अभिनव टाइम्स |ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी के रूप में मनाया जाएगा। इसे पांडव और भीमसेनी एकादशी भी कहते हैं। ये इस बार 10 जून, शुक्रवार को रहेगी। इस दिन श्रद्धालु भगवान विष्णु के लिए पूरे दिन बिना पानी पिए निर्जल उपवास रखेंगे। साथ ही जल से भरे मटके पर आम, चीनी, पंखा, तोलिया रखकर दान करेंगे। पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र बताते हैं कि इस दिन एकादशी उपवास करने से सालभर की सभी एकादशियों जितना पुण्य मिलता है। ऐसा शास्त्रों में लिखा है। इसलिए इस एकादशी पर अपने पितरों की शांति के लिए ठंडे पानी, भोजन, कपड़े, छाते और जूते-चप्पल का दान किया जाता है।
क्यों कहते हैं निर्जला एकादशी
डॉ. मिश्र के मुताबिक इस तिथि पर निर्जल रहकर यानी बिना पानी पिए उपवास किया जाता है, इसीलिए इसे निर्जला एकादशी कहा गया है। उपवास करने वाले भक्त पानी भी नहीं पीते हैं। सुबह-शाम भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और अगले दिन द्वादशी तिथि पर पूजा-पाठ के बाद भोजन ग्रहण करते हैं।
महाभारत काल में भीम ने रखा था ये व्रत
स्कंद पुराण में एकादशी महात्म्य नाम का अध्याय है। इसमें सालभर की सभी एकादशियों की जानकारी दी है। इस अध्याय में श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को एकादशियों का महत्व बताया है। निर्जला एकादशी के बारे में पांडव पुत्र भीम से जुड़ी कथा है। महाभारत काल में भीम ने इस एकादशी का उपवास किया था। तभी से इसे भीमसेनी एकादशी भी कहा गया है।
ये व्रत महर्षि वेदव्यास ने पांडवों को चारों पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के लिए बताया था। तब भीम ने कहा कि पितामाह, आपने एक माह में दो एकादशियों के उपवास की बात कही है। मैं एक दिन तो क्या, एक समय भी खाने के बिना नहीं रह सकता हूं। वेदव्यास ने भीम से कहा कि सिर्फ निर्जला एकादशी ही ऐसी है जो सालभर की सभी एकादशियों का पुण्य दिला सकती है। ये व्रत ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी पर होता है। तब इस दिन भीम ने व्रत किया था।