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Friday, September 20

दुर्लभ रचना संवत 1765 में जैन मुनि उदयचंद रचित “बीकानेर गजल”

नगर-वर्णनात्मक गजलों की परम्परा सत्रहवीं शताब्दी से प्रारम्भ होती है। कवि जटमल नाहर की लाहौर गजल सर्वप्रथम ज्ञात रचना है इस परम्परा को विशेष रूप से जैन कवियों ने अपनाया तथा उन्नीसवीं शताब्दी तक पचासों ग्राम व नगरों की गजलों का उन्होंने सृजन किया। ऐसी रचनाओं का एक संग्रह स्व. मुनि कांतिसागर जी ने हिन्दी-पद्य संग्रह नामक ग्रंथ में तथा कुछ फुटकर सामग्री फार्बस सभा के त्रैमासिक में प्रकाशित करवाई थी। इससे भी पहले की ऐसी रचनाओं का एक संग्रह तैयार किया था तथा उस सामग्री का कुछ विवरण राजस्थान में हस्तलिखित हिन्दी ग्रन्थों की खोज भाग -2 में प्रकाशित भी करवाया, पर खेद है कि काफी प्रयत्न करने पर भी वह सामग्री ग्रन्थाकार रूप में प्रकाशित न हो सकी।
वर्णनात्मक नगर-परिचय के साथ-साथ चित्रात्मक नगर-परिचय भी उपलब्ध होते हैं। ऐसे दो सचित्र विज्ञप्ति पत्र बीकानेर के बड़े उपासरे स्थित वृहद ज्ञान भण्डार में प्राप्त हैं, जिनका विवरण राजस्थान भारती से प्रकाशित कराया जा चुका है। इनमें से एक विज्ञप्ति पत्र तो एक सौ फुट से भी अधिक लम्बा है तथा उसमें बीकानेर नगर के अनेक मन्दिर, बाजार, रास्ते आदि चित्रों द्वारा प्रकट किये गए हैं। चित्रकला की दृष्टि से भी यह विज्ञप्ति लेख अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इसी प्रकार उदयपुर आदि नगरों के सचित्र विज्ञप्तिलेख भी उपलब्ध हैं। इनमें से कुछ का विवरण मरुभारती, शोध-पत्रिका आदि पत्रिकाओं में प्रकाशित करवाया है।
बीकानेर गजल के रचयिता कवि उदयचन्द खतरगच्छ मथेन थे। जिनकी सबसे पहली रचना अनूप सिंगार सं. 1728 वि. आश्विन सुदि 11 की, दूसरी रचना संस्कृत भाषा में रचित पांडित्यदर्पण सं. 1734 वि. की तथा तीसरी रचना प्रस्तुत बीकानेर गजल सं. 1765 वि. की रची उपलब्ध है। गजल उनकी वृद्धावस्था की रचना है, अतः इसमें दिया गया महत्त्वपूर्ण स्थानों का विवरण अधिक विश्वसनीय है।
बीकानेर की एक और गजल जैन कवि लालचन्द ने सं. 1838 वि. जेठ सुदि 7 को बीकानेर में बनाई थी। इसकी 162 पद्यों की एक प्रति, जिसमें प्रारम्भिक 61 पद्य त्रुटित हैं, हमें मिली है, परन्तु जब तक इसकी पूर्ण प्रति उपलब्ध न हो जाये, इसका उपयोग सम्भव नहीं है।
बीकानेर नगर वर्णन से सम्बन्धित गजलों एवं विज्ञप्तिपत्रों के अतिरिक्त कुछ स्फुट सामग्री और भी मिलती है, जिसमें से एक संस्कृत भाषा का वर्णन, विज्ञप्ति-महालेख-संग्रह में प्रकाशित हुआ है तथा कुछ की मूल प्रतियाँ अ.सं. पु. बीकानेर में उपलब्ध हैं। इसी प्रकार के कवि सुरतान रचित दो छप्पय छन्द प्राप्त हुए है, जिन्हें नीचे दिया जा रहा है-
मुलक जिण नीपजै, मोठ बाजर अनमंधा।
मतीरा अर काकड़ी, सरस काचर सुगंधा।
ऊंडा पाणी पीवजै, आधण दे इधकेरा।
जठं कमला जुंग, बडा वितुंड वछेरा।
धजबंध कमंध हींदु धरम, अमल नहीं असुराणरो।
सुरताण कहे सहु को सुणो, बडौ देस बीकाणरो।।1।।
बीका कांधल विकट, वले नारायण वरदाई।
बीदावत वरीयांम, सत ध्रम लीयां सदाई।
भाटी ओपमा भड़ां, जिकै जुध भाज न जाणै।
सोनगरा सावंत, प्रसध समंद्रां परमाणै।
करणेल मात रीछा करो, हठो राज सुजाण रो।
सुरताण कहै सहु को सुणो, बडौ देस बीकाणरो।।2।।
बीकानेर नगर वर्णन सम्बन्धी सभी उपलब्ध सामग्री, जो संस्कृत, हिन्दी तथा राजस्थानी काव्यों, स्वतंत्र वर्णों एवं विज्ञप्तिलेखों आदि में प्राप्त है, उन सबका विधिवत संग्रह किया जाये तो बीकानेर के क्रमिक विकास और स्थानों की ऐतिहासिकता के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण जानकारी मिल सकती है। उदाहरणार्थ प्रस्तुत गजल में राजा सुजानसिंह के समय में बीकानेर की स्थिति में प्रामाणिक एवं सुन्दर वर्णन को लिया जा सकता है। इसमें नगर के तत्कालीन मन्दिरों, बाजारों, तालाबों, व्यवसायों एवं रहन-सहन का भेदभाव रहित वर्णन उपलब्ध होता है, वह ऐतिहासिक दृष्टि से विशेष महत्त्व का है। इस गजल की रचना के बाद नगर में बहुत कुछ परिवर्तन हुआ है। गजल में केवल आठ जैन मन्दिरों का उल्लेख है, पर वर्तमान में उनकी संख्या तीस-पैंतीस के लगभग है।
बीकानेर जैन लेख संग्रह से सम्बन्धित सामग्री का संकलन करते समय प्रस्तुत गजल की तीन हस्तलिखित प्रतियाँ उपलब्ध हुई थीं। उन्हीं के आधार पर पाठ तैयार करके पाठकों के लाभार्थ यहाँ प्रकाशित किया जा रहा है।

