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Friday, September 20

साहित्य

बीकानेर के कुओं की कहानी: जळ थळ उजला, नारी नवले बेस…

बीकानेर के कुओं की कहानी: जळ थळ उजला, नारी नवले बेस…

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संजय श्रीमाली मरूक्षेत्र में बीकानेर एक ऐसा जिला है जिसमें कोई भी जल का प्राकृतिक संसाधन नहीं है। यहां न तो नदी है, न कोई प्राकृतिक झील-झरना और ना ही सागर तट। इस क्षेत्र में केवल मानव द्वारा निर्मित जल संसाधनों में मुख्यतः कुएं, कुण्ड, बावड़ियां एवं तालाब आदि ही है। बीकानेर में जल की स्थिति हेतु यह कहावत बहुत प्रसिद्ध - जळ उंड़ा थळ उजला, नारी नवले बेस….. इस उक्ति में बीकानेर में जल के माप को बखूबी बताया है कि यहा जल स्तर बहुत नीचे है और थल पर बालू रेत का अपार समन्दर दिखाई देता है, और यहां की नारियों की वेशभुषा बहुत ही निराली है। इस क्षेत्र में जल का मोल घी से भी ज्यादा माना गया है, यहां के लोगों से सुना जाता है कि ‘‘घी ढूळे तो कांई नहीं, पाणी ढूळे तो म्हारो जी बळे’’ अर्थात घी व्यर्थ में बह जाए तो कुछ नहीं लेकिन जल व्यर्थ में नहीं बहना चाहिए। ऐसे सूखे प्रदेश में उस काल में कुएं और तालाब प...
आचार्य महाश्रमण: युग को श्रेष्ठ बनाने वाले संत

आचार्य महाश्रमण: युग को श्रेष्ठ बनाने वाले संत

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विजय सिंह नाहटा महाश्रमण भारतीय ॠषि परम्परा के जाज्ज्वल्यमान नक्षत्र हैं। आत्म कल्याण के लिए उनकी अहर्निश साधना पर कल्याण की दिशा में भी प्रवहमान है। तेरापंथ के एकादशम अधिशास्ता आचार्य प्रवर अनूठी मेधा , प्रत्युत्पन्न मतित्व , सहज सरल और सौम्य व्यक्तित्व , समत्व और ब्रहमतेज से विभूषित, समता करूणा के पर्याय , दूरदृष्टा और विलक्षण प्रशासकीय कौशल से अलंकृत आध्यात्म जगत की विरल विभूति हैं। आपका हर पल आत्म रमण में गतिमान है। आपने विनय विवेक और निरभिमानिता के गुण से दो प्रभावक आचार्यों -- गणाधिपति तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञ का दिल जीतकर आपश्री जैसे उन दोनों महान आत्माओं के परम प्रिय शिष्य और मानस कृति में रूपाकार हो गये। यह भरत क्षेत्र आपके अवतरण से आह्लादित और धन्य है। तीर्थंकर के प्रतिनिधि के रूप में आप कठोर श्रम और पावन चारित्र साधना से लाखों लाख जन को प्रेरणा पाथेय प्रदान कर युग को कुशल न...
पिता का सवाल

पिता का सवाल

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ओम नागर, कोटा पिता ने कभी नहीं पूछाकिस विषय में कितने नंबर लायाकौनसी क़िताब कठिन हैकौनसी सरल से भी सरलपिता को पढ़ना नहीं आतालेकिन पास होने पर खुश होना आता थाइतना खुशकि खेत से साँझ डूबते लौटते घरसुबह का सूरज मेड़ पर खिलतानहीं पूछाकिसी मास्टर जी का नाम पतादाखिले के वक़्तइतना भर कहा थामाटसाब"माँस-माँस थांकौहाड-हाड म्हाका "पिता ने माँ से भी पूछा नहीं कभीकि यह छोरा पढ़ता कब है ? देखा नहींकांख में रेडियो दबायें फिरता हैं बसपिता के सब सवालों के उत्तर जैसेमाँ के पास घड़ी कपड़ों की तहों में रखें होंकहती- थां घरां रहै तोल तो पड़ै, थांकौ दिन तोहमेस खेत की मेर आंथे-उगै छै…पिता के पासमुझ से पूछे जा सकने वाले सवालों से भी बड़ेबहुत बड़े सवाल और भी थेपेट का सवालरोटी का सवालखाद,बीज, पाणी के सवाल तो थे हीं जस के तसखेत अपना हो जितना-सा भी, फिर निपट परायाउससे भी बड़ा सवाल बोहरा जी की जूनी बही सेसूद-मूल को ...
चोंच डाउन हड़ताल

