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Thursday, September 19

सृष्टि के कण- कण में वायु की तरह रमे हुए हैं राम

संजय आचार्य वरुण

राम । न जाने कितनी शताब्दियों से अनगिनत लोगों को जीवन के प्रत्येक पल में आनंद देने वाला शब्द। भाषागत अर्थों से परे शब्द है -राम। हर्ष, विषाद, अभिवादन, स्वागत, विश्राम, साहस, ऊर्जा, आरम्भ, अन्त और जीवन से जुड़े न जाने कितने अर्थों में राम रमे हुए हैं। एक चरित्र होकर इतना अनन्त और व्यापक होकर सृष्टि के कण- कण में वायु के समान रम जाना ही ‘राम’ होना होता है। महाराज दशरथ के पुत्र राम के समान अद्भुत और अनुपम चरित्र तो संसार के किसी भी ग्रन्थ में देखने को नहीं मिलता लेकिन साथ ही उनका नाम ‘राम’ भी अनुभूतियों, अर्थों और कल्पनाओं से परे एक ऐसा शब्द है जिसके प्रभाव भाषा वैज्ञानिकों और मनो विज्ञानियों की समझ से भी परे हैl राम शब्द स्वयं अपने आप में एक चमत्कार है। अगर कोई राम शब्द के सामर्थ्य को अनुभव करते हुए जीना चाहे तो उस मनुष्य के लिए सब कुछ जो सकारात्मक और सृजनात्मक है, वह सम्भव है। यह कोई नया अनुभव या तथ्य नहीं है, यह लाखों वर्षों से हजारों लोगों द्वारा जीया हुआ अकाट्य सत्य है।

आज कितना अद्भुत दिन है कि आज सम्पूर्ण भारत और खास तौर से सभी सनातनी जिन्हें प्रचलित भाषा में हिन्दू कहा जाता है, वे सभी कुछ समय पहले तक मतों, पंथों, सम्प्रदायों, जातियों, उपजातियों, और ऊंचे- नीचे, अगड़े- पिछड़े होने के लेबल लगाए हुए अपने- अपने खांचों में सिमटे हुए बैठे थे। वे क्या करते ? सैकड़ों वर्षों से उनमें एक- दूसरे के प्रति प्रतिद्वन्द्वी ही नहीं अघोषित शत्रु भाव भी आरक्षण, प्रगतिशीलता, जनवाद आदि- आदि के नाम पर पनपा दिया गया था,
कुछ कालखंड पहले तक इस विषैले वैमनस्य का कोई अन्त नजर नहीं आ रहा था। लेकिन यह चमत्कार राम के अतिरिक्त कोई दूसरा कर भी नहीं सकता था कि आज सभी सनातनी रामध्वज के नीचे एक साथ खड़े होकर स्वयं न केवल आनन्दित अपितु गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। जैसा वातावरण आज भारत राष्ट्र में उत्पन्न हुआ है, वैसा वातावरण अगली बार फिर से बनने के लिए शताब्दियां लग जाएंगी। पाणिनी की एकाक्षरी व्याकरण में र का अर्थ है रमण अर्थात आनन्द, आ की मात्रा का अर्थ है- आह्वान यानी बुलाना और म अक्षर मैं, मुझे अर्थात व्यक्ति के अर्थ में है। इस अनुसार ‘राम’ का अर्थ है कि ‘मुझे आनन्द की प्राप्ति हो’। अब ध्यान दीजिए कि हमारे धर्म शास्त्रों में परमात्मा को सत, चित और आनन्द स्वरूप अर्थात सच्चिदानंद कहा गया है। इसलिए ‘राम’ शब्द ईश्वर की प्राप्ति का महामंत्र है। इसका मतलब यह हुआ कि ‘राम’ इतना कहते ही हम सृष्टिकर्ता परमात्म तत्व से सीधे जुड़ गए।

और पिछले कुछ महीनों से जब सारा देश राम- राम कर रहा है तो निश्चित रूप से परमात्मा हमारे आह्वान को सुन भी रहा है और हमारे बीच होने का आनन्द अनुभव भी करवा रहा हैl मंदिर अधूरा है, हमारी उपेक्षा की गई है, यह सब चुनावी लाभ लेने के लिए आनन-फानन में किया जा रहा है। ये सभी बातें अगर सत्य भी हों तो भी अन्तत: काम तो राम का ही किया जा रहा है। आपके मतभेद व्यवस्था से हो सकते हैं रामजी से नहीं। रामजी का काम किसी भी रूप में किया जाए, किसी भी तरह से किया जाए, वह उत्तम और सराहनीय ही होता है। जब गिलहरी के सेतु बनाने के प्रयास का सम्मान कर स्वयं रामजी ने ही ये संदेश दिया था। इसलिए राम तो जितने उनके हैं उतने ही आपके भी हैं, राम तो सबके हैं। मतभेदों, पूर्वाग्रहों और राजनीतिक- सामाजिक वैर- विरोध की कहीं तो कोई सीमा होती होगी। उस सीमा के पार सब कुछ ‘राममय’ होता है। आज वही अवसर है जब सब कुछ राममय है। अनुभव करें तो राम के अलावा कहीं कुछ भी नहीं।
सियाराम मय सब जुग जानी
करहुं प्रनाम जोरि जुग पानि
सभी भारत वासियों को श्रीराम दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।

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