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Tuesday, September 17

Editorial

तिरछा तीर: वो कब समझेंगे, जिनका समझना जरूरी है..

तिरछा तीर: वो कब समझेंगे, जिनका समझना जरूरी है..

Editorial, home, rajasthan, संपादकीय
■ संजय आचार्य वरुण सुबह - सुबह सात बजे किसी ने जोर से हमारे घर का दरवाजा खटखटाया। हमने नींद से जागकर आंखें मसलते हुए दरवाजा खोला तो देखा कि हमारे परम मित्र चकरम जी गेट पर खड़े हैं। हमने कहा कि 'अरे चकरम जी, आप इतनी सुबह हमारे घर…' हम अपनी बात पूरी करते इससे पहले ही हमें लगभग धकियाते हुए चकरम जी बंगाल की खाड़ी से उठने वाले किसी तूफान की तरह हमारे घर में घुस गए। आंगन में लगी टेबल- कुर्सी पर आराम से जमकर बैठते हुए बोले- 'अभी हमसे कुछ मत पूछिए मित्र, अभी हमारा सिर भन्नाया हुआ है। रात भर बिजली ने हमारे साथ कबड्डी खेली है..हम पूरी रात जागे हुए हैं। अभी सुबह बिजली आई तब तुम्हारी भाभी सोई है। हमें नींद नहीं आई तो हम चाय पीने के लिए तुम्हारे यहां चले आए।' चकरम जी ने एक ही सांस में सब कुछ कह डाला। हम अपनी पत्नी को चाय का बोलने अंदर आए तो देखा कि वह मंदिर में बैठी हुई भगवान को इस तर...
दृष्टिकोण: भाजपा के मजबूत किले में सेंध लगा पाना कांग्रेस के लिए मुश्किल

दृष्टिकोण: भाजपा के मजबूत किले में सेंध लगा पाना कांग्रेस के लिए मुश्किल

bikaner, Editorial, Politics, rajasthan, मुख्य पृष्ठ, संपादकीय
संजय आचार्य "वरुण" लोकसभा चुनाव 2024 की चौसर बिछ चुकी है। तारीखों की घोषणा भी हो चुकी है। राजस्थान में मतदान 19 और 26 अप्रेल को दो चरणों में होगा। 4 जून को मतगणना के साथ परिणाम घोषित होंगे।कांग्रेस के उम्मीदवार का नाम सामने आने से पहले बीकानेर जिले में इस बार मुकाबला रोचक होने की उम्मीद थी परन्तु कांग्रेस ने विधायक का चुनाव हारे हुए गोविंद राम मेघवाल को प्रत्याशी बनाकर भाजपा प्रत्याशी और केन्द्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल को लगातार चौथी जीत का तोहफा दे दिया है। ऐसा पूरे बीकानेर में माना जा रहा है। तीसरी ताकत बीकानेर में न तो पहले किसी चुनाव में उभर पाई है और न ही आगे ऐसी कोई संभावना दिखाई देती है। कई बार देवीसिंह भाटी बागी बनकर भाजपा के लिए थोड़ी बहुत मुश्किल खड़ी कर दिया करते थे लेकिन अब तो वे भी दल बल सहित भाजपा में हैं। स्वाभाविक है कि गोविंद राम मेघवाल चुनाव जीतने और पिछली हार को भ...
सृष्टि के कण- कण में वायु की तरह रमे हुए हैं राम

सृष्टि के कण- कण में वायु की तरह रमे हुए हैं राम

Editorial, National, rajasthan, मुख्य पृष्ठ, संपादकीय
संजय आचार्य वरुण राम । न जाने कितनी शताब्दियों से अनगिनत लोगों को जीवन के प्रत्येक पल में आनंद देने वाला शब्द। भाषागत अर्थों से परे शब्द है -राम। हर्ष, विषाद, अभिवादन, स्वागत, विश्राम, साहस, ऊर्जा, आरम्भ, अन्त और जीवन से जुड़े न जाने कितने अर्थों में राम रमे हुए हैं। एक चरित्र होकर इतना अनन्त और व्यापक होकर सृष्टि के कण- कण में वायु के समान रम जाना ही 'राम' होना होता है। महाराज दशरथ के पुत्र राम के समान अद्भुत और अनुपम चरित्र तो संसार के किसी भी ग्रन्थ में देखने को नहीं मिलता लेकिन साथ ही उनका नाम 'राम' भी अनुभूतियों, अर्थों और कल्पनाओं से परे एक ऐसा शब्द है जिसके प्रभाव भाषा वैज्ञानिकों और मनो विज्ञानियों की समझ से भी परे हैl राम शब्द स्वयं अपने आप में एक चमत्कार है। अगर कोई राम शब्द के सामर्थ्य को अनुभव करते हुए जीना चाहे तो उस मनुष्य के लिए सब कुछ जो सकारात्मक और सृजनात्मक है, वह सम...
दृष्टिकोण : विश्वास नहीं होता कि ये भारतीय संसद है