बीकानेर गजल
सारद मन समरूँ सदा, प्रणमुं सदगुरु पाय।
महियल में महिमा निलो, सब जन कुं सुखदाय।।1।।
वसुधा मांहे बीकपुर, दिन दिन चढ़तै दाव।
सर्व लोक सुखिया वसै, राज करे हिन्दू राव।।2।।
पर दुख भंजन रिपु दलन, सकल शास्त्र विधि जाण।
अभिनव इद अनूप सुत, श्री महाराज सुजाण।।3।।

गजल
बाजार

देख्या शहर बीकानेर, कीने शहर सगले जेर।
जिनका खूब है बाजार, मिलते बहुत है नर-नार।।4
लांबी खूब है हट श्रेणि, मिलते लोक सौदा लेणि।
बैठे बहुत साहुकार, करते वणिज अरु व्यापार।।5।।
ताके बिच देखि खूब, मंढी महल है महबूब।
बैले वहत है निज बोझ, रुके ऊंठ आवे रोज।।6।।
हासल चूकता है तेथ 1, जालिम मर्द वैसे जेथ2।
चलते बोझ करते छाप, करते दरसणी कुं माफ।।7।।
चौहटे बिच सुन्दर चौक, गुदरी जुरत है बहु लोक।
सुन्दर सेठ बैसे3 आय, वैगे खूब अंग4 बणाय।।8।।
वसते वर्ण च्यारूँ लोक, चाहै लहत जो कछु थोक।
बैठा तहां5 है बज्जाज, सौदा करत है तज लाज।।9।।
बैठे कहां ही सर्राफ, दमरे परखते दिल साफ।
बैठे बहुत तंबोलीक, भरि भरि पान की चोलीक।।10।।
बैठे जुहरी जरदार, सोना कसत है सोनार।
लोहा काम करत लौहार, भांडे घड़त है कुंभार।।11।।
गांछे पावली ठंठार, गजधर बहुत मालाकार।
धोबी धोवै है वस्त्र, सारा त्यारा करते शस्त्र6 ।।12।।
छींपे बहुत है रंगरेज, मोची चूनगर है चेज।
कादद कूट पींजारेक, डबगर माल तूंणा रेक।।13।।
चूड़ीगर चूड़ियां घडै, जड़िये जड़ाव पने7 जड़ै।
बैठे कंदोई दुकान, मंडे बहुत पकवान।।14।।
पैडे जलेबी लाडूक, करता खूब है बालूक।
फड़िये खोलते वखार, मंडे धान के अंबार।।15।।
बैठे बहुत मणिहारीक, बस्तां लेइकै सारीक।
पटुए काम करते पाट, गूंथी खूब आणे घाट।।16।।
तेली अरु फलेली धणेक, सेके भड़भुंजा चिणेक।
कांसी घड़त है कंसारेक, चातुर खूब चीतारेक।।17।।
गाँधी वैद्य अरु दरखांण, नाई खूब चतुर सुजाण।
पवन छत्तीस (36) बहुत रहैक, निज काम कुँउमहैक।।18।।