चोंच डाउन हड़ताल

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इंजी. आशा शर्मा “क्या हुआ दोस्त… आज चुप क्यों हो… कल तक तो बहुत कू-कू कर रही थी…” फिरकू कौवे ने सलोनी कोयल से पूछा.“क्या तुम्हें मेंढकों का टर्राना सुनाई नहीं दे रहा? बारिश का मौसम शुरू हो चुका है… अब दादुर वक्ता भये… हमको पूछत कौन?” सलोनी ने ठंडी साँस भरते हुए कहा.“तुम क्यों उदास होती हो सलोनी, तुम्हारी मीठी तान तो सदा ही सुहानी लगती है… वो तो हम ही कर्कश हैं जो हमेशा दुत्कार कर उड़ा दिए जाते हैं.” फिरकू ने कहा.“लेकिन तुम्हें भी तो श्राद्पक्ष में कितना सम्मान मिलता है.” सलोनी ने उसे कहा.“आहा… श्राद्पक्ष में पूरे सोलह दिन मनुहार के साथ पकवानों का भोज मिलेगा…” सलोनी की बात सुनते ही उसके मन में लड्डू फूटने लगे.“लेकिन सिर्फ सोलह दिन ही क्यों? क्यों न पूरे साल ही पकवान उड़ाए जायें…” सोचकर दो दिन बाद फिरकू ने कौवों की सभा बुलाई. “भाइयों! मनुष्य यूँ तो हमें मुंडेर तक पर बैठने नहीं देता लेकि...
बाफना स्कूल में “साहित्य से नई पीढ़ी का जुड़ाव-शिक्षकों की भूमिका” संवाद कार्यक्रम का आयोजन।

बाफना स्कूल में “साहित्य से नई पीढ़ी का जुड़ाव-शिक्षकों की भूमिका” संवाद कार्यक्रम का आयोजन।

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राजस्थान साहित्य अकादमी का पहला कार्यक्रम बाफना स्कूल में आयोजित। अभिनव टाइम्स बीकानेर।बाफना स्कूल में शुक्रवार को "साहित्य से नई पीढ़ी का जुड़ाव - शिक्षकों की भूमिका" विषय पर संवाद का कार्यक्रम आयोजित किया गया। मुख्य वक्ता के रूप में राजस्थान साहित्य अकादमी के अध्यक्ष डॉ. दुलाराम सहारण थे। कार्यक्रम में डॉ. दुलाराम सहारण ने शिक्षक-शिक्षिकाओं को संबोधित करते हुए कहा कि विद्यार्थियों को साहित्य से जोड़ने में शिक्षकों की महत्वपूर्ण भूमिका है। आप विद्यार्थियों को लेखन से जुड़ने के लिए प्रेरित कीजिए और राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर उनको लेखन के क्षेत्र में उत्कृष्ट करने के लिए सहयोग करेगी। कार्यक्रम में उन्होंने अकादमी की गतिविधियों के बारे में जानकारी दी। अपने जीवन के कुछ प्रेरणादाई संस्मरण को भी बताया। स्कूल के सीईओ डॉ. पीएस वोहरा ने बताया कि स्कूल अपने विद्यार्थियों के ...
गणेशोत्सव में काव्य संध्या  का आयोजन

