अभिनव टाइम्स । झुंझुनूं के माननगर इलाके में 95 साल के बुजुर्ग अपनी 90 वर्षीय पत्नी के साथ रहते हैं। देखभाल के लिए परिवार की एक महिला है। यहां किसी से पूछिये कि करोड़पति फकीर का घर कहां है तो वह इन्हीं 95 साल के डॉ. घासीराम वर्मा के घर की तरफ इशारा करता है। घासीराम ऐसी शख्सियत हैं जिन्होंने नौकरी से मिला वेतन दान किया और अब पेंशन की आधी रकम भी दान कर देते हैं। डोनेशन की रकम छोटी-मोटी नहीं है। वे अब तक गर्ल एजुकेशन पर 12 करोड़ रुपए दान कर चुके हैं।
अमेरिका के रोडे आइलैण्ड विश्वविद्यालय में गणित विभाग में प्रोफेसर रहे घासीराम पत्नी रुक्मणी के साथ अप्रैल 2022 से झुंझुनूं में ही रह रहे हैं। उनके दो बेटे और उनका परिवार अमेरिका में सेटल है। वर्तमान में डॉ वर्मा को सालाना 1.20 लाख (करीब 1 करोड़ रुपए) यूएस डॉलर पेंशन मिलती है, जिसमें से वे 50 से 60 प्रतिशत राशि दान कर देते हैं। अप्रैल से पहले वे 8 महीने अमेरिका रहते तो 4 महीने के लिए झुंझुंनूं आ जाते थे। इस दौरान वे अपने पास जो भी रकम होती उसे डोनेट कर देते, उनके पास अमेरिका लौटने का पैसा भी नहीं बचता था, वापसी की टिकट के लिए लोगों को चंदा जुटाना पड़ता था।
डॉ. घासीराम की कहानी अनूठी है। दान का महत्व उन्हें बचपन में ही समझ आ गया था। 1 अगस्त 1927 को झुंझुनूं के नवलगढ़ के छोटे से गांव सीगड़ी में लादूराम तेतरवाल व जीवणीदेवी की तीसरी संतान थे घासीराम। आरंभिक जीवन तंगहाली में गुजरा। जब वे पिलानी पढ़ने गए तो किताबों व एडमिशन के लिए रुपए नहीं थे। नवलगढ़ के ठिकानेदार की सिफारिश पर एडमिशन और स्कॉलरशिप मिली। कहीं से किताबें दान में मिली तो कहीं से ड्रेस। स्कॉलरशिप के भरोसे वे पढ़ते रहे। वे गणित के शिक्षक बन गए।
जनवरी 1958 में गणितीय विज्ञान संस्थान कुरांट न्यूयार्क के अमेरिकन विद्वान प्रो. के.ओ. फ्रेडरिक्स से घासीराम की मुलाकात हुई। उन्हें अमेरिका का न्योता मिला। लेकिन पैसा नहीं था। कुरांट संस्थान ने ही घासीराम को 400 डॉलर मासिक वेतन के साथ और शोध करने की बात कही। फिर भी पैसों का संकट था। उन्हें बिड़ला एज्यूकेशन ट्रस्ट, पिलानी से दो हजार रुपए की मदद मिली। अमेरिका जाने के लिए तीन हजार रुपए किराया लगता था। कपड़ों के लिए पांच सौ रुपए की जरुरत और थी। घासीराम नाथूराम मिर्धा से मिले, रामनिवास मिर्धा ने 1000 रुपए दिए। शिष्य रहे चिड़ावा के विजय कुमार अड़ूकिया ने पांच सौ रुपए का सहयोग किया। तब घासीराम 1 सितम्बर 1958 को अमेरिका के लिए रवाना हुए।
