राजस्थान | में फिर से बिजली संकट गहरा गया है। अघोषित और घोषित बिजली कटौती का दौर फिर से शुरु हो गया है। शहरी इलाकों में 2 घंटे और ग्रामीण-कस्बाई इलाकों में 4 घंटे तक बिजली गुल होना शुरु हो गई है। ग्रामीण इलाकों में घोषित तौर पर तीनों बिजली कम्पनियां- जयपुर,जोधपुर और अजमेर विद्युत वितरण निगम रोस्टर के आधार पर फीडर चलाकर करीब 2 करोड़ 5 लाख यूनिट तक रोजाना बिजली कटौती कर रही हैं। प्रदेश में 29 करोड़ 32 लाख यूनिट प्रतिदिन डिमांड है। जबकि 27 करोड़ 28 लाख 2 हजार यूनिट तक बिजली सप्लाई कम्पनियां दे पा रही हैं।
राजस्थान विद्युत प्रसारण निगम लिमिटेड (RVPNL) के आंकड़ों के मुताबिक जयपुर डिस्कॉम एरिया में 54 फीडर्स से, अजमेर डिस्कॉम एरिया में 46 फीडर्स से और जोधपुर डिस्कॉम एरिया में भी 46 फीडर्स से लम्बी देरी तक बिजली की कटौती की जा रही है। जबकि जयपुर डिस्कॉम 37, अजमेर डिस्कॉम 33 और जोधपुर डिस्कॉम 25 फीडर्स से आधे घंटे से कम देरी के लिए भी कटौती कर रहे हैं। शहरी इलाकों में अनप्लांड शटडाउन, मेंटीनेंस और फाल्ट के नाम पर बिजली जाने से लोग परेशान हैं।
पीक डिमांड 15429 मेगावाट,उपलब्धता 12800 मेगावाट
राजस्थान ऊर्जा विकास निगम लिमिटेड (RUVNL) के आंकड़ों के मुताबिक बिजली की पीक आवर्स में डिमांड 15 हजार 429 मेगावाट तक पहुंच गई है। जबकि महंगी बिजली खरीद के बावजूद उपलब्धता 12800 मेगावाट तक हो पा रही है। 2600 मेगावाट से ज्यादा बिजली की कमी है। पिछले साल जून महीने में 12 हजार मेगावाट के करीब पीक लोड था। 2021 के मुकाबले 2022 में साढ़े 3 हजार मेगावाट बिजली की डिमांड बढ़ चुकी है।
कई पावर प्लांट यूनिट्स ठप
प्रदेश में कई थर्मल पावर प्लांट यूनिट बंद पड़ी हैं। जिनमें छबड़ा की 4 नम्बर की 250 मेगावाट यूनिट बंद है। सूरतगढ़ सुपर क्रिटिकल पावर प्लांट की 7 नम्बर की 660 मेगावाट यूनिट भी जनरेटर फाल्ट के कारण ठप पड़ी है। इन दो मेजर बंद यूनिट्स के अलावा भी कई पुरानी और ज्यादा कोयला खपत वाली यूनिट्स से कम ही प्रोडक्शन लिया जा रहा है।
कोयले की कमी से बढ़ रही परेशानी
बिजली की किल्लत का बड़ा कारण कोयले की कमी बन रही है। राजस्थान में गाइडलाइंस के मुताबिक 26 दिन का कोयला स्टॉक रखना होता है। लेकिन औसत 8 दिन का ही कोयला बचा है। जिस कारण फुल कैपिसिटी में सभी प्लांट नहीं चल पा रहे हैं। कई बंद पड़ी यूनिट्स को इसीलिए जल्द शुरु भी नहीं किया जा रहा है। राजस्थान में फिलहाल औसत 19 रैक कोयला प्रतिदिन सप्लाई में मिल पा रहा है। जिनमें छत्तीसगढ़ की कोयला माइंस से 10-11 रैक की बजाय 8 रैक ही अब मिल पा रही हैं। बाकी कोल इंडिया और उसकी सब्सिडरी कम्पनियों से मिल रहा है।
मॉनसून और रबी सीजन में बड़े संकट की आशंका
राजस्थान को कम से कम अगले 3 महीने का एडवांस कोयला स्टॉक रखने की जरूरत है। रेग्युलर कोयला सप्लाई के साथ छत्तीसगढ़ में अलॉट पारसा कोल ब्लॉक 5 मीट्रिक टन प्रति वर्ष की 847 हेक्टेयर माइंस और पारसा ईस्ट एंड कैंटे बेसिन के 1136 हेक्टेयर सेकेंड फेज से जल्द कोयला माइनिंग की आवश्यकता है। पीईकेबी के दोनों फेज की कुल कैपेसिटी 15 मीट्रिक टन प्रतिवर्ष है जिसे बढ़ाकर 18 एमटीपीए तक पहुंचाने की तैयारी है।
लेकिन माइनिंग से पर्यावरण को नुकसान की बात पर छत्तीसगढ़ में स्थानीय आदिवासियों, नेताओं और NGO’S के विरोध के कारण इन माइंस से नया प्रोडक्शन शुरु नहीं हो पा रहा है। मॉनसून दस्तक दे चुका है। पिछले साल की तरह कोल माइंस में पानी भर गया तो माइनिंग बहुत कम हो जाएगी। राजस्थान को पूरी कोल सप्लाई भी नहीं मिल सकेगी। मॉनसून में पानी भरने के बाद खान को रिवाइव करना मुश्किल हो जाएगा। चलती खान को रिवाइव किया जा सकता है। वरना मॉनसून बाद 3 महीने तक कोल संकट बना रह सकता है। रबी सीजन में 16 हजार मेगावाट तक बिजली डिमांड पहुंच सकती है। ऐसे में बिजली मैनेजमेंट करना और बड़ी चुनौती होगा।