■ संजय आचार्य वरुण
कुछ लोग अपने काम की इबारत को कुछ इस तरह से लिखते हैं कि वो इतिहास बन जाता है। चूंकि हर बीता हुआ दिन इतिहास नहीं होता, इसीलिए जिनमें इतिहास बनाने की कुव्वत होती है वे बनी- बनाई लकीरों पर नहीं चलते। वे अपने हर दिन को कुछ इस तरह से जीते हैं कि उनका जीया हुआ और उनका किया हुआ लोगों के लिए मिसाल बन जाता है। अदब या साहित्य की बात करें तो इस क्षेत्र में बीकानेर से एक ऐसा नाम उभरकर सामने आ रहा है जो अदब का ऊंचा आसमान अपने हाथों से छूने की ज़िद लिए निरंतर चल रहा है, वो नाम है इरशाद अज़ीज़ का। ये वो ही इरशाद अज़ीज़ हैं जिन्होंने भारत की आज़ादी के बाद बीकानेर का पहला दीवान उर्दू शायरी को दिया है। हो सकता है कि उनका दीवान ‘आहट’ आज़ादी के बाद का राजस्थान का भी पहला दीवान हो। उर्दू अदब की तारीख़ में नए दौर के पहले साहिबे दीवान शाइर होने के बाद इस 29 अगस्त 2024 को इरशाद अज़ीज़ ने एक बार फिर नए तरीके से अदब के लिए अपनी मुहब्बत को दुनिया के सामने इस तरह से पेश किया कि बड़े- बड़े लोगों ने दांतों तले उंगली दबा ली। ‘मैंने जब सुना कि एक शख़्स रेगिस्तानी शहर बीकानेर से आकर दिल्ली में बड़े बड़े शायरों की महफिल सजा रहा है तो मैं देखना चाहता था कि ये दीवाना कौन है। इसीलिए इस आलमी कवि सम्मेलन और मुशायरे में आने से मैं ख़ुद को रोक नहीं पाया।’
ये शब्द हैं जनाब सैयद सलाहुद्दीन के, जो अरब देशों में बड़े- बड़े कवि सम्मेलन- मुशायरों के आयोजनों लिए दुनिया भर में पहचाने जाते हैं। हर छोटा- बड़ा कवि- शाइर सैयद सलाहुद्दीन की नज़रों में आना चाहता है, उनकी मौजूदगी में अपना क़लाम पढ़ना चाहता है ताकि कभी उसको भी दुबई जाने का मौका मिल जाए। वह शख़्सियत अज़ीज़ आज़ाद लिटरेरी सोसायटी (आल्स) की जानिब से दिल्ली की ग़ालिब एकेडमी में गत गुरुवार को आयोजित किए गए कवि सम्मेलन- मुशायरे में न केवल आए बल्कि साढ़े चार घण्टे तक भारत के विभिन्न क्षेत्रों तथा जर्मनी और रूस से पधारे कवि- कवयित्रियों व शाइरों को लगातार सुनते रहे। ऐसे अज़ीमो-शान मुशायरे का आयोजन बीकानेर के लाडले शाइर अज़ीज़ आज़ाद साहब का लाडला ही कर सकता था। इसके बाद अब चाहे लोग दुनिया-भर में घूम-घूम कर भी ऐसे आयोजन कर दें तो भी पहली ईंट तो इरशाद अज़ीज़ रख ही आए हैं।
दिल्ली की ग़ालिब एकेडमी की वो शाम कभी न भूलने वाली शाम बन गई जिसमें दिल्ली उर्दू अकादमी के वाइस-चेयरमैन प्रो. शेहपर रसूल, सैयद सलाहुद्दीन(दुबई), मलिकजादा जावेद, माज़िद देवबंदी, फरीद अहमद फरीद, अना देहलवी, डॉ. श्वेता सिंह उमा (मास्को), सरिता जैन, डॉ. योजना जैन (जर्मनी), अब्दुल रहमान मंसूर, वसीम जहांगीराबादी, रेणु हुसैन, संजीव निगम ‘अनाम’, संजय आचार्य वरुण, शैलजा सिंह, मीनाक्षी जिजीविषा, इकबाल क़ैस, इब्राहिम अली, अजय अक़्स और नाज़िमे- मुशायरा रियाज़ सागर जैसे कवियों- शाइरों ने साढ़े चार घण्टे तक सामईन को हिलने तक न दिया। एक से बढ़कर एक ग़ज़लें, नज़्में, गीत और कविताओं ने हिन्दी और उर्दू ज़बानों को सगी बहनों की तरह आपस में मिला दिया।
प्रोग्राम की शुरुआत में जब इरशाद अज़ीज़ ने अपने वालिद मरहूम अज़ीज़ आज़ाद साहब की बेहद मक़बूल ग़ज़ल ‘तुम ज़रा प्यार की राहों से गुजर कर देखो/अपने ज़ीनों से सड़क पर भी उतरकर देखो/ तुम हो खंज़र भी तो सीने में समा लेंगे तुम्हें/ पर ज़रा प्यार से बाहों तो भरकर देखो/ मेरा दावा है सब ज़हर उतर जाएगा/ तुम मेरे शहर में दो दिन तो ठहरकर देखो’ बाआवाज़े बुलंद पढ़ी तो एक पल के लिए ऐसा लगा कि ख़ुद अज़ीज़ साहब अपने इन अमर अशआर के ज़रिये दुनिया को दिखा रहे हों कि बीकानेर की शायरी का अंदाज और मयार क्या है।
इस यादगार प्रोग्राम का बेहतरीन आग़ाज़ बीकानेर के शाइर जनाब अब्दुल जब्बार ‘ज़ज़्बी’ के शे’री मजमुए ‘ज़ज्बात ये मेरे’ की रस्मे- इज़रा से हुआ। दिल्ली के अदीबों ने अब्दुल जब्बार ज़ज़्बी की किताब में खासी दिलचस्पी दिखाई।
किसी अकादमी या सरकारी- ग़ैर सरकारी किसी के भी सहयोग के बग़ैर आयोजित इस अन्तरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन- मुशायरे को उन्वान दिया गया- एक शाम सैयद सलाहुद्दीन साहब के नाम’। इस प्रोग्राम में सैयद सलाहुद्दीन को कौमी एकता एवार्ड, . श्वेता सिंह उमा, डॉ. योजना जैन और रेणु हुसैन को भारत गौरव सम्मान, मलिकजादा जावेद को फक्रे उर्दू एवार्ड और शाइरा अना देहलवी को मलिका-ए- ग़ज़ल एवार्ड पेश किया गया।
मुशायरे और कवि सम्मेलन बहुत होते हैं मगर यह एक ऐसी शाम थी जिसने अदब में अनेक ऐसे नवाचार किए जो आने वाले प्रोग्रामों में लम्बे समय तक दोहराए जाएंगे। इस बेहतरीन आयोजन के लिए आल्स के ज़ाकिर आज़ाद, इरशाद अज़ीज़ और युवाओं की मजबूत टीम को बहुत बहुत मुबारकबाद।