भव्य और विशाल स्वागत जुलूस से किया अभिनंदन
बीकानेर। आठ वर्षों से अधिक समय के पश्चात् अध्यात्म की गंगा बहाने को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण अपनी धवल सेना के साथ गंगाशहर में पधारे तो मंगलवार का दिन गंगाशहरवासियों के लिए महामंगल बन गया। श्रद्धाभावों से ओतप्रोत गंगाशहरवासियों ने भव्य व विशाल स्वागत जुलूस के साथ अपने आराध्य का भावभीना अभिनंदन किया। बीकानेर शहर से तेरापंथ के आचार्य महाश्रमण प्रातःकाल की मंगल बेला में
प्रस्थित हुए। श्रद्धालुओं पर आशीषवृष्टि कर कुछ आगे ही बढ़े थे कि आस्था, उल्लास व उमंग से ओतप्रोत गंगाशहरवासियों का हुजूम उमड़ पड़ा। आचार्यमहाश्रमण के स्वागत के लिए मात्र तेरापंथ समाज ही नहीं, गंगाशहर का हर वर्ग और समाज आतुर नजर आ रहा था। इस कारण दो-तीन किलोमीटर की दूरी भी मार्ग में उपस्थित लोगों के कारण नगण्य-सी नजर आ रही थी। आचार्य महाश्रमण ने जैसे ही गंगाशहर की सीमा में प्रवेश किया, उपस्थित हजारों श्रद्धालुओं के जयघोष से वातावरण गुंजायमान हो उठा। रास्ते में गंगाशहर के इतिहासों को दर्शाती अनेक झाकियां, अपने-अपने गणवेश में सुसज्जित लोग, हाथों में जैन ध्वज, जयघोष के बैनर आदि लेकर चल रहे थे। भव्य जुलूस के साथ आचार्यश्री जन-जन को आशीष से आच्छादित करते हुए बढ़ चले। मार्ग में आचार्यश्री से मंगलपाठ श्रवण कर एक मार्ग का नाम अहिंसा मार्ग भी रखा गया।
जिला कलेक्टर भी सहभागी बने यात्रा में
मार्ग में बीकानेर जिलाधीश भगवती प्रसाद कलाल भी आचार्यश्री के दर्शन कर आशीष प्राप्त करने के साथ ही आचार्यश्री की यात्रा में संभागी बने। आचार्यश्री के तेरापंथ भवन में पधारने पर श्रद्धालुओं के जयघोष से पूरा क्षेत्र गुंजायमान हो उठा। आचार्यश्री तेरापंथ भवन में स्थित तेरापंथ के नवमें अनुशास्ता गणाधिपति आचार्यश्री तुलसी के महाप्रयाण कक्ष में पधारे और वहां कुछ क्षण आसीन होकर ध्यानस्थ हुए।
उपस्थित श्रद्धालुओं को पावन पाथेय प्रदान करते हुए आचार्यश्री महाश्रमणजी ने कहा कि दुनिया में मित्र बनाए जाते हैं। लोग अपने विचारों और भावनाओं के कारण मित्र बनाते हैं, किन्तु शास्त्रों में कहा गया है कि मनुष्य की स्वयं की आत्मा की उसकी सच्ची मित्र होती है। आदमी स्वयं ही अपना मित्र और शत्रु होता है। हिंसा, चोरी, झूठ जैसी बुरी प्रवृत्तियों में रत आत्मा आदमी के शत्रु के समान और सद्भाव, प्रेम, दया, ध्यान, साधना, जप, योग और तप जैसे सद्कार्यों में रत आत्मा आदमी की मित्र होती है। इसलिए आदमी को अपनी आत्मा को मित्र बनाने का प्रयास करना चाहिए, ताकि स्वयं की आत्मा व्यक्ति की कल्याण मित्र बन सके।
आचार्यश्री ने गंगाशहर आगमन के संदर्भ में कहा कि वर्ष 2014 के मर्यादा महोत्सव के उपरान्त साधिक आठ वर्षों के बाद गंगाशहर आना हुआ है। परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी का महाप्रयाण इसी भवन के कक्ष में हुआ था। परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने गंगाशहर में ही मुझे अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था। परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी द्वारा मुनि नथमलजी (टमकोर) को गंगाशहर में ‘महाप्रज्ञ’ अलंकरण प्रदान किया। परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी ने साध्वी कनकप्रभाजी को यही ‘साध्वीप्रमुखा’ पद पर मनोनित किया था। धर्मसंघ में गंगाशहर बहुत प्रतिष्ठित क्षेत्र है। यहां साध्वियों का सेवाकेन्द्र भी संचालित है। यह क्षेत्र अनेकानेक चारित्रात्माओं को भी प्रदान करने वाला क्षेत्र है। यहां के लोगों में परस्पर सद्भाव बना रहे, सबमें शांति रहे।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व कार्यक्रम में उपस्थित श्रद्धालुओं को साध्वीप्रमुखा साध्वी विश्रुतविभाजी ने भी उद्बोधित किया। आचार्यश्री के स्वागत में मुनि शांतिकुमारजी ने अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति दी तो मुनि श्रेयांसकुमारजी ने गीत का संगान किया। कार्यक्रम के अंत में गंगाशहर सेवाकेन्द्र में सेवादायी साध्वी कीर्तिलताजी ने अपने हृदयोद्गार व्यक्त किए। साध्वीवृंद द्वारा गीत का संगान हुआ। तेरापंथी सभा-गंगाशहर के अध्यक्ष श्री अमरचंद सोनी, तेरापंथ न्यास-गंगाशहर के ट्रस्टी श्री विमल चौपड़ा, उपासक श्रेणी के संयोजक श्री सूर्यप्रकाश श्यामसुखा, तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम-गंगाशहर के अध्यक्ष श्री मिलाप चौपड़ा व पार्षद श्रीमती सुमन छाजेड़ ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। तेरापंथ महिला मण्डल, तेरापंथ युवक परिषद व अणुव्रत समिति के अध्यक्ष श्री राजेन्द्र बोथरा ने पृथक्-पृथक् गीत का संगान किया।
कार्यक्रम में उपस्थित बीकानेर नगर निगम की महापौर श्रीमती सुशीला कंवर ने अपने पार्षदों के साथ आचार्यश्री के समक्ष उपस्थित होकर सम्मान सहित नगर की प्रतीकात्मक चाबी समर्पित कर अपनी भावाभिव्यक्ति दी तो आचार्यश्री ने उन्हें व मंगल आशीष व पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि यह प्रतीकात्मक चाबी का समर्पण भी बहुत सम्मान की बात है। यहां की जनता में सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति के भाव बने रहें।