संजय आचार्य वरुण
आज 2 अक्टूबर है। इस दिन को गांधी और शास्त्री जयंती के रूप में पूरे देश में मनाया जाता है। आज के दिन का महत्व केवल इतना ही नहीं है, आज का दिन बीकानेर में जाये- जन्मे राजस्थान के जन- जन के प्रिय कवि हरीश भादानी की पुण्य तिथि भी है । हरीश जी के संघर्ष भी गांधीजी और शास्त्रीजी के संघर्षों से अलग नहीं थे, फर्क सिर्फ इतना था कि भादानीजी ने अपने संघर्षों में कविता को अपना हथियार बनाया था। कविता के जरिये किया गया आंदोलन भी अहिंसात्मक होता है, इसलिए भादानी जी गांधीजी से जुड़ते हैं, इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती । सवाल पार्टीगत विचारधारा का नहीं होता, सवाल होता है व्यक्ति के उद्देश्यों का।
शास्त्रीजी ने अपने विभिन्न कार्यकालों में देश में रोटी का संकट देखा था, विदेशों से गेहूं आयात करने का घटनाक्रम उन्हें भीतर तक हिला गया था । रोटी जीवन की सबसे बड़ी जरूरत है, विकास के सारे दावे इसके बाद ही शुरू होते हैं, इस सत्य का आभास करके ही उन्होंने ‘जय जवान- जय किसान’ का नारा दिया था। हरीश भादानी भी रोटी और जीवन का अंतर्सम्बन्ध मुखर होकर गाने वाले पहले कवि थे।
‘राम नाम सत् है’ को चुनौती देते हुए ‘रोटी नाम सत् है’ कहना इस आस्थावादी समाज में बहुत बड़े साहस का काम था। भादानी जी किसी की आस्थाओं के खिलाफ नहीं थे लेकिन भूख और पिछड़ेपन के खिलाफ थे। आदमी और आदमी के बीच का अंतर उन्हें पसंद नहीं था। क्या ये अंतर गांधीजी और शास्त्री जी को पसंद था ? नहीं, कत्तई पसंद नहीं था, तो क्या इस साम्यता के आधार पर तीनों को एक साथ याद नहीं किया जा सकता। हरीश भादानी जी की प्रसिद्धि उस स्तर तक नहीं पहुंच पाई, जिस स्तर पर गांधी और शास्त्री पहचाने जाते हैं, इसका कारण केवल यही था कि भादानी जी अपनी लड़ाई कविता और शब्द के माध्यम से लड़ रहे थे।
भादानी जी भी एक स्वच्छ और समता मूलक समाज की स्थापना करना चाहते थे, इसीलिए वे पार्टीगत राजनीति से भी जुड़े लेकिन सच ये है कि वे न तो नेता थे और न ही कभी बन पाए, वे तो कबीर की तरह विसंगतियों पर चोट करने वाले निडर कवि ही थे। वे केवल कवि नहीं थे, वे जन के मन की कहने वाले जनकवि थे… सच्चे जनकवि ।