काव्य रंग- विनोद स्वामी,कद बड़ा होना ,मुहावरा नहीं है इस कविता में
कद बड़ा होनामुहावरा नहीं है इस कविता मेंया यूं ठीक रहेगा कितब हमारी बढ़ने की उम्र थी ।कुर्ते पजामे च्यार आँगळ नीचेऔर चप्पल की जोड़ी दो नम्बर बड़ीइसलिए खरीदी जाती थी कितंगी को मात दे सकेंपिता थे भले ही अनपढ़ पर बड़े दूरदर्शी ।हम पर हंसती दुनियाऔर हम बड़े राजी थेनई पोशाक में।ये पोशाक भीजब ऊंची हो जातीइस बार मां की बारी होतीअपनी करामात दिखाने कीपायँचों की तुरपाई उधेड़फिर नीचा कर देनाइन्हीं कपड़ों को।हम तंगी कासाइन बोर्ड नहीं थेमितव्यता से जीवन जीने कीअद्भुत कला केनायाब नमूने से भी थे।
- विनोद स्वामी
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