इसके बाद डॉ. वर्मा ने मुड़कर नहीं देखा। अमेरिका में पढ़ाया और पैसा कमाया। बेटे भी अमेरिका सेटल हो गए। घासीराम झुंझुनूं आते रहते थे। डॉ. वर्मा अमेरिका के रोडे आइलैण्ड विश्वविद्यालय में गणित विभाग में प्रोफेसर रहे। यहीं से उन्हें आजीवन प्रोफेसर पद के लिए 1.20 लाख यूएस डॉलर सालाना पेंशन मिल रही है। 1982 में उन्होंने कड़ी धूप में ग्रामीण लड़कियों को स्कूल जाते देखा तब छात्रावास बनाने का विचार आया। उन्होंने झुंझुनूं में महर्षि दयानंद बालिका छात्रावास बनाया। महर्षि दयानंद महिला विज्ञान महाविद्यालय में बेटियों के लिए दान दिया। यहीं से दान का सिलसिला शुरू हो गया। राजस्थान का शायद ही कोई छात्रावास होगा जिसे डॉ. घासीराम से आर्थिक सहयोग न मिला हो। खास तौर से बालिका शिक्षा के लिए वे बिना कुछ सोचे पैसा खर्च कर देते हैं। अब तक वे देश भर के छात्रावासों में स्वयं सेवी संस्थाओं के जरिए 12 करोड़ रुपए से ज्यादा दान कर चुके हैं। आज भी कर रहे हैं।
डॉ. घासीराम कहते हैं-दूसरों को देने की आदत डालिए, फिर ऊपर वाला आपको सब कुछ देने लगेगा। जिंदगी में तंगहाली देखी। अपनी शिक्षा के लिए दानदाताओं से कुछ मिलता तो बड़ी खुशी होती थी। जैसे नया जीवन मिल गया हो। दानदाता में भगवान नजर आता था। झुंझुनूं के विजय गोपाल कहते हैं कि इतनी बड़ी राशि व्यक्तिगत दान करना मामूली बात नहीं, जबकि यह नौकरी से अर्जित की गई हो। उन्होंने कई स्कूल, कॉलेज, हॉस्टल्स व सार्वजनिक भवन बनवाए हैं।
यहां किया दान
झुंझुनूं, नवलगढ़, सीकर, डीडवाना, नागौर, तारानगर, भादरा, साहवा, टोंक, फतेहपुर, अजमेर, किशनगढ़, जसवंतगढ़, मालपुरा, चित्तौडग़ढ़, कपासन, गुलाबपुरा, कोटा, रतनगढ़, सूरतगढ़ में छात्रावास बनवाए। सांगलिया, टोंक, महाराजा सूरजमल शैक्षणिक संस्थान-दिल्ली, मुकुन्दगढ़, मंडावा, गोठड़ा, अलीपुर, भारू, नबीपुरा, सीगड़ा, जाखोद, लक्ष्मीपुरा-टोंक, संगरिया, बगड़, चिड़ावा, खेतड़ी, पिपराली, अलीपुर, चूरू, जमवारामगढ़, बिसाऊ में शैक्षणिक व स्वयंसेवी संस्थाएं तैयार की।
सिलसिला थमा नहीं है। डॉ. घासीराम कहते हैं कि उन्होंने भारत समेत फ्रांस, जापान, इंग्लैण्ड, अमेरिका में कार्य कर रहे अपने शिष्यों को पत्र लिखते रहे हैं। वे भी दानदाता बन गए हैं। अब वे दान का सिलसिला शुरू कर चुके हैं। डॉ. घासीराम वर्मा के जीवन पर 7 किताबें पब्लिश हो चुकी हैं। इनमें सबसे प्रसिद्ध हैं करोड़पति फकीर, बेदाग चदरिया, अतीत की झलक डॉ. घासीराम वर्मा, स्केलिंग द हाइट्स आदि।
डॉ. घासीराम वर्मा का दान-धर्म 40 साल से अनवरत है। धन और जीवन की सीमाएं हैं। लेकिन दान के जरिए उन्होंने एजुकेशन के जो चिराग जलाए हैं, वे सदियों तक जहान भर को रोशन करते रहेंगे।