Welcome to Abhinav Times   Click to listen highlighted text! Welcome to Abhinav Times
Thursday, September 19

रोशनी की लकीरों पर लिखे हुए कुछ अशआर

पुस्तक परिचय : बंधी जिल्द बिखरे पन्ने

ग़ज़ल अरबी- फारसी साहित्य की बहुत पुरानी विधा है। कहा जाता है एक वक़्त में ग़ज़ल औरतों से बात करने का ज़रिया थी। हिन्दी साहित्य की भाषा में यह कहा जा सकता है कि उस वक़्त ग़ज़ल फकत श्रृंगार रस की विधा थी। मिर्जा गालिब के दौर तक आते- आते ग़ज़ल अपने सीमित दायरों से बाहर निकलकर ज़िन्दगी के अन्य विषयों को स्पर्श करने लगी। आधुनिक युग में हिन्दी साहित्य में हिन्दी ग़ज़ल को स्थापित करने का श्रेय दुष्यंत कुमार को दिया जाता है। आज के समय में गज़ल हर भाषा में लिखी जाती है। इस दौर में जब साहित्य में पाठकों और श्रोताओं का अभाव बताया जाता है तब भी ग़ज़ल आम जन मानस में पहले जितनी ही लोकप्रिय है । डॉ. संजू श्रीमाली उन रचनाकारों में से एक हैं जो साहित्य की विभिन्न विधाओं को साधती हैं। यह प्रसन्नता का विषय है कि इस बार उन्होंने ग़ज़ल कहने के सफल प्रयास किए हैं। ‘बंधी जिल्द बिखरे पन्ने’ डॉ. संजू श्रीमाली का एक ऐसा ग़ज़ल संग्रह है जो हिन्दी और उर्दू दोनों ज़बानों के आपसी सामंजस्य की बेहतरीन मिसाल पेश करता है। संग्रह की ग़ज़लों पर पहली त्वरित टिप्पणी के रूप में ये कहा जा सकता है कि ये ग़ज़लें हिन्दी पाठकों को ताजगी का एहसास कराएगी तो उर्दू पाठकों को भी निराश नहीं करेंगी।। डॉ. संजू श्रीमाली के सृजन की विशिष्टता ये है कि वे जिस विधा और भाषा में रचाव करती हैं, रचनाओं में उस परिवेश को पूर्ण साकार कर देती हैं, उदाहरण के लिए ‘बंधी जिल्द बिखरे पन्ने’ ग़ज़ल संग्रह में पूरा उर्दू अदब का माहौल दिखाई देता है। हालांकि ग़ज़ल आजकल लगभग सभी भारतीय भाषाओं में कही जाने लगी है लेकिन ग़ज़ल का असली मिजाज उर्दू ग़ज़ल में ही महसूस होता है। संजू जी के इस संग्रह से होकर गुजरते हुए ये सुकून होता है कि इन ग़ज़लों का मिजाज उर्दू का ही है। जब संजू जी हाइकु लिखती हैं तो उसमें रम जाती हैं, कहानी लिखती हैं तो उनके भीतर की सृजनात्मक दृष्टि जीवन में बिखरी कहानियां तलाश करती हैं, एक कवयित्री के रूप में उनकी कविताओं का मजमून मानव मन के अनकहे को कहने की कोशिश करता है लेकिन इस मजमुए में एक शाइरा के रूप में ग़ज़ल की ग्रामर और उसकी तमाम बंदिशों का पालन करते हुए भी एक नये वैचारिक धरातल पर खड़ी दिखाई देती हैं। यहां उनका भाव जगत उनके पिछले सारे रचनाकर्म से बिल्कुल ज़ुदा दिखाई देता है। एक शाइरा के रूप में वे रूमानी और रूहानी दोनों तरह के अशआर कहती हैं। पृष्ठ 40 पर एक ग़ज़ल का मतला और शे’र देखिए –

मुहब्बत वो अपनी जताने तो आते
मैं रूठी हुई थी मनाने तो आते
गए दूर मुझसे नज़र फेरकर तुम
ख़ता क्या थी मेरी बताने तो आत

इसी तरह कुछ ग़ज़लों में संजू जी ने दर्शन की और मोटिवेशनल बातें भी कहीं हैं, पृष्ठ 72 से एक मतला और एक शे’र देखिए-
खुद पे गर विश्वास है तो
हिम्मत तेरे पास है तो
प्यार तू कर वो हंस देगा
बच्चा कोई उदास है तो

इस संग्रह की ग़ज़लों का रंग मुहब्बत ही है। यहां एक स्त्री का भावों से भरा हुआ कोमल मन ग़ज़लों मेंघाव ढलता नज़र आता है। जिंदगी की आपाधापी में वास्तविक प्रेम कहीं खो गया है। डॉ. संजू श्रीमाली अपने पाठक को फिर से इश्क और मुहब्बत की उस मासूम दुनिया में ले जाती हैं जहां केवल जज्बात होते हैं, सच्चाई होती है और बिना वजह किसी को चाहना होता है। लेकिन इन सबके बीच उनका उज्ज्वल मन साफगोई नहीं छोड़ता, अपने ईश्वर को नहीं भूलता, उनके मन का ‘सर्वे भवंतु सुखिनः’ का मूल भाव विस्मृत नहीं होता, पृष्ठ 73 पर वे कहती हैं –
घाव लगे जब यारी से
दूर हैं दुनियादारी से

दिल और जान गए दोनों
इश्क की इक बीमारी से

काम बने सब दुनिया के
अर्ज करूं बनवारी से

फेर के मुंह कब बैठे हम
अपनी जिम्मेदारी से।

डॉ. संजू श्रीमाली की ये ग़ज़लें एक भावुक मन का ऐसा कोलाज बनाती हैं जिसमें किसी के आने की आहट है, किसी को याद करता हुआ दिल है, प्यार से देखने वाली नज़र है, इश्क के रास्तों पर होने वाले हादसे हैं, नींद के साथ आने वाले ख़्वाब हैं, मीठे जख्म हैं , हल्की फुल्की नोकझोंक हैं, अच्छे लगने वाले उलाहने हैं, ज़िन्दगी को सफ़र मानने का नजरिया है, याद रह जाने वाले मुलाकातों के लम्हे हैं, आधी- अधूरी सी ख्वाहिशें हैं और ज़िंदगी की दुश्वारियां हैं यानी इंसान की जिंदगी से सरोकार रखने वाली वे सभी बातें हैं जो हम सब कभी न कभी अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में महसूस करते हैं। डॉ. संजू श्रीमाली प्यार, इश्क, मुहब्बत और वफ़ा आदि की बातें करते हुए भी जिंदगी को फलसफे और अपनी नेकनीयती को एक पल के लिए भी नहीं भूलती हैं । उनके भीतर की इंसानियत उनसे ऐसे शे’र कहे हैं। आज मुझे प्रसन्नता है कि बीकानेर से हिंदी गज़ल को डॉ. संजू श्रीमाली के रूप में एक नया प्रतिनिधि मिला है, मैं इस अवसर पर पिताजी गौरीशंकर आचार्य ‘अरुण’ और बड़े भाईसाहब आनंद वि आचार्य जी को याद करता हूं, ये मेरी व्यक्तिगत खुशी है कि संजू जी ने उनकी परम्परा का ध्वज सशक्त तरीके से संभाल लिया है। आपके लिए अशेष मंगलकामनाएं।
– संजय आचार्य वरुण

Click to listen highlighted text!