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Sunday, November 10

उदास है ऋतुराज बसंत…

बुलाकी शर्मा

ऋतुराज बसंत स्वागत- अभिनंदन कराते-कराते बोरियत महसूस करने लगे हैं। वर्षों-वर्ष से शब्दों के थोड़े हेर-फेर के साथ लगभग एक जैसा स्वर कि ऋतुराज बसंत के स्वागत में प्रकृति ने सोलह श्रृंगार कर लिए हैं, कि वृक्षों पर नए पत्तों का आगमन होने लगा है, कि ऋतुराज बसंत कामदेव के सखा हैं इसलिए नर-मादाओं का मन मयूरी की तरह नर्तन करने लगा है, कि किशोर- किशोरी से लेकर वृद्ध- वृद्धा तक एक -दूसरे को मदभरा आमंत्रण देने लगे
 हैं।
लगभग एकरसता से होते अपने स्वागत- अभिनंदन से नीरस बने ऋतुराज बसंत ने नीरसता से उबरने के लिए इस बार नवाचार करने का मूड बनाया। स्वयं डोर- टू -डोर जाएंगे और सरप्राइ देंगे।
 ऋतुराज बसंत सबसे पहले पहुंचे एक षोडशी पास कहा । बोले- मैं बसंत… ऋतुओं का राजा। उसने बेरुखी से जवाब दिया-  सो, व्हाट ?
उन्होंने मदमस्ती छलकाते हुए कहा- ऋतुराज के आगमन पर तो रोम- रोम में मस्ती और मादकता छलक जाती है और तुम गुमसुम बैठी हो।
षोडशी ने गुसैल नजरों से देखा और बोली- तुम जैसे मस्ती में पगलाए युवकों ने दोस्ती का ढोंग कर मेरी सहेली के साथ गैंगरेप कर लिया… हेट है मुझे तुमसे… तुम्हारे मदमस्त साथियों से… भागो यहां से, नहीं तो तुम्हारा मुंह नोच लूंगी।
ऋतुराज बसंत घबरा गए और वहां से फुर्ती से भागे। उन्हें ऐसे अपमान की कतई उम्मीद नहीं थी। वे यह सोच कर सर्वप्रथम षोडशी के पास गए थे कि वह मादकता से उनका स्वागत करेगी किंतु उसे तो युवक नाम से घृणा है।  
मन को मजबूत कर अब वे पहुंचे युवक के पास। आंखों पर चश्मा लगाए, दाढ़ी खुजाते वह किताबों में उलझा था। उन्होंने युवक को सचेत किया- हेलो यंग मैन, आई एम बसंत।
युवक ने बिना देखे ही जवाब दिया- मेरे यहां तो पतझड़ ही पतझड़ है, बसंत यहां कैसे आ सकता है? 
उन्होंने मुलायमियत से कहा- देखो मैं ऋतुराज बसंत हूं। उदासी छोड़ो और उमंग से नाता जोड़ो। देखो मेरे स्वागत में प्रकृति नर्तन कर रही है।
युवक ने घोर उदासीनता से जवाब दिया- मेरे यहां बेरोजगारी नर्तन कर रही है। डिग्रियां हैं लेकिन नौकरी नहीं । मुझे डिस्टर्ब मत करो। प्लीज यहां से चले जाओ बसंत। भारी मन से ऋतुराज अब एक वृद्ध दम्पती 
 के पास पहुंचे। उन्होंने विनम्रता से कहा- मैं आ गया …आपका बसंत।
 वृद्धा ने आंखों पर हाथ का छज्जा बनाया। मोतियाबिंद से कमजोर आंखों से देखने की कोशिश करती हुलसती बोली –  सच में आ गए बेटा बसंत… मैं तुम्हारे बाऊजी को हमेशा यही कहती थी कि हमारा बेटा जरूर आएगा… हमारी सार संभाल करने… आओ बेटा।
 ऋतुराज ने पुनः अपना परिचय दिया – मैं आपका बेटा नहीं, ऋतुओं का राजा बसंत हूं। 
 वृद्धा ने दुखभरी आह छोड़ी और बोली – हमें आप पर बहुत गुमान था। इसलिए अपने इकलौते बेटे का नाम बसंत रखा। लेकिन बेटा बसंत अपने जीवन में बारह मास को बसंत मनाने के चक्कर में अपने बूढ़े मां- बाप को अकेला छोड़ अपनी बीवी के साथ  अलग रहने लगा है। दु:खों को याद दिलाने तुम क्यों आए हो बसंत… चले जाओ यहां से।
ऋतुराज बसंत व्यथित हो गए। वहां से चुपचाप निकले। सोचा, उनके आगमन से खेत लहलहा रहे होंगे इसलिए किसान से मिल लिया जाए। उनसे मिलकर वह जरूर खुश होगा। लेकिन उसने नाराजगी से कहा – हमारे किसान भाई आत्महत्या कर रहे हैं और तुम कहते हो कि खुशियां मनाऊं ? खुशियां धनपतियों के लिए है, जिनके लिए हर पल बसंत है, तुम तो वहां जाओ बसंत। वे करेंगे तुम्हारा स्वागत- सत्कार। यहां तुम्हारा क्या काम है?               
उदास, हताश और निराश ऋतुराज बसंत में अब और किसी से मिलने का साहस ही शेष नहीं 
रहा।

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