दृष्टिकोण : विश्वास नहीं होता कि ये भारतीय संसद है

Editorial, मुख्य पृष्ठ, संपादकीय
संजय आचार्य वरुण संसद भवन परिसर में सांसदों का एक झुंड खड़ा है। उनमें से एक सांसद भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की नकल उतार रहा है। वह बेहूदा तरीके से उपराष्ट्रपति जी के बोलने और खड़े होने के अंदाज का मजाक उड़ा रहा है। उसके आसपास खड़े सांसद ठहाके लगाते हुए एक उच्च संवैधानिक पद पर आसीन बुजुर्ग की खिल्ली उड़ा रहे हैं। इस देश के प्रमुख राजनीतिक परिवार के उत्तराधिकारी और स्वयं को प्रधानमंत्री पद का दावेदार समझने वाले राहुल गांधी उस फूहड़ टी एम सी सांसद कल्याण बनर्जी का विडियो बना रहे हैं। भारतीय संसद के दरो- दीवारों और इस देश के लोगों ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि जिस संसद में पंडित जवाहरलाल नेहरू, बाबा साहेब अम्बेडकर, गोविंद बल्लभ पंत, सरदार पटेल, लाल बहादुर शास्त्री सहित न जाने कितने महान व्यक्तित्वों ने बैठकर भारत की गरिमा को विश्व भर में प्रतिष्ठित किया था, आज उसी संसद में कल्...
दृष्टिकोण: विरोध की नहीं, सहयोग की राजनीति हो, जनादेश को स्वीकार करने के अर्थ तक पहुंचें

दृष्टिकोण: विरोध की नहीं, सहयोग की राजनीति हो, जनादेश को स्वीकार करने के अर्थ तक पहुंचें

Editorial, rajasthan, मुख्य पृष्ठ, संपादकीय
संजय आचार्य वरुण पिछले तीन महीनों से चल रहा दावों, प्रयासों और कयासों का सिलसिला कल 3 दिसम्बर को अगले पांच सालों के लिए पूरी तरह से समाप्त हो गया है। अब एक इस बात के कयास बचे रह गए हैं कि अगला मुख्यमंत्री कौन होगा ? ऐसा लगता है कि इस सवाल का जवाब भी आज- कल में ढूंढ़ ही लिया जाएगा। यह लोकतंत्र की खूबसूरती है कि इसमें अहम और वहम दोनों के लिए कोई स्थान नहीं है। जिस किसी पर भी सत्ता का अहम और जीत का वहम हावी हुआ नहीं कि जनता जनार्दन उसे जमीन पर लाकर खड़ा कर देती है। लगातार पांच साल तक एक शक्तिशाली जीवन जीते हुए जैसे ही नेतागण यह भूलने लगते हैं कि वे समाज के अंतिम पायदान पर खड़े बहुत ही सामान्य से व्यक्ति के एक- एक वोट की बदौलत इस शक्ति और सामर्थ्य का केन्द्र बने हैं, वैसे ही लोकतंत्र का सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान चुनाव उन्हें शून्य पर लाकर खड़ा कर देता है और शिद्दत से याद दिलाता है कि वे स्...
दृष्टिकोण: केवल चुनाव के समय बैनर लगाकर दावेदार न बनें

दृष्टिकोण: केवल चुनाव के समय बैनर लगाकर दावेदार न बनें

Editorial, rajasthan, मुख्य पृष्ठ, संपादकीय
~ संजय आचार्य वरुण केवल चुनाव के समय बैनर लगाकर दावेदार न बनें। अब जनता पहले जितनी भोली नहीं है। हाथ जोड़कर फोटो खिंचवाने से जनता का समर्थन हासिल नहीं होता, जनता का समर्थन मिलता है, हर परिस्थिति में जनता के साथ खड़े रहने से। अगर आप राजनीति करना चाहते हैं तो चुनाव से साढ़े चार साल पहले तक आम लोगों के साथ खड़े रहिए। उनके सुख- दु:ख के भागीदार बनिए। चुनाव से चार महीने पहले 'बींद' बनकर हर तरफ दिखाई देना राजनीति नहीं होता। राजनीति होता है लोगों की परेशानियों को बिना बुलाए जाकर दूर करना। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); चुनाव जीतने से पहले जनता का ये विश्वास जीतना जरूरी होता है कि 'और कोई हो न हो, फलां व्यक्ति जरूर हमारे साथ है।' जनता का भरोसा पाए बिना भी चुनाव नहीं जीते जाते और जनता का विश्वास खोकर भी चुनाव नहीं जीते जाते। यदि आप जनता के हक के लिए लड़ेंगे ...
दृष्टिकोण: मुद्दे ढूंढ़ती कांग्रेस में परिपक्व नेतृत्व का संकट

