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Friday, September 20

21वीं सदी की राजस्थान की हिन्दी कविता दशा और दृष्टि पर श्रीडूंगरगढ़ में आरंभ हुआ दो दिवसीय कविता समारोह

“लोक जागरण करते हुए संस्कृति की संवाहक होती है कविता”

अभिनव न्यूज।
श्रीडूंगरगढ़: राजस्थान की हिन्दी कविता ने लोक जागरण का उत्कृष्ट कार्य किया है। कविता खुद से साक्षात्कार करने का अवसर देती है। कविता सही मायनों में संस्कृति की संवाहक होती है। कविता के विभिन्न आयामों, सरोकारों, महत्ता और जनमानस में काव्य भाव सहित काव्य परंपरा पर ऐसे अनेक

विचार शनिवार को प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों से आए साहित्यकारों ने व्यक्त किए। मौका था “इक्कीसवीं सदी की राजस्थान की हिन्दी कविता दशा व दृष्टि” विषय पर संस्कृति भवन श्रीडूंगरगढ़ में आयोजित दो दिवसीय कविता समारोह के पहले दिन का। राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति व राजस्थान साहित्य अकादमी के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित कविता समारोह का शुभारंभ साहित्यकार डा.नंद भारद्वाज, राजस्थान साहित्य अकादमी अध्यक्ष दुलाराम सहारण, राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति अध्यक्ष श्याम महर्षि, साहित्यकार डा.गजादान चारण, कवि व जिला परिवहन अधिकारी नेमीचंद पारीक ने किया।

उद्घाटन सत्र में वरिष्ठ साहित्यकार डा.नंद भारद्वाज ने विचार व्यक्त करते हुए बताया कि इतिहास साक्षी है कि राजस्थान की हिन्दी कविता ने लोक जागरण के लिए महत्वपूर्ण कार्य करते हुए मनुष्य में मनुष्यता के भाव जाग्रत किया है। यहां की कविता में राष्ट्रीय फलक के बेहतरीन तत्व सदैव मौजूद रहे है। उन्होंने कहा कि कविता के इन्हीं भावों की अक्षुण्णता के लिए समवेत प्रयास करने चाहिए। इस मौके पर राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर के अध्यक्ष दुलाराम सहारण ने कहा कि कविता और कवियों ने सदैव लोकतांत्रिक प्रतिमानों को स्थापित करने का कार्य किया है। सहारण ने राजस्थान साहित्य

अकादमी उदयपुर के उद्देश्य व आगामी योजनाओं की जानकारी देते हुए कहा कि अकादमी साहित्य विकास के लिए वातावरण निर्माण में सजग व सक्रिय है। सत्र के दौरान कवि नेमीचंद पारीक ने कहा कि कविता मनुष्य को स्वयं से साक्षात्कार करने का अवसर देती है। पारीक ने काव्य कर्म में मूल्यांकन करने की तथा आमजन में काव्य सम्मान व काव्य अनुराग के भाव जाग्रत करने का आह्वान किया। सत्र के प्रारंभ में विषय प्रवर्तन करते हुए साहित्यकार डा.गजादान चारण ने कविता को संस्कृति की संवाहक बताते हुए कहा कि राजस्थान की हिन्दी कविता ने लोक चेतना का संचार करते हुए विश्व फलक पर अपनी सशक्त श्रेष्ठता सिद्ध की है। इस मौके पर राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति अध्यक्ष साहित्यकार श्याम महर्षि ने कहा कि राजस्थान की हिन्दी कविता को श्रेष्ठ दशा और दृष्टि प्रदान करने के लिए हमें प्रतिबद्धता के साथ युवा पीढ़ी व आमजन में काव्य संस्कार जगाने होंगे। उद्घाटन सत्र का संचालन करते हुए साहित्यकार रवि पुरोहित ने कहा कि रचनाकार समाज को सर्वश्रेष्ठ दिशा बोध और दृष्टि प्रदान करता है। प्रारंभ में कवयित्री मधुर परिहार ने सरस्वती वंदना व समापन पर महावीर माली ने आभार जताया। इस मौके पर अतिथियों का अभिनंदन किया गया।