आवास

देखे नगर के आवास, नीकी कोरणी है खास।
घर घर जालियां नै गोख, बैठे करत है तिहां जोख।।19।।

चित्रकारी

सुन्दर सोहते चित्रांम, कीने खूब उस्ता काम।
लछमन कुमार सीताराम, मड़े रूप है अभिराम।।20।।
लांबी पूंछ सु हनुमान, धरि है रामजी का ध्यान।
रावण रूप मन मोहैक, दस शिष बीस भुज सोहैक।।21।।
मंड्या खूब है महादेव, करते सर्व उनकी सेव।
सिर पर चलत है गंगाक, देख्या वभूत सुं नंगाक।।22।।
करहै बैल असवारीक, उमया संग बैसारीक।
परतिश देखियँ उन पास, रमते रंग सुंदर8 रास।।23।।
रमिहै रास मंडल खूब, पासै गापियां महबूब।
चावौ चौमुखो चुतुर्भुज्ज, ब्रह्मा पास करिहै कज्ज।।24।।
गणपति देव है गाजीक, मानै लोक है राजीक।
मंडे फिरंगी हबशीक, काले जाण स्याही घसीक।।25।।
मंडे फिरंगी हबशीक, काले लाल कबाण अरु तीर।
मुगलां मूरतां मंडीक, सिर पर खूब है पधड़ीक।।26।।
मैगल वाय ही विकराल, चीते हरिण मारै फाल।
भैंसे ऊंठ अरु घोड़ेक, उनके रूप है रूड़ेक।।27।।
जंबू रोज है9 सिसलाक, वनचर रूप है सिगलाक।
कोयल काबरी10 कौवाक, सुरपां11 सारसां सूवाक।।28।।
चिड़ीया चील नै चकोर, बुलबुल बाज तीतर मोर।
और है जिनावर बरणाव, मंडे बहुत है तिहां भाव।।29।।
घर घर मालिये चित्राम, देख्यां रहत है चित्त ठाम।
घर घर मालिया मैड़ीक, उनकी खूब है पैड़ीक।।30।।
घर घर चोकियां ओटेक, मंडे बहुत है मोटेक।
ऐसे नगर के हैं गेह, देख्यां ऊपजै बहु नेह।।31।।
कहत हवतीक23 पुस्तक पर्ण, भणते तर्क अरु व्याकरण।
पासे तीन(3) है प्रासाद, देख्यां ऊपजै आह्लाद।।59।।
मूल नायक का देहराक, मदनमोहन सिर24 सेहराक।
मोटा देहरा महादेव, करिहै आय के सहु सेव।।60।।
देव जैन है महावीर, वैदों कराया गिरधीर।
थिर है और ही बहु थान, दिन दिन दीपते दीवाण।।61।।
मांटी मर्द है मूंछाल, फूठर सीह नै फूंदाल।
खांगी बांधि है सिरपाग, सूंघै अतर पहिरै वाग।।62।।
पटकै खूब लटकैदार, पहिरै सावट पैजार25।
केई मर्द अभिमानीक, केई गीत के गानीक।।63।।
केई खूब से है छैल, केई दरद्री से छैल।
केई चौपड़ खेलै सतरंज, नगर दिने वलि गंज।।64।।
केई सीह बकरी ख्याल, भरचर खेलते बहु बाळ।
केई रमत है जूवाक, हार्यां ताकते कूवाक।।65।।
केई पीवते हैं भंग, दारू पीय करते जंग।
केई मर्द है ख्यालीक, आँख्यां कैफ सू लालीक।।66।।
कहां ही पड़त है बाजीक, देख्यां लोक है राजीक।
कहां ही नाचते हैं पात्र, जोवण लोक मिलते जात्र।।67।।
कहां ही नाचते नटुवाक, पीछे करते हैं लटुवाक।
ऐसे नगर में बहु ख्याल, देखी लोक है खुशियाल।।68।।
नारी वर्णन

