संजय आचार्य वरुण
तुम हो खंज़र भी तो सीने में समा लेंगे तुम्हें
पर ज़रा प्यार से बाहों में तो भरकर देखो।
मेरा दावा है सब जहर उतर जाएगा
दो दिन मेरे शहर में ठहर कर तो देखो।
साहित्य की दुनिया से ज़रा सा भी वास्ता रखने वाला कोई भी शख़्स बीकानेर के मशहूर कवि- शाइर ज़नाब अज़ीज़ आज़ाद के नाम से अपरिचित नहीं होगा। बीकानेर के कौमी सद्भाव को पूरे देश में पहुंचाने वाले अज़ीज़ साहब जन जन के कवि और शाइर थे। वे केवल शाइरी में ही आदर्शों की बातें नहीं करते थे बल्कि उनके दिल में समाज के पिछड़े वर्गों के लिए हक़ीक़त में हमदर्दी थी। उन्होंने आजीवन इंसान को इंसान बने रहने के लिए प्रेरित किया। उनकी कविताएं, गीत और ग़ज़लें किताबी अनुभवों पर आधारित नहीं थी, बल्कि वे जो कुछ भी लिखते थे, अपने माहौल और परिवेश से प्रेरित होकर लिखते थे। बीकानेर गर्व कर सकता है इस बात पर कि आलेख के आरंभ लिखी हुई पंक्तियों को भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. चंद्रशेखर जी ने संसद में बोला था। अज़ीज़ साहब एक व्यक्ति और एक शाइर दोनों ही रूपों में निर्भीक और बेबाक थे। समय की सच्चाइयों को शाइरी में ढालकर बयान करने का उनका अंदाज़ सबसे अलग था। उनका एक मक़बूल शे’र है –
ऐसे बच्चे को भला नींद कहां आएगी
थपकियाँ दे के जिसे भेड़िया सुलाता है
अज़ीज़ आज़ाद साहब की शख़्सियत बहुत ही रुबाब वाली थी लेकिन भीतर से वे बहुत ही नरम दिल इंसान थे। कवि सम्मेलनों और मुशायरों में लोग उनको सुनने के लिए घण्टों तक इंतजार किया करते थे। लोग उन्हें इसलिए पसंद करते थे क्योंकि वे शाइरी में आम आदमी की आवाज़ ही बुलंद करते थे। अज़ीज़ साहब शिक्षक थे, वे शाइर के रूप में भी सौहार्द्र की ही सीख दिया करते थे। बीकानेर का दुर्भाग्य रहा कि 20 सितंबर 2006 को वे केवल 62 साल की आयु में ही दुनिया ए फानी से रुख़सत हो गए। वे अपनी ग़ज़लों -नज़्मों में हमेशा ज़िन्दा हैं। उन्होंने अपने दौर में बीकानेर की शाइरी को राष्ट्रीय फलक पर पहुंचाया। उनको चाहने वाले आज भी उन्हें शिद्दत के साथ याद करते हैं। लोग आज भी वो दिन याद करते हैं जब बीकानेर में जोशीवाड़ा में दाऊजी की पान की दुकान पर अज़ीज़ साहब, जनकवि हरीश भादानी जी, जनकवि बुलाकीदास बाबरा साहब और अन्य रचनाकार नियमित रूप से दिखाई दिया करते थे। अज़ीज़ साहब इतने अच्छे शाइर इसलिए थे क्योंकि वे एक मुकम्मिल इंसान थे। बीकानेर अपने इस लाडले शाइर को हमेशा याद रखेगा।