कविता सम्मेलन का प्रथम सत्र”इक्कीसवीं सदी की कविता में लोक का आलोक” विषय पर आयोजित किया गया। साहित्यकार डा.अनिता वर्मा, राजस्थान साहित्य अकादमी कोषाध्यक्ष कमल शर्मा व साहित्यकार डा.कृष्णलाल विश्नोई के आतिथ्य में हुए इस सत्र में डा. जगदीश गिरि ने पत्र वाचन करते हुए कहा कि देश व समाज तथा जन मन में सकारात्मक बदलाव करने में कविता ने अपनी सशक्त भूमिका निभाई है। अतिथियों ने इस मौके पर इक्कीसवीं सदी में रचे जा रहे काव्य सृजन को मनुष्यता व जीवन को सुंदर बनाने का सबसे सशक्त माध्यम बताया। सत्र का संचालन करते हुए कवि डा.घनश्यामनाथ कच्छावा ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि राजस्थान की हिन्दी कविता ने हर दौर हर परिस्थिति में हर वर्ग की उत्कृष्टता को नवीन आयाम दिए है। कविता सम्मेलन के प्रथम दिन दूसरा सत्र “चेतना व आश्वस्ति का स्वर:राजस्थान की इक्कीसवीं सदी की हिन्दी कविता” विषय पर केन्द्रित रहा। समालोचक डा. मदन सैनी व मधुमति संपादक डा.बृजरतन जोशी के आतिथ्य में हुए सत्र में कोटा की साहित्यकार डा. अनिता वर्मा ने पत्रवाचन करते हुए कहा कि जीवन के तमाम सरोकारों व भावों को अभिव्यक्त करने में कविता हर युग में महत्वपूर्ण माध्यम रही है। कविता ने सदैव प्रेरक मार्गदर्शन कर बेमिसाल बदलाव किए है। वहीं साहित्यकार डा.रेणुका व्यास नीलम ने पत्रवाचन करते हुए कहा कि कविता ने जाति, वर्ग, अर्थ से परे रहते हुए सदैव निस्वार्थ भाव से मनुष्यता को जीवित रखने, संस्कार कायम रखने का संदेश दिया है। सत्र की अध्यक्षता कर रहे डा.मदन सैनी ने कविता की महत्ता बताते हुए कहा की कविता मनुष्य के भीतर की निष्कपट सौरम को विस्तार देती है। कविता एक सच्चे साथी की तरह मनुष्य को सन्मार्ग का राही बनाती है। वहीं अतिथि डा.बृजरतन जोशी ने कहा कि कविता युग को श्रेष्ठ बनाती है। कविता विचारों को सशक्त करते हुए परिपक्वता विकसित करती है। सत्र का संचालन कवयित्री डा.विमला महरिया ने किया। इस मौके पर साहित्यकार मालचंद तिवाडी, पूर्व प्रधान दानाराम भाम्भू, नवनीत पांडे, महेश जोशी, विजय महर्षि, महावीर सारस्वत,फारूक चौहान, गोविंद जोशी, बुधराम विश्नोई आदि मौजूद रहे।
रविवार को होगा समापन
राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति सचिव रवि पुरोहित ने बताया कि दो दिवसीय कविता समारोह के दूसरे दिन रविवार को सुबह 10 बजे “समय का साक्ष्य राजस्थान की कविता” विषय पर डा.चेतना स्वामी व नवनीत पांडे के आतिथ्य में डा. मदन गोपाल लढ्ढा व मोनिका गौड़ का पत्रवाचन होगा वहीं साहित्यकार मालचंद तिवाङी व नटवरलाल जोशी के आतिथ्य में दोपहर 12 बजे दो दिवसीय कविता समारोह का समाहार होगा।

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