Welcome to Abhinav Times   Click to listen highlighted text! Welcome to Abhinav Times
Thursday, September 19

राजू श्रीवास्तव : सहज, मौलिक और गरिमामय मनोरंजन के युग का अवसान

संजय आचार्य वरुण

कई दिनों की पीड़ा झेलने के बाद आज मृत्यु जीत गई और राजू हार गए। जब तक सांस थी, तब तक आस थी कि राजू एक बार फिर खड़े होंगे, खुद भी चहकेंगे और हमें भी हंसाएंगे।

विधाता के लिए सब बराबर हैं, हम जानते हैं कि राजू श्रीवास्तव हमारे लिए बहुत कीमती थे। वे हमारी अवसादों, अपराधों और तनावों से भरी दुनिया की मौलिक मुस्कुराहट थे ।

आज जब इंसान में इंसानियत को छोड़कर सब कुछ है, प्रतिस्पर्धा है, लालच है, महत्वाकांक्षाएं हैं, भोग की बेलगाम वृत्ति है, हांफता- दौड़ता जीवन है, ऐसे में सहेजकर रखने लायक जो था, वही राजू श्रीवास्तव था लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद हम उन्हें नहीं बचा सके ।


भारत में आज की दिनांक में हंसने – हंसाने का कारोबार अपने चरम पर है। हजारों लोग इस बाजार में उतरे हुए हैं, उन सभी से सभ्य और सहज हास्य की उम्मीद करना ही बेमानी है । इस भीड़ में एक राजू ऐसे थे जो शहरों के नामों का उच्चारण अपने अंदाज में करके भी हास्य पैदा कर देते थे, वे खाने की प्लेट में से हंसी निकाल कर बिखेर देते थे, जुगाली करती गाय के मनोभाव प्रकट कर वे हमें पेट पकड़ने पर मजबूर कर देते थे । दांत कुचरने की मुद्रा में ठेठ देसी शैली में आम आदमी के किरदार ‘गजोधर’ के मासूम संवाद बोलना राजू को अद्वितीय बना गया ।
राजू का हास्य परिवार के साथ देखा जा सकता है, यह उनकी आज के दौर की सबसे बड़ी उपलब्धि थी। उनकी क्रिएटिविटी इतनी समर्थ थी कि लोगों को हंसाने के लिए न तो उन्हें खुद को लड़की या औरत का बेहूदा रूप धरना पड़ा और न ही उन्होंने ऊटपटांग मेकअप वाले फूहड़ किरदार रचे । वे अपनी खड़े होने की विशेष शैली से अपने गजोधर को एक पल में जीवंत कर देते थे।
यह राजू का अवसान नहीं है, यह मौलिक, सहज, शालीन, ऊर्जा से भरे शुद्ध मनोरंजन के एक युग का अंत है । राजू हंसाते कम थे, गुदगुदाते ज्यादा थे । दिन भर के संघर्षों के बाद रात्रि में अपने परिवार के साथ भोजन करते हुए आम आदमी जब राजू श्रीवास्तव को देखता था तब कुछ समय के लिए वह अपनी पीड़ाओं को भूल जाता था । तकनीक के माध्यम से राजू सदैव हमारे चेहरे पर मुस्कान लाते रहेंगे लेकिन दैहिक रूप से उनका चले जाना हास्य की एक गरिमामय परम्परा का अंत है । काश ! मनोरंजन के इस मूल्यविहीन दौर में राजू कुछ दशक और साथ रहते ।

Click to listen highlighted text!