दृष्टिकोण: मुद्दे ढूंढ़ती कांग्रेस में परिपक्व नेतृत्व का संकट

Editorial, मुख्य पृष्ठ, संपादकीय
संजय आचार्य 'वरुण' इन दिनों भारत की राष्ट्रीय राजनीति की सरगर्मियां काफी तेज हैं। गुरुवार को लोकसभा में विपक्षी दलों के गठबंधन द्वारा नरेन्द्र मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया, जैसा कि लोकसभा के सीटों के आंकड़ों से स्पष्ट था, उसी के अनुसार ये अविश्वास प्रस्ताव ध्वनिमत से गिर गया। इस अविश्वास प्रस्ताव की विफलता से और खास तौर से प्रधानमंत्री मोदी के दो घंटे तेरह मिनट के आक्रामक भाषण से राहुल गांधी बुरी तरह भन्ना गए हैं, एक और घटनाक्रम में प्रधानमंत्री के लिए आपत्तिजनक शब्द का इस्तेमाल करने के लिए कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी को अगले निर्णय तक लोकसभा से निलम्बित कर दिया गया है। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); इसी पर अपना गुस्सा जाहिर करने के लिए राहुल गांधी ने शुक्रवार को दोपहर कांग्रेस मुख्यालय में प्रेस कॉन्फ्रेंस की। संसद में राहुल ग...
तिरछा तीर: फिर हम कब बनेंगे एम एल ए

तिरछा तीर: फिर हम कब बनेंगे एम एल ए

Editorial, home, rajasthan, मुख्य पृष्ठ, संपादकीय
- संजय आचार्य 'वरुण' हम रविवार की आलसी सुबह में प्रात:काल नौ बजे तक अपने बिस्तर पर सप्ताह के छह दिनों की नींद में रही कमी को पूरा करने का प्रयास कर रहे थे। कम से कम एक-आध घंटे तक और सोने के हमारे लक्ष्य को श्रीमती जी की आवाज ने भंग कर दिया, उन्होंने हमें ये हृदय विदारक सूचना दी कि 'उठिए, आपके मित्र चकरम जी आए हैं।' (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); यह नाम सुनकर हमारी नींद कपूर की तरह उड़ गई। इतना भय शायद लोगों को सी बी आई और ई डी की रेड के समय भी नहीं लगता होगा जितना हमें हमारे मित्र चकरम जी के अप्रत्याशित आगमन पर लगा करता है, और लगे भी क्यों नहीं, चकरमजी हमारे शहर की एक महान विभूति जो ठहरे। उनको अगर अतृप्त इच्छाओं का मानवीय स्वरूप कहा जाए तो गलत नहीं होगा। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); कभी वे साहित्यकार बन जाते हैं त...
दृष्टिकोण: पार्टियां अपने नेताओं को अनुशासन कब सिखाएंगी

दृष्टिकोण: पार्टियां अपने नेताओं को अनुशासन कब सिखाएंगी

Editorial, Politics, rajasthan, मुख्य पृष्ठ, संपादकीय
~ संजय आचार्य वरुण जब भी सोशल मीडिया के माध्यम से देश और प्रदेश के नेताओं के भाषण सुनने का अवसर मिलता है तब मन बड़ा अशांत हो जाता है। बार- बार दिमाग में यही सवाल आता है कि 'ये कहां आ गए हम..' कच्चे रास्तों पर चलते- चलते हम अर्थात हमारी वर्तमान राजनीति, वहां पहुंच गई है, जहां बहुत अंधेरा है। इस अंधेरे में हर किसी को सत्ता के रोशन गलियारे और दमकती हुई कुर्सी तो दिखाई देती है लेकिन इंसान, इंसानियत, मर्यादा और शालीनता जरा भी दिखाई नहीं देती। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); पता नहीं किसने आज के छोटे- बड़े लगभग सभी नेताओं के दिमागों में यह डाल दिया है कि दूसरी पार्टी और विचारधारा का हर व्यक्ति हमारा शत्रु होता है। तीन- चार दशक पहले तक विपक्षी केवल विपक्षी ही होता था, उस समय विरोध सामने वाले की विचारधारा का होता था, और विरोध भी तार्किक था, विरोध करने के लि...
कब बदलेगा आलम… कब सुधरेंगे हालात

कब बदलेगा आलम… कब सुधरेंगे हालात

Editorial, संपादकीय
~ संजय आचार्य वरुण मैंने अपने जीवन की चार दशक की यात्रा मुसलसल इसी शहर बीकानेर में पूरी की है। तेरह- चौदह साल की उम्र से चुनाव, विधायक, मंत्री, सभापति और महापौर आदि देखते आ रहे हैं। इन सबको आते- जाते देखने के साथ ही इस शहर को भी देखा है और आज भी देख रहे हैं। कुछ स्वाभाविक परिवर्तनों के अलावा मोटे तौर पर सिर्फ चेहरों को ही बदलते देखा है। शहर आज भी लगभग वैसा ही है यानी शहर की व्यवस्थाएं आज भी यथावत हैं। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); मेरे मस्तिष्क में कई दशकों के चुनावी वादे, दावे और भाषण स्मृतियों और छवियों के रूप में बचे पड़े हैं। इस बात का जरा भी आश्चर्य नहीं होता कि बीकानेर के नेताओं के दावे, वादे और भाषण आज भी तीस- चालीस साल पुराने ही हैं, उन्हें अपनी स्क्रिप्ट बदलने की जरूरत इसलिए नहीं पड़ी क्योंकि शहर ही नहीं बदला तो भाषण कैसे बदलेंगे ? ...
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