छैलू चारण “छैल”
इतियास पुरुष इण महाराणा री याद घणैरी आवै है
उण पूत सपूता मायड़ रां री याद घणैरी आवै है
जिण बगत देस में मुगलां रै आतंक रा रोळा चालै हा
हुकुम बिना तुरकां रै जद पत्ता तक कोनी हालै हा
मरजादा रो मान मरण में कसर रत्ति भर कोनी ही
सगळा राजन री रसनावां जद अकबर आगे मोनी ही
उण बगत शूरमो एक अटल आजादी रा गुण गावै है
उण जयवंता रै जायोड़ै री याद घणैरी आवै है।।
आजादी री साख बचावण शूर सदा ही आगे हो
डूबतड़ै सूरज में बो परभात किरण सी लागै हो
मेवाड़ धरा रो मान राण नित रो ही ऊंच रखायो हो
एकलिंग रो मुकुट मनोहर निज तेजस सूं चमकायो हो
राजमहल रमणै री बैळ्यां तरवारां सूं खैले हो
बचपण सूं कीको वीर रहयो साथ्यां में सबसूं पैले हो
याद करां उणनै जद भी छाती चोड़ी व्है ज्यावै है
उण जयवंता रै जायोड़ै री याद घणैरी आवै है।
अकबरिये हर बार झुकावण दूत घणैरा भेज्या हा
महाराणा हर बार उणानै बात सांचली कहग्या हा
जद तक रजपूती खून रगां आफत सूं कदैई रुकूं नहीं
सिर कटज्याणो मंगळ है पण थारै किणरै झुकूं नहीं
जै झुकूं जरा सो मैं सुणल्यो बा एकलिंग री चोखट है
सोगन्ध उणारी खाय कहूँ म्हनै राखणी रजपत है
इसड़ी बातां नै सुण सुण के हिवड़ो म्हारो हरसावै है
उण जयवंता रै जायोड़ै री याद घणैरी आवै है।।
स्सै रजवाड़ा झुक ग्या हा पण महाराणा अडिग कहाया
दुसम्यां रै खेमे उणी बगत दशहत रा बादळ मंडराया
मूंछ पाग री शाख भरणियो महाराणा उण दिन एकल हो
पण उज्जळ सूरज हिंदवाणी भूल्यो नी माटी इक पल हो
भीलां अर लोहागरियां नै बो सदा आपरा जाण रख्या
दोन्यूं कोमां रा शूरवीर हर बगत राण रै साथ डट्या
ऊंच नीच अर जात पांत रा भेद जिको मिटवावै है
उण जयवंता रै जायोड़ै री याद घणैरी आवै है।।
सुख दुख रो संगी चेटकड़ो सांसां सांसां में साथै हो
राणा रै पथ रो अनुगामी सुपणो राणा रो माथै हो
स्वामीभगती री कई मिसालां उणरै आगै फीकी ही
रणखेत लड़ंता शूरां में चेटक री फुरती दीखी ही
टापां चेतक री टप टप टप हळदीघाटी में बाजै ही
दुसम्यां सूं लोहो लेवण नैं हाकल राणा री गाजै ही
हळदीघाटी रो कण कण ओज्यूं जिणरी जसगाथा गावै है
उण जयवंता रै जायोड़ै री याद घणैरी आवै है।।
पण आज अकब्बर म्हान सुणां जद छाती धप धप धुक ज्यावै
खून रगां में उबळै है और शीश शरम सूं झुक ज्यावै
नोरोजा लेवणिया जद आज किताबां बिड़दीजै है
नैणां रतगोळा रगत तणा लोहो लेवण नै छीजै है
हूं आज कहूं हूं आजादी रो सुपणो राणा ही बीज्यो हो
उण बगत एकलो हिंदवाणी भाला तलवारां रीझ्यो हो
जिणरै कारण ही आज धरा जय जय रजथान कहावै है
उण जयवंता रै जायोड़ै री याद घणैरी आवै है।।