गणेशोत्सव में काव्य संध्या का आयोजन

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अभिनव टाइम्स बीकानेर। सुजानदेसर स्थित गंगा रेजीडेंसी में गंगा रेजीडेंसी वेलफेयर सोसाइटी द्वारा आयोजित दस दिवसीय गणेश महोत्सव में शुक्रवार राात्रि को एक कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। आयोजित कवि सम्मेलन में बीकानेर के युवा कवि -गीतकार संजय आचार्य 'वरुण' 'मंदिर की घंटी बजी, गूंजी उधर अजान, शहर मेरा पढने लगा गीता और कुरान' रचना पढी । हास्यकवि बाबूलाल छंगाणी 'बमचकरी' ने 'आज के आदमी को ये क्या हो गया' गीत सुनाया । युवाकवि विप्लव व्यास ने 'तू म्हारै सागै चाल तो' एवं रमेश भोजक 'समीर' ने 'मुझे मालूूम है' काव्य रचनाओं से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। कार्यक्रम का संचालन करते हुए कवि अजीत राज ने 'भूख' और 'एकता' शीर्षक कविताएं पढ़ी । सोसाइटी के गणमान्य व्यक्तियों ने आगन्तुक कवियों का विधिवत आभार व सम्मान किया। ...
चांद छू लेने की हूंस: मोनिका गौङ

चांद छू लेने की हूंस: मोनिका गौङ

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चिलचिलाती धूप से ज्यादापेट की आग के खातिरयूनिफार्म में तैनातमहिला ट्रैफिक हवलदारक्रम से चलाती हैशहर का ट्रैफिकमन की पगडंडियों में भटकती सरपटकसमासाती अंतर्द्वंदों मेंकिस तरह रखे पंक्तिबद्धगृहस्थी के खर्चो का गाड़ाजिम्मेदारियों की लारीचेन उतरी हुई सपनो की साइकिलचारों ओर से बरसती धूप -घाम मेंसड़क के एन मध्यभीड़ से लडालूम चौराहे परखड़ी है निपट एकाकीज़िन्दगी के महाभारत मेंअभिमन्यु की भांतिबदलती भूमिकाओ, उम्मीदोंउचक कर् चाँद छू लेने की हूंस नेला पटकाआंगन से आसमान की जगहज़िन्दगी के चौरास्तेधूल धूसरित हो गयीपैरों पर खड़े होने कीरूमानी कल्पनास्वप्नों के खंडहर परवक़्त का खारा जहर सत्यबन गया मजबूरीकोई भी नोकरी करने कीट्रैफिक हवलदार होनासोख रहाअंतस का अमृतफिर भीदो बाई दो के स्कार्फ सेमाथा ढकेकरती है प्रयासअपनी नजाकत बचाने कीट्रैफिक हवलदारदो बाई दो के स्कार्फ मेंअंवेर रही हैअपना स्त्रीत्वशहर के ट्रैफिक कोलाइन...
‘सिनेमा-प्रेमी शहर’ बीकानेर: नवल व्यास

‘सिनेमा-प्रेमी शहर’ बीकानेर: नवल व्यास

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सिनेमाघर तब एलीट नहीं हुआ करते थे; छोटे शहरों-कस्बों में यह उत्सव के ठिकाने हुआ करते थे और हमारा उत्सवधर्मी शहर — बीकानेर, इसे और अनूठा बना देता था। रात से ही सिनेमाघरों में लगती लंबी लाइनें, टिकट वाली खिडकी के अंदर एक-साथ पांच-सात हाथों की टिकट के लिये मनुहारें, हॉल में बीडी-सिगरेट की गंध और बंद होती-जलती रंगीन लाइटों के बीच सीटीयों और तालियों की गडगडाहट बीकानेर ही नहीं, समूचे सिनेमा के स्वर्णिम काल की बानगी है। सिनेमा के पुराने चस्केबाजों से सुना कि इस शहर में किसी फिल्म की रिलीज के समय कोटगेट, केईएम रोड और परकोटे में लगने वाले फिल्मी पोस्टर पर भी भीड इकट्ठा हुआ करती थी। तांगो के दोनों तरफ लकडी के फट्टो पर लगे पोस्टर और माइकिंग भी आकर्षण का केन्द्र हुआ करते थे। पान की दुकानों में लकड़ी के पोस्टरशुदा फट्टे प्रचार भी थे और धूप से बचाव का जतन भी। तब सिनेमा सामाजिकता का हिस्सा था। मेरे बचपन...
बीकानेर की संगीत विरासत विश्व के लिए अनुकरणीय: डॉ. मुरारी शर्मा

बीकानेर की संगीत विरासत विश्व के लिए अनुकरणीय: डॉ. मुरारी शर्मा

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विक्रम संवत् 1545 की वैशाख शुक्ला द्वितीया के दिन जोधपुर के राव जोधाजी के पुत्र बीकाजी ने अपने चाचा कांधल जी के सहयोग से बीकानेर राज्य की स्थापना की। अपने भाई बीदा तथा चाचा को इसी भू-भाग के कई गांव देकर स्वयं बीकाजी बीकानेर के शासक बने। इस प्रकार राठौड़ों के तीन घराने क्रमश: बीका, बीदा और कांधलात नाम से स्थापित हुए। इनके आश्रय में ढोली, दमामी जैसी संगीत जीवी जातियां रही। राजपूतों में से ही कुछ एक को मांगलिक अवसर या युद्ध अवसरों पर नगारा बजाने का काम सौंपा जाता था। बीकानेर की स्थापना के समय सुरतोजी बीकाजी के साथ आए। इनके तीन लड़के भायो, लाखो और चान्दो थे। भायो के वंशज भियाणी, लाखो के वंशज लाखाणी तथा चान्दो के चान्दवाणी कहलाए। इन परिवारों की संगीत परम्परा ही बीकानेर की विरासत कही जा सकती है। जिसने विश्व रंगमंच को अपने प्रदर्शनों से अभिभूत किया।बीकानेर के महाराजा रायसिंह जी ने दिल्ली बादशाह ...
एक था कार्टूनिस्टों का चौक रेत के अथाह समंदर के बीच अठखेलियां करता एक शहर: प्रभात गोस्वामी

एक था कार्टूनिस्टों का चौक रेत के अथाह समंदर के बीच अठखेलियां करता एक शहर: प्रभात गोस्वामी

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बीकानेर राजस्थान के उत्तर-पश्चिम में बसे इस शहर का एक मोहल्ला गोस्वामी चौक है। बचपन यहीं बीता। यहां के अधिकांश लोग संगीत, कला, संस्कृति से जुड़े हुए थे। पर व्यंग्य चित्रकला की वजह से भी इसकी पहचान कायम हुई। एक समय था जब चौक के हर घर में एक कार्टूनिस्ट हुआ करता था। हास्य-व्यंग्य का गज़ब का बोध था। होली पर पहले दीवारों पर भित्तिचित्रों के रूप में कार्टून उकेरे जाते थे। गुदगुदी करते हास्यमयी दोहों ,कविताओं, कुंडलियों ,पैरोडियों, लघु कथाओं के साथ 'हुड़दंग', 'हुल्लड़', जैसी पत्रिकाओं का प्रकाशन होता था। इन पत्रिकाओं में भी कार्टून्स हुआ करते थे। एक दौर ऐसा भी था जब लोग व्यंग्यात्मक कविताओं में सवाल-ज़वाब भी किया करते थे। लेकिन ये सब गोस्वामी चौक की सीमा पार नहीं कर पाए। चौक से राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर हमारे कार्टूनिस्टों ने ही अपनी ज़ोरदार उपस्थिति दर्ज कराई।गोस्वामी चौक के पहले कार्टूनिस्ट पंकज ग...
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