देखी नगर की नारीक, लागै सबन कुं प्यारीक।
सूरत सोहनी है खूब, माशूक माननी26 महबूब।।69।।
मानुं मृगा सिरसे नैन, बोलै चातुरी से वैन।
मेखां सोवनी है दंत, बिच में लाल ही ओपंत।।70।।
गोरी गात है मखतूल, पहिरै जरी के पटकूल।
झीणी ओढणी लोईक, रंगी खूब है सोइक।।71।।
नखशिखसीम गहिनै भरीक, मानूं घनविचं बिजरीक।
पग है झांझरी झणकार, वाजै घूघरी घमकार।।72।।
अंगुरी अजायब मुंदरीक, सोइ जराव सेती जरीक।
ओढ27 पास सालू लाल, चलि है हंस कैसी चाल।।73।।
ऐसी त्रिया पिउ के संग, नित नित करत है नव रंग।
अहनिश बैठके निज सेज, हसि हसि बात करते हेज।।74।।
कबही कंत सेती रैन, झगरा करत है भरि नैन।
कबही कंठ सेती मेल, कामिनी करत है बहु केल।।75।।
काचित मुख का मटकाक, ललना करत है लटकाक।
काचित रंग के रटकाक, खोजी करत है खटकाक।।76।।
काचित खरी रहै गृह द्वार, तजिकै कंत ही की कार।
काचित कूतेरी कुनार, मुहकम खावती है मार।।77।।
काचित वावती है वीण, काचित राग सूं लय लीन।
काचित भणत है गीताक, काचित करावै चीताक।।78।।
आपणी प्रिउ की दासीक, सीले जाणे सीतासीक।
सुन्दर आंजके अंखियांक, इकठा मिलत है सखियांक।।79।।
घूमर घालती है घेर, फुंदी रमत है बहु फेर।
कामी मर्द कीने जेर, परि है आय के सहु पैर।।80।।
हंसी करत है हांसीक, झखि भखि आपही जासीक।
ऐसी नगर की नारीक, छपले खूब सिणगारीक।।81।।


राज्य वर्णन

ऐसा नगर का वरणाव, पूरण पडिते न कहाव।
राजा सुजाणसिंह गाजीक, नौबत घुरत है ताजीक।।82।।
परहै दमामां की ठउर, इनसे दूर भागे चौर।
पातिसा खूब है महिरवान, देता बहुत है सनमान।।83।।
करता खूब है बगसीस, लेवै चाहिके निज शीस।
प्रजा देत है आशीस, जीवै लाख कोड़ि वरीस।।84।।
दाखां करणसा दानीक, रावण जैम अभिमानीक।
रूपै मदन का अवतार, बुद्धिबल भोज प(र)मार।।85।।
भुज बल भीम अर्जुण बाण, भलियल भाल तेजै भाण।
न्यायै रामचंद का राज, जुग-जुग जीवते महाराज।।86।।
श्री दीवाणजु के पास, बैठे पुरोहित उल्लास।
नाजर सचिव खूब खवाश, हाकिम हुकम करते रास।।87।।
चौकी देत है कोतवार, करता सबन कुं हुशियार।
सन्नध बद्ध सुभट सूरेक, प्रबल छल बल करै पूरेक।।88।।
बधते नूर है बीकाक, सुभटां सिर हरै टीकाक।
बांके मरद बीदावत, कमधज कांधले त्तरात।।89।।
भुजबली भीम है भाटीक, मददां सिरहरै मांटीक।
मांझी मरुधरा के मौड़, वावे सुभट है राठौड़।।90।।
दाढे मीर दौढीदार, रावे बहुत हैं चोपदार।

गज (हाथी) वर्णन

ठाढे द्वार हैं महाराज, अहनिश झूलते गजराज।।91।।
मैंगल मदसुं झरतेक, देची लोक थरहरतेक।
मदझर घूमते हाथीक, चलते हेमाचल साथीक।।92।।
सुन्दर फौज के सिणगार, सोभे राज के दरबार।

हय (घोड़ा) वर्णन

हयवर करत हैं हैखार, तेजी खूब है तोखार।।93।।
कच्ची कूदणा केकाण, साचा पवन वगी जाण।
बंके खग्ग खुरसाणीक, मनहर खूब मुलताणीक।।94।।
ऊंचे गात ऐराककीक, ताते बहुत हैं तुरकीक।
झूलां ऊपरै जरीकीक, सुन्दर शोभ है ताकीक।।95।।
धूने धाट खंधारीक, करते आप असवारीक।
नव नव चाल करते खुरीक, वर्णे लालपीळे तुरीक।।96।।
प्रतपौ जां लगै रविचंद, कहता जती उदयचंद।
सुनि कर देइजो साबाश, गजल खूब कानी रास।।121।।

झूलणा

संवत सतरै से पैसटै रे, मास चैत में पूरी गजल कीनी।
मात शारद कै सुपसाय सुरे, मुझे खूब करण की मति दीनी।।122।।
बीकानेर शहर अजब है रे, च्यार चक में ताकी प्रसिद्धि लिनी।
उदयचंद आणंद सु यूं कहै रे, भले चातुरक लोक कै चित्त भीनी।।123।।
चक च्यारे नव खंड में रे, प्रसिद्ध बधावो बीकानेर तांई।
छत्रपति सुजाणसाह युग जीवो, जाके राज में बाजै नौबत घाइ।।124।।
मन रंग सुं खूब बणाय कै रे, सुणाय कै लोक में स्याबास पाई।
कवि चंद आणंद सुं यूं कहै रे, गिगड़धूं गिगड़धूं गजल खूब गाई।।125।।

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