तिरछा तीर- चकरमजी का अवतरण दिवस
हम सुबह - सुबह जैसे ही स्नान आदि से निवृत होकर नाश्ते के लिए डायनिंग टेबल पर उपस्थित हुए कि हमारे एकतरफा घनिष्ठ मित्र चकरमजी अनायास ही हमारे घर आ धमके। उनका ये आगमन लगभग वैसा ही था जैसे किसी सरकारी दफ्तर में टेबल पर सिर रखे ऊंघ रहे कर्मचारी के सामने कोई आला अफसर अथवा मंत्री बिना किसी पूर्व सूचना के कार्यालय निरीक्षण हेतु आ धमके। बहरहाल, चकरम जी ने बिना किसी औपचारिकता के हमेशा की तरह हमारे घर को अपना ही घर समझते हुए कुर्सी पर बैठते हुए हमारी धर्मपत्नी को दो गर्मागर्म परांठों और एक कप कड़क चाय का ऑर्डर दे डाला। वे चाहते थे कि हमें भी उनके साथ चाय पीने का दुर्लभ अवसर मिले, सो हमारी सहमति से चाय के दो कपों की मांग किचन तक पहुंचा दी गई।चाय और नाश्ते की प्रक्रिया के दौरान हमारी जिज्ञासा को शान्त करते हुए चकरमजी ने अपने आने का महान मंतव्य प्रकट किया। उन्होंने निवेदन के पैकेट में लिपटा हुआ यह ...