कबीर की कविता…सबसे दुःखी कौन है ?
थार में जल को तरसती रेतविवशताओं से उपजे डकैतरंगरभेद से लड़ते हुए अश्चेतया मुक्ति को तरसते हुए प्रेत ?मैं कहता हूँ कोई नहींहाँ कोई नहीं ।सबको आशा है एक दिन सब कुशल हो जाने कीऔर इसी आस से सदा रहेंगे वे सुखी ।सबसे सुखी कौन है ?पानी लिए हुए समंदरबंदीगृह लेकर दास अंदरअसुरों के घर तोड़ता पुरंदरया दुनिया जीतता हुआ सिकंदर ?मैं कहता हूँ कोई नहींहाँ कोई नहीं ।सबको भय है एक दिन सब आधा हो जाने काऔर इसी त्रास से सदा रहेंगे वे दुःखी ।यह बिल्कुल किसी ब्याहता से प्रेम करने जैसा हैवे लोग मारे हो जाएंगे जो हृदय और मस्तिष्क के समान ग्राही हैंउन्हें ले डूबेगाये द्वंद्वकिअनैतिक होकर सुख भोगेंया तार्किक होकर दुःख भोगें ?अंत में वे सुख और दुःख के ठीक मध्य में प्राण त्याग देंगेऔर छोड़ जाएंगे अपने पीछे एक अजर-अमर बहससबसे सुखी कौन है ?सबसे दुःखी कौन है ?
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