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Thursday, September 19

महत्वपूर्ण चुनावों के परिणाम बहुत कुछ कहते हैं
देश की राजनीति में करवट से पूर्व की हलचल

संजय आचार्य वरुण
आज का दिन भारतीय लोकतंत्र में जनता की ताकत का दिन है । दो दिन में चार महत्वपूर्ण चुनावों के परिणाम सामने आए हैं । पहला दिल्ली एम सी डी के चुनाव परिणाम, गुजरात विधानसभा, हिमाचल विधानसभा और राजस्थान में सरदारशहर उप चुनाव। चारों ही परिणाम यह स्थापित करते हैं कि भारत में लोकतंत्र अपने सम्पूर्ण सौन्दर्य के साथ विद्यमान है। भारत की जनता अंधेरा नहीं ढोती। विकास और काम का दावा करने वाली तीन प्रमुख पार्टियों को तीन अलग – अलग भूमिकाओं में काम करके दिखाने का अवसर इन चुनावों में जनता ने दिया है। ये वास्तविक अर्थों में ‘जनादेश’ है । आइए, दावे तो बहुत हो गए, अब राजनीति से ऊपर उठकर थोड़ा काम भी हो जाए । ध्यान रहे, ये सत्ता का सेमी फाइनल हुआ है। अभी तक जनता जनार्दन ने किसी को खारिज नहीं किया है। फाइनल में जनता उसे ही देश की कमान सौंपेगी जिसके दावे और वादे यथार्थ की जमीन पर चहल कदमी करते दिखाई देंगे। राजनीतिक विश्लेषक चारों परिणामों की पारम्परिक शैली में व्याख्या करना शुरू हो गए हैं। दिल्ली को आप का और गुजरात को बीजेपी का गढ़ बताया जा रहा है। हिमाचल में हर चुनाव में सरकार बदलने की परिपाटी बताई जा रही है। इसी तरह राजस्थान के उप चुनाव में सहानुभूति के साथ ही स्व. पं. भंवरलाल शर्मा के प्रभाव को कांग्रेस की जीत का कारण माना जा रहा है ।
दरअसल, ये सभी चुनाव परिणाम जितने सरल और सहज दिख रहे हैं, उतने हैं नहीं। ये परिणाम बीजेपी सहित सभी पार्टियों को लोकसभा चुनावों से पूर्व गहन आत्म चिंतन करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है। जो पार्टी इस अवसर को समझकर इसका लाभ उठा लेगी, निश्चित रूप से अगला चुनाव उसी का होगा। अगर बीजेपी गुजरात के परिणामों से आत्म मुग्ध होकर यह मानकर आश्वस्त होती है कि ये मोदी मैजिक है, तो ये उसकी ऐतिहासिक भूल सिद्ध हो सकती है।
राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ ने निश्चित ही उनके स्वयं के राजनीतिक करियर और कांग्रेस पार्टी में नये प्राण फूंके हैं लेकिन गुजरात के परिणाम आगे की यात्रा की हवा निकाल सकते हैं, इसमें भी कोई संदेह नहीं। इन चुनाव परिणामों ने आम आदमी पार्टी को सीधे तौर ये संदेश दिया है कि दो अव्यवस्थित प्रदेशों में सरकार बनने के अर्थ राष्ट्रीय पार्टी हो जाना नहीं होते। वोट प्रतिशत के आंकड़ों के अनुसार भले ही वे ‘आप’ को राष्ट्रीय पार्टी मान सकते हैं परन्तु जनता किसी को भी आईना दिखाने में कभी संकोच नहीं करती।
सभी नेताओं और खास तौर से अरविंद केजरीवाल और भगवंत मान को यह समझने की आवश्यकता है कि रैलियों और सभाओं में आने वाली भीड़ हर बार वोट में तब्दील नहीं होती।
भारतीय जनता पार्टी को इन चुनावों के बाद सबसे ज्यादा सावधानी से काम करने की जरूरत है। जिस तरह से भाजपा ने गुजरात को फिर से कमाया है, ठीक उसी तरह से कांग्रेस राजस्थान को फिर से अपने पास ही रखने के लिए जी जान से लगी हुई है । ऐसे में सरदारशहर उप चुनाव की जीत उनके मनोबल को बढ़ाने वाली ही साबित होगी, फिर चाहे परिणाम के कारण कुछ भी रहे होंगे। ओवैसी जैसे अमर्यादित नेताओं को भारतीय वोटर्स ने एक तरह से खारिज कर दिया है, ये जरूरी भी था। आगे के एक दो चुनावों में रही- सही कसर भी निकल जाएगी।
केजरीवाल भले ही अति आत्मविश्वास में भले ही कुछ खास नहीं कर पाए किन्तु दिल्ली एम सी डी के चुनाव जीतने के बाद उनका भाषण आज की अभद्र राजनीति को बहुत कुछ सिखाने वाला और अहंकार भाव से कोसों दूर था। हाल के वर्षों में भारतीय राजनीति में इतनी शालीनता कम ही देखने को मिलती है। सभी पार्टियों को ये भाषण जरूर सुनना चाहिए और संभव हो तो उस सौम्यता को अपनाने के प्रयास भी करने चाहिए ताकि आने वाले वर्षों में हम पाकिस्तान बनने से बचे रहे हैं जहां की राजनीतिक भाषा में ‘तू-तड़ाक’ और गाली- गलौज के बगैर बयान ही नहीं दिए जाते हैं। हमारे यहां विपक्षी शत्रु नहीं होते । इस देश ने पी.वी. नरसिम्हा राव, अटल बिहारी वाजपेयी और युवा तुर्क कहे जाने वाले चंद्रशेखर जी के आपसी रिश्ते और सदन में घोर विरोध के दृश्य देखे हैं। हमें अर्थात हमारे राजनेताओं को एक- दूसरे का व्यक्तिगत सम्मान रखते हुए वैचारिक विरोध और असहमतियां दर्ज करानी चाहिए। बहरहाल, सभी स्थानों पर जनादेश का सभी दलों को खुले हृदय से स्वागत करना चाहिए। जय हिन्द।

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