संजय आचार्य ‘वरुण’
पान, आज से नहीं बल्कि हजारों वर्षों से भारतीय संस्कृति का अंग रहा है। प्राचीन पूजा पद्धतियों में भगवान को पान चढ़ाने का उल्लेख मिलता है तो मुगलकाल में भी पान का उपयोग होने के अनेक प्रसंग उपलब्ध हैं। कलाप्रेमी लोगों के बीच पान हमेशा लोकप्रिय रहा है। आज भी टीवी और फिल्मों में शायर के किरदार को पान का शौकीन बताया जाता है। ‘डॉन’ सहित अमिताभ बच्चन की अनेक फिल्मों में
उन्हें पान का बेहद शौकीन दिखाया गया है। भारत के लखनऊ और कानपुर आदि अनेक शहर अपनी पान संस्कृति के लिए प्रसिद्ध रहे हैं। वाजिद अली शाह जैसे कई इतिहास प्रसिद्ध नवाब पान चबाना अपनी शान समझते थे।
भारतीय जीवन शैली में बहुत पुराने समय से भोजन आदि के बाद पान का पत्ता चबाने की परम्परा रही है। यही कारण है कि देवी- देवताओं को नेवैद्य अर्पित करने के बाद ताम्बूल अर्पित करना जरूरी है। भारतीय संस्कृति के लगभग सभी मांगलिक कार्यों में पान यानी ताम्बूल की भूमिका रहती है। स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से देखा जाए तो पान के पत्ते का रस भोजन के पाचन में सहयोगी रहता है इसलिए भारत मे शताब्दियों से पान खाने की परम्परा रही है।
करोड़ों की संख्या में हैं बीकानेरी पान के प्रशंसक
बीकानेर केवल भुजिया, पापड़ या रसगुल्लों के लिए ही प्रसिद्ध नहीं है बल्कि यहाँ के पान भीसात समंदर पार तक प्रसिद्ध हैं। पिछले तीन दशक में गुटखों का प्रचलन बहुत ज्यादा बढ़ जाने के बावजूद पान की लोकप्रियता में कहीं कोई कमी नहीं आई है। गुटखा तो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है लेकिन सीमित मात्रा में सेवन करने पर पान नुकसान दायक नहीं होता बशर्ते कि पान में डाली जाने वाली सामग्री गुणवत्ता वाली हो। लोग पान में तेज जर्दा और किमाम आदि डालकर खाते हैं, इससे पान एक दुर्व्यसन का रूप ले लेता है। पान लगाने का बीकानेरी तरीका उसके जायके को कई गुणा बढ़ा देता है।बीकानेर के पनवाड़ी कत्थे को दूध में उबालकर तैयार करते हैं। पान पर चूना- कत्था लगाकर उसे कुछ देर तक रसीजने के लिए छोड़ दिया जाता है। उसके बाद जब उसमें सपारी, गुलकन्द, इलायची, सुगन्धित चटनी, मुलेठी और खुशबू आदि डालकर बीड़ा बनाया जाता है तो हर किसी का मन पान के लिए ललचा जाता है।
वैसे तो हिन्दुस्तान में लखनऊ, कानपुर और बनारस आदि अनेक शहर अपनी पान संस्कृति के लिए मशहूर रहे हैं लेकिन रेगिस्तानी शहर बीकानेर भी अपने पान प्रेमी मिजाज के लिए कई दशकों से जाना जाता रहा है। इस शहर की पान की अनेक प्रसिद्ध दुकानें देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी अपने नाम से पहचानी जाती हैं। बीकानेर में आज की तारीख में हजारों लोग ऐसे हैं जिन्होंने दशकों पहले 25 पैसे यानी चवन्नी का पान खाया हुआ है और आज वे ही लोग 25 रुपये का पान भी खा रहे हैं। हजारों की संख्या में ऐसे भी लोग मिल जाएंगे जो आधी सदी से भी ज्यादा समय से नियमित रूप से पान का सेवन कर रहे हैं। बात करें आंकड़ों की तो बीकानेर में प्रतिदिन लगभग दो लाख पान के पत्तों की खपत होती है। इसमें तकरीबन डेढ़ लाख मीठा बांग्ला पत्ता, 35 हजार मद्रास पत्ता और तीन हजार बीबला पान शामिल है। बीकानेर के लोगों की तासीर है कि जिससे भी प्रीत करते हैं, पूरी तरह डूब कर करते हैं, इनकी यही आदत पान पर भी लागू होती है, ये लोग एक समय रोटी के बगैर रह सकते हैं लेकिन पान के बगैर नहीं। बीकानेर के पान की सबसे बड़ी खासियत यह है कि जिस व्यक्ति ने एक बार यहाँ का पान खा लिया फिर वो हमेशा के लिए बीकानेरी पान का कायल हो जाता है।