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Friday, September 20

गीता प्रेस की कहानी: 99 सालों में 90 करोड़ पुस्तकें गीता प्रेस से हो चुकी हैं प्रकाशित, 15 भाषाओं में होता है प्रकाशन

अभिनव टाइम्स बीकानेर ।
दुनिया भर में धार्मिक पुस्तकों के लिए प्रसिद्ध गीता प्रेस की स्थापना के 99 वर्ष 14 मई को पूरे हो गए हैं। गीता प्रेस इस साल अपना शताब्दी वर्ष (100वां वर्ष) समारोह मना रहा है। गीता प्रेस की इसी शताब्दी वर्ष समारोह का शुभारंभ करने देश के तात्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद चार जून को किया हैं। इन 99 वर्षों में लगभग 16 करोड़ श्रीमद्भागवत गीता सहित 90 करोड़ पुस्तकों का प्रकाशन गीता प्रेस से हो चुका है। इन पुस्तकों में सर्वाधिक संख्या क श्रीमद्भागवत गीता की है। इसके अलावा गीता प्रेस से प्रकाशित होने वाली विश्व प्रसिद्ध मासिक पत्रिका कल्याण, रामचरित मानस, पुराण, हनुमान चालीसा, दुर्गा सप्तशती, सुंदरकांड के प्रतियों की भी संख्या करोड़ों में है। वर्ष 1921 के आसपास जयदयाल गोयंदका ने कोलकाता में गोविंद भवन ट्रस्ट की स्थापना की थी। इसी ट्रस्ट के तहत वहीं से वह गीता का प्रकाशन कराते थे। पुस्तक में कोई त्रुटि न हो इसके लिए प्रेस को कई बार संशोधन करना पड़ता था। प्रेस मालिक ने एक दिन कहा कि इतनी शुद्ध गीता प्रकाशित करवानी है तो अपना प्रेस लगा लीजिए। गोयंदका ने इस कार्य के लिए गोरखपुर को चुना। 29 अप्रैल 1923 को उर्दू बाजार में दस रुपये महीने के किराए पर एक कमरा लिया गया और वहीं से शुरू हुआ गीता का प्रकाशन। गीता धीरे-धीरे गीताप्रेस का निर्माण हुआ और इसकी वजह से पूरे विश्व में गोरखपुर को एक अलग पहचान मिली। आज प्रेस के पास दो लाख वर्ग फीट जमीन है। इसमें 1.45 लाख वर्ग फीट में प्रेस, कार्यालय व मशीनें हैं। 55 हजार वर्ग फीट में दुकानें व आवास हैं।
ऐसे हुई कल्याण की शुरुआत
गीता प्रेस के प्रबंधक लालमणि तिवारी ने बताया कि दिल्ली में अप्रैल 1926 में आयोजित मारवाड़ी अग्रवाल सभा के आठवें अधिवेशन में घनश्यामदास बिड़ला ने भाईजी को अपने विचारों व सिद्धांतों पर आधारित एक पत्रिका निकालने की सलाह दी। गीताप्रेस के संस्थापक सेठजी जयदयाल गोयंदका की सहमति से 22 अप्रैल 1926 को पत्रिका का नाम कल्याण निश्चित हुआ। इसी वर्ष भाईजी हनुमान प्रसाद पोद्दार के संपादकत्व में कल्याण का प्रथम साधारण अंक मुंबई से प्रकाशित हुआ। दूसरे वर्ष कल्याण का प्रथम विशेषांक भगवन्नामांक गोरखपुर से प्रकाशित हुआ। तभी से कल्याण का प्रकाशन गीताप्रेस से हो रहा है। अबतक गीताप्रेस से कल्याण की लगभग 17 करोड़ प्रतियां प्रकाशित हो चुकी हैं। जो पूरे विश्व में प्रत्येक माह पहुंचाई जाती है।
घर-घर गीता पहुंचाने के लिए हुई गीता प्रेस की स्थापना
गीता प्रेस के प्रबंधक डॉ. लालमणि तिवारी ने बताया कि  कम दामों में शुद्ध और सरल भाषा में गीता को घर-घर पहुंचाने के लिए गीता प्रेस की स्थापना हुई थी। इसी उद्देश्य के साथ आज भी गीता प्रेस से गीता के साथ ही अन्य धार्मिक पुस्तकों का प्रकाशन कर लागत से कम मूल्य पर लोगों को धार्मिक पुस्तकें उपलब्ध करा रहा है।
सेठजी के बाद भाईजी ने संभाली बागडोर
गीताप्रेस से प्रकाशित होने वाली मासिक पत्रिका कल्याण के प्रथम संपादक भाईजी हनुमान प्रसाद पोद्दार ने 17 अप्रैल 1965 को सेठजी के शरीर त्याग के बाद गीताप्रेस की बागडोर संभाल ली। उन्होंने अनेक ग्रंथों का संपादन करते हुए उनकी टीका भी लिखी है, ताकि पाठकों को आसानी से पुस्तकें समझ में आ जाए। 22 मार्च 1971 को वह भी गोलोकवासी हो गए। इस समय पूरी व्यवस्था ट्रस्टी देवीदयाल अग्रवाल देख रहे हैं।
एक रुपये की थी पहली गीता
29 अप्रैल 1923 में गीता प्रेस से पहली श्रीमद्भागवत गीता प्रकाशित हुई थी। गीता प्रेस प्रबंधन के मुताबिक पहली गीता की कीमत एक रुपये थी। आज भी श्रीमद्भागवत गीता लोगों को सस्ते दामों पर गीता प्रेस से उपलब्ध हो रही है। धार्मिक पुस्तकों के मामले में गीता प्रेस से सस्ती पुस्तक आज भी विश्व में कोई भी संस्था उपलब्ध नहीं कराती है। 
15 भाषाओं में होता है पुस्तकों का प्रकाशन
गीता प्रेस के प्रबंधन ने बताया कि गीताप्रेस से 15 भाषाओं में पुस्तकों का प्रकाशन होता है। इनमें हिंदी, संस्कृत, बंगला, मराठी, गुजराती, तमिल, कन्नड़, असमिया, उड़िया, उर्दू, तेलगू, मलयालम, पंजाबी, अंग्रेजी, नेपाली भाषाएं शामिल हैं।
करोड़ों की संख्या में प्रकाशित हुई हैं ये पुस्तकें

..श्रीमद्भगवतगीता – 16 करोड़
रामचरित मानस एवं तुलसी साहित्य – 11 करोड़ 50 लाख
..पुराण,
..उपनिषद् आदि ग्रंथ – दो करोड़ 75 लाख
महिलाओं एवं बालकोपयोगी पुस्तकें – 11 करोड़ 10 लाख
..भक्त चरित्र एवं भजनमाला – 17 करोड़ 50 लाख
..कल्याण- 17 करोड़
अन्य प्रकाशन – 14 करोड़

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