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Sunday, November 24

संपादकीय

आख़िर कब तक जारी रहेगा बंदर बांट का सिलसिला

आख़िर कब तक जारी रहेगा बंदर बांट का सिलसिला

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संजय आचार्य वरुण बेहद अफसोसनाक दौर है ये। साहित्य, संस्कृति और कलाएं भी तुच्छ स्वार्थों से भरी ओछी राजनीति का शिकार हो रही हैं। अकादमियों की नियुक्तियां हों, पुरस्कारों के निर्णय हों अथवा आयोजनों में भागीदारी करवाने की बात हो, आजकल हर जगह योग्यताओं को बेझिझक होकर नज़र अंदाज करने का फैशन सा चल पड़ा है। इंसान में जमीर नाम की कोई चीज बची ही नहीं है। राजनीति का चरित्र तो कई दशकों पहले ही दागदार हो चुका था, अब उसी घटिया राजनीति का प्रवेश साहित्य, कला और सांस्कृतिक क्षेत्र में भी हो चुका है। इसका कारण यह है कि इन क्षेत्रों में वे लोग आ गए हैं, जो इन क्षेत्रों के हैं ही नहीं, उनका उद्देश्य केवल पद, पैसा, प्रतिष्ठा, प्रभाव और पुरस्कार पाना होता है। साधना, अध्ययन, चिन्तन- मनन और निस्वार्थ समर्पण से इनका दूर- दूर का भी कोई नाता नहीं है। चूंकि ये राजनेताओं और अधिकारियों के आसपास ही मंडराते रहते ह...
महत्वपूर्ण चुनावों के परिणाम बहुत कुछ कहते हैं<br>देश की राजनीति में करवट से पूर्व की हलचल

महत्वपूर्ण चुनावों के परिणाम बहुत कुछ कहते हैं
देश की राजनीति में करवट से पूर्व की हलचल

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संजय आचार्य वरुणआज का दिन भारतीय लोकतंत्र में जनता की ताकत का दिन है । दो दिन में चार महत्वपूर्ण चुनावों के परिणाम सामने आए हैं । पहला दिल्ली एम सी डी के चुनाव परिणाम, गुजरात विधानसभा, हिमाचल विधानसभा और राजस्थान में सरदारशहर उप चुनाव। चारों ही परिणाम यह स्थापित करते हैं कि भारत में लोकतंत्र अपने सम्पूर्ण सौन्दर्य के साथ विद्यमान है। भारत की जनता अंधेरा नहीं ढोती। विकास और काम का दावा करने वाली तीन प्रमुख पार्टियों को तीन अलग - अलग भूमिकाओं में काम करके दिखाने का अवसर इन चुनावों में जनता ने दिया है। ये वास्तविक अर्थों में 'जनादेश' है । आइए, दावे तो बहुत हो गए, अब राजनीति से ऊपर उठकर थोड़ा काम भी हो जाए । ध्यान रहे, ये सत्ता का सेमी फाइनल हुआ है। अभी तक जनता जनार्दन ने किसी को खारिज नहीं किया है। फाइनल में जनता उसे ही देश की कमान सौंपेगी जिसके दावे और वादे यथार्थ की जमीन पर चहल कदमी करते द...
लिव इन रिलेशनशिप भारतीय जीवन संस्कृति के अनुकूल नहीं

लिव इन रिलेशनशिप भारतीय जीवन संस्कृति के अनुकूल नहीं

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संजय आचार्य वरुण ये हम किस दौर में आ गए हैं ? हम भूल गए हैं कि हम कौन हैं और कैसे जी रहे हैं ? इस दौर में हर रोज न जाने कितनी ही श्रद्धाएं मार दी जाती हैं, इसका जिम्मेदार आखिर कौन है ? श्रद्धा वालकर हत्याकांड जैसी घटना कोई पहली बार नहीं हुई है, यह तो लम्बे समय से हो रही क्रूरतम वारदातों की एक और पुनरावृत्ति भर है। हां, हत्या को छुपाने का तरीका ऐसा है कि दैत्यों की रूह भी कांप जाए। सवाल वही है कि आखिर ऐसा हो क्यों रहा है ? इस पूरे घटनाक्रम में क्या केवल आफताब ही दोषी है ? इस घटना पर मनन कीजिए। आप पाएंगे कि यह सब कुछ एक दिन या साल- दो साल में नहीं होता। ऐसी घटनाएं हमारे सांस्कृतिक और सामाजिक पतन का दुष्परिणाम है। इसीलिए संत, महात्मा, विचारक और ज्ञानी लोग कहते हैं कि बच्चों को अच्छे संस्कार दीजिए, अपनी संस्कृति का महत्व समझिए, भोगवादी पाश्चात्यता को अपने घरों में दाखिल मत होने दीजिए। लेकि...
विवादों की सजा आखिर जनता क्यों भुगते

विवादों की सजा आखिर जनता क्यों भुगते

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संजय आचार्य वरुण गत 4 नवम्बर 2022 को बीकानेर की महपौर श्रीमती सुशीला कंवर राजपुरोहित ने सर्किट हाउस, बीकानेर में एक प्रेस वार्ता का आयोजन किया। यह प्रेस वार्ता महपौर और नगर निगम आयुक्त गोपाल राम बिरड़ा के बीच चल रही रस्साकशी का परिणाम थी। महपौर और आयुक्त का ये विवाद 22 अप्रेल 2022 को आयुक्त की नियुक्ति के साथ ही आरम्भ हो गया था। महपौर सुशीला कंवर के अनुसार आयुक्त गोपाल राम बिरड़ा प्रदेश के शिक्षा मंत्री डॉ. बी. डी. कल्ला की शह पर नगर निगम बीकानेर की कार्य व्यवस्था को बिगाड़ने में लगे हुए हैं। महापौर का आरोप है कि आयुक्त न केवल अपने पद के अधिकारों का अतिक्रमण करते हैं बल्कि महापौर के अधिकारों का उल्लंघन भी करते हैं। महापौर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में अपनी बात रखते हुए न केवल आयुक्त को खींचा, साथ ही चालीस साल से राजनीति करने वाले डॉ. बी. डी. कल्ला पर भी शहर के विकास में बाधक बनने के आरोप लगा...
अपनी शर्तों पर राजनीति करने वाले सफल और जनप्रिय नेता थे डॉ. गोपाल जोशी

अपनी शर्तों पर राजनीति करने वाले सफल और जनप्रिय नेता थे डॉ. गोपाल जोशी

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संजय आचार्य वरुण डॉ. गोपाल जोशी मेरे लिए राजनीति के सबसे सुलभ राजनेता थे। इसके दो कारण रहे, एक तो यह उनका स्वभाव ही था और दूसरा मेरे पिताजी स्व. गौरीशंकर आचार्य 'अरुण' से उनकी घनिष्ठ मित्रता। अपने जीवन का आखिरी चुनाव, उन्होंने लड़ा जरूर था लेकिन उसमें जरा भी रुचि नहीं ली, क्योंकि तब तक उन्हें अपने राजनीतिक जीवन में तृप्ति और पूर्णता का अनुभव हो चुका था । बिना प्रयासों के लड़े गए चुनाव में भी वे बहुत कम अंतर से पीछे रहे। उनके वोटर उन्हें इसलिए पसंद करते थे, क्योंकि अपने विधायक से मिलने के लिए उन्हें रत्ती भर भी जद्दोजहद नहीं करनी पड़ती थी। सबको पता था कि यदि गोपाल जोशी जी बीकानेर में हैं तो उनसे उचित समय पर 'होटल जोशी' के कमरा नम्बर 101 में सहजता से मिला जा सकता है । गोपाल जोशी जी जैसी स्वच्छ, बेदाग़ और ठरके से की जाने वाली राजनीति कम ही लोग कर पाते हैं। जहां तक मुझे उनका सानिध्य मिला, ...
विवादित होने की आशंकाओं के बीच सफल हुआ, भैरोंसिंह शेखावत स्मृति आयोजन

विवादित होने की आशंकाओं के बीच सफल हुआ, भैरोंसिंह शेखावत स्मृति आयोजन

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संजय आचार्य वरुण बीकानेर के रवींद्र रंगमंच सभागार में आज राजस्थान के तीन बार मुख्यमंत्री और भारत के उपराष्ट्रपति रहे कद्दावर नेता स्व. भैरोंसिंह शेखावत की 99 वीं जयंती पर एक भव्य व्याख्यान कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम के सम्बन्ध में चौंकाने वाली बात यह है कि जो आयोजन भारतीय जनता पार्टी की ओर से होना चाहिए था, उसमें पार्टी की कोई भूमिका नहीं थी। आज से शेखावत के जन्म शताब्दी वर्ष की शुरुआत हुई है, भाजपा की प्रदेश इकाई की ओर से कोई आयोजन नहीं हुआ है । भैरोंसिंह शेखावत के योगदान पर यह व्याख्यान कार्यक्रम भाजपा नेता सुरेंद्र सिंह शेखावत ने आयोजित किया । सवाल ये उठता है कि क्या भाजपा इतनी मोदीमय हो गई है कि उसे उन नेताओं को याद करने की भी जरूरत महसूस नहीं होती, जिन नेताओं ने पार्टी की आज की सफलता का धरातल तैयार किया था । भैरोंसिंह शेखावत वह व्यक्ति थे, जो अपने दौर में प्रदेश भाजपा का...
थिएटर फेस्टिवल : सुखद आयोजन और सार्थक बन जाएगा

थिएटर फेस्टिवल : सुखद आयोजन और सार्थक बन जाएगा

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संजय आचार्य वरुण कितना सुखद है कि हम अपनी सांस्कृतिक परम्पराओं के प्रति इस विषम दौर में भी संवेदनशील हैं। जीवन जिस दौर में सिर्फ अर्थ और पद के उद्देश्यों के इर्द-गिर्द घूम रहा है, व्यक्तिगत ऐष्णाएं व्यक्ति को उसके सामाजिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक धरातल से काट रही है, ऐसे में एक शहर के युवा महानगरीय महत्वाकांक्षाओं से विमुख रहते हुए कलाओं को महत्वपूर्ण मान रहे हैं और पूरे हर्षोल्लास से बीकानेर में थिएटर फेस्टिवल आज से नहीं बल्कि कई वर्षों से मना रहे हैं। महसूस हो रहा है कि मानवीय जीवन में स्पंदन अभी मौजूद है। अक्सर ऐसे आयोजन सरकारी योजनाओं के अन्तर्गत औपचारिकताओं के रूप में ही सम्पन्न हुआ करते हैं, लेकिन भाग्यशाली है बीकानेर कि यहां के लोग कला परम्पराओं को अपनी व्यक्तिगत आवश्यकता और दायित्वों की सूची में सम्मिलित रखते हुए राजकीय अकादमिक अनुदानों की प्रतीक्षा के बगैर ऐसे कलानुष्ठानों के ...
गांधीजी और शास्त्रीजी के साथ आज भादानी जी