अभिनव टाइम्स बीकानेर।
बीकानेर के दो शाइरों असद अली असद व इरशाद अज़ीज़ को राजस्थान उर्दू अकादमी का सदस्य मनोनित जाने के अवसर पर “बज़्मे-वली” की तरफ से रामपुरा बस्ती,लालगढ़ में एक तरही मुशायरा आयोजित किया गया जिसका मिसरा ए तरह था-हमें अब कुछ नहीं कहना ज़बाँ से।
कार्यक्रम के प्रारम्भ में मौलाना अब्दुल वाहिद अशरफी ने इरशाद व असद का का शाल ओढाकर व माल्यार्पण कर सम्मान किया।
मुशायरे की अध्यक्षता करते हुए मौलाना अशरफी ने अपनी ग़ज़ल में सवाल खड़े किए-
कोई पूछे ये मीरे-कारवां से
कहाँ पहुंचे चले थे हम कहाँ से
आयोजक संस्था के मुहम्मद इस्हाक़ ग़ौरी शफ़क़ ने तेवर के शेर सुनाए-
मिरी गर्दन पे तुम तलवार रख के
न बुलवा पाओगे कुछ भी ज़बाँ से
वरिष्ठ शाइर ज़ाकिर अदीब ने बारिश की बात कही-
ज़मीं को कर दिया उसने जल थल
वो बारिश अब के बरसी आसमाँ से
डॉ ज़िया उल हसन क़ादरी ने प्यार के इज़हार का एलान किया-
मुहब्बत है अगर उस जाने-जाँ से-
अलल-ऐलान कह दो ये जहाँ से-
असद अली असद ने हौसले की बात रखी-
ये रहता है हमेशा हक़ की जानिब
असद ये हौसला लाया कहाँ से
आयोजक संस्था के सचिव माजिद खान ग़ौरी ने रिश्तों नातों का ज़िक्र किया-
न तोड़ो दोस्ती,रिश्ते जहां से
रहेंगे फिर कहाँ अम्नो-अमां से
इरशाद अज़ीज़ ने देशप्रेम का इज़हार किया-
तुम्हारा मसअला क्या है तुम जानो
हमें तो इश्क़ है हिन्दोस्तां से
तीन घण्टे तक चले मुशायरे में वली मुहम्मद गौरी वली रज़वी “जुदा होता हूँ अब मैं कारवां से”,बुनियाद हुसैन ज़हीन ने “महक आती नहीं अब इस मकां से”,साग़र सिद्दीकी ने “जो कहना था निगाहें कह चुकीं”,मुफ़्ती अशफाकुल्लाह उफ़क़ ने “हमें शिकवा नहीं पीरे-मुबाँ से”,इम्दादुल्लाह बासित ने “किया करते हैं बातें कहकशां से”,अब्दुल जब्बार जज़्बी ने “हमें जाना ही है जब इस जहां से”,मुहम्मद मूइनुद्दीन मुईन “हो तुम नाआशना ग़म से हमारे”,गुलफाम हुसैन आही सहित अनेक शायरों ने रचनाएं पेश की।