाई- जन्मी पद्मश्री अल्लाह जिलाई बाई ने लंदन के अल्बर्ट हॉल को मांड राग के बुलन्द स्वरों से गुंजायमान कर दिया था। वही बीकानेर जिसके लाडले संदीप आचार्य ने देश भर को अपनी आवाज और मासूमियत का दीवाना बना लिया था। जी हां, वही बीकानेर जिसके एक और लाडले राजा हसन ने हाल ही में संजय लीला भंसाली की फिल्म 'हीरामण्डी' में हजरत अमीर खुसरो का क़लाम 'सकल बन' गाकर ओटीटी का फिल्म फेयर एवार्ड अपने नाम किया है। ये सभी बीकानेर के वे सुनहरे पृष्ठ हैं जिनको पढ़कर गर्व की अनुभूति होती है लेकिन मलाल इस बात का है कि इस शहर की कुंडली में अब कुछ काले ...
दृष्टिकोण: ताकि बीकानेर को धर्मनगरी कहते हुए हमें संकोच न हो

दृष्टिकोण: ताकि बीकानेर को धर्मनगरी कहते हुए हमें संकोच न हो

bikaner, Editorial, rajasthan, मुख्य पृष्ठ, संपादकीय
संजय आचार्य वरुण बीकानेर शहर का परकोटा क्षेत्र पिछले काफी समय से नशे, जुए और चोरी सहित अनेक अपराधों की चपेट में आया हुआ है। अब तो हालात ऐसे हो गए हैं कि बीकानेर के नाम के आगे छोटी काशी और धर्म नगरी जैसे विशेषण लगाने से पहले जरा सोचना पड़ता है। विश्वास नहीं होता कि ये हमारा वही बीकानेर है जिसके शांत और सुरक्षित माहौल पर कभी हमें नाज हुआ करता था। हमारे शहर में तो बच्चों को लक्ष्मीनाथ जी और मरुनायक जी के मन्दिर जाने के संस्कार दिए जाते थे। यह वही शहर है जहां के बच्चे रुद्री, महिम्न और दुर्गा सप्तशती के पाठ सीखते थे। आदरणीय नथमल जी पुरोहित और पुजारी बाबा जी का सान्निध्य इस शहर को आज भी एक वरदान के रूप में मिला हुआ है। कितना दु:ख होता होगा उन्हें ये देखकर कि उनके बीकानेर के नौनिहालों को नशे, जुए और अपराध के दलदल में फंसाया जा रहा है। आज वो हालात हैं जब कहीं किसी भी चौक में खड़ी मोटरसाइक...
दृष्टिकोण : विश्वास नहीं होता कि ये भारतीय संसद है

दृष्टिकोण : विश्वास नहीं होता कि ये भारतीय संसद है

Editorial, मुख्य पृष्ठ, संपादकीय
संजय आचार्य वरुण संसद भवन परिसर में सांसदों का एक झुंड खड़ा है। उनमें से एक सांसद भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की नकल उतार रहा है। वह बेहूदा तरीके से उपराष्ट्रपति जी के बोलने और खड़े होने के अंदाज का मजाक उड़ा रहा है। उसके आसपास खड़े सांसद ठहाके लगाते हुए एक उच्च संवैधानिक पद पर आसीन बुजुर्ग की खिल्ली उड़ा रहे हैं। इस देश के प्रमुख राजनीतिक परिवार के उत्तराधिकारी और स्वयं को प्रधानमंत्री पद का दावेदार समझने वाले राहुल गांधी उस फूहड़ टी एम सी सांसद कल्याण बनर्जी का विडियो बना रहे हैं। भारतीय संसद के दरो- दीवारों और इस देश के लोगों ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि जिस संसद में पंडित जवाहरलाल नेहरू, बाबा साहेब अम्बेडकर, गोविंद बल्लभ पंत, सरदार पटेल, लाल बहादुर शास्त्री सहित न जाने कितने महान व्यक्तित्वों ने बैठकर भारत की गरिमा को विश्व भर में प्रतिष्ठित किया था, आज उसी संसद में कल्...
दृष्टिकोण: केवल चुनाव के समय बैनर लगाकर दावेदार न बनें

दृष्टिकोण: केवल चुनाव के समय बैनर लगाकर दावेदार न बनें

Editorial, rajasthan, मुख्य पृष्ठ, संपादकीय
~ संजय आचार्य वरुण केवल चुनाव के समय बैनर लगाकर दावेदार न बनें। अब जनता पहले जितनी भोली नहीं है। हाथ जोड़कर फोटो खिंचवाने से जनता का समर्थन हासिल नहीं होता, जनता का समर्थन मिलता है, हर परिस्थिति में जनता के साथ खड़े रहने से। अगर आप राजनीति करना चाहते हैं तो चुनाव से साढ़े चार साल पहले तक आम लोगों के साथ खड़े रहिए। उनके सुख- दु:ख के भागीदार बनिए। चुनाव से चार महीने पहले 'बींद' बनकर हर तरफ दिखाई देना राजनीति नहीं होता। राजनीति होता है लोगों की परेशानियों को बिना बुलाए जाकर दूर करना। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); चुनाव जीतने से पहले जनता का ये विश्वास जीतना जरूरी होता है कि 'और कोई हो न हो, फलां व्यक्ति जरूर हमारे साथ है।' जनता का भरोसा पाए बिना भी चुनाव नहीं जीते जाते और जनता का विश्वास खोकर भी चुनाव नहीं जीते जाते। यदि आप जनता के हक के लिए लड़ेंगे ...
दृष्टिकोण: पार्टियां अपने नेताओं को अनुशासन कब सिखाएंगी

दृष्टिकोण: पार्टियां अपने नेताओं को अनुशासन कब सिखाएंगी

Editorial, Politics, rajasthan, मुख्य पृष्ठ, संपादकीय
~ संजय आचार्य वरुण जब भी सोशल मीडिया के माध्यम से देश और प्रदेश के नेताओं के भाषण सुनने का अवसर मिलता है तब मन बड़ा अशांत हो जाता है। बार- बार दिमाग में यही सवाल आता है कि 'ये कहां आ गए हम..' कच्चे रास्तों पर चलते- चलते हम अर्थात हमारी वर्तमान राजनीति, वहां पहुंच गई है, जहां बहुत अंधेरा है। इस अंधेरे में हर किसी को सत्ता के रोशन गलियारे और दमकती हुई कुर्सी तो दिखाई देती है लेकिन इंसान, इंसानियत, मर्यादा और शालीनता जरा भी दिखाई नहीं देती। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); पता नहीं किसने आज के छोटे- बड़े लगभग सभी नेताओं के दिमागों में यह डाल दिया है कि दूसरी पार्टी और विचारधारा का हर व्यक्ति हमारा शत्रु होता है। तीन- चार दशक पहले तक विपक्षी केवल विपक्षी ही होता था, उस समय विरोध सामने वाले की विचारधारा का होता था, और विरोध भी तार्किक था, विरोध करने के लि...
कब बदलेगा आलम… कब सुधरेंगे हालात

कब बदलेगा आलम… कब सुधरेंगे हालात

Editorial, संपादकीय
~ संजय आचार्य वरुण मैंने अपने जीवन की चार दशक की यात्रा मुसलसल इसी शहर बीकानेर में पूरी की है। तेरह- चौदह साल की उम्र से चुनाव, विधायक, मंत्री, सभापति और महापौर आदि देखते आ रहे हैं। इन सबको आते- जाते देखने के साथ ही इस शहर को भी देखा है और आज भी देख रहे हैं। कुछ स्वाभाविक परिवर्तनों के अलावा मोटे तौर पर सिर्फ चेहरों को ही बदलते देखा है। शहर आज भी लगभग वैसा ही है यानी शहर की व्यवस्थाएं आज भी यथावत हैं। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); मेरे मस्तिष्क में कई दशकों के चुनावी वादे, दावे और भाषण स्मृतियों और छवियों के रूप में बचे पड़े हैं। इस बात का जरा भी आश्चर्य नहीं होता कि बीकानेर के नेताओं के दावे, वादे और भाषण आज भी तीस- चालीस साल पुराने ही हैं, उन्हें अपनी स्क्रिप्ट बदलने की जरूरत इसलिए नहीं पड़ी क्योंकि शहर ही नहीं बदला तो भाषण कैसे बदलेंगे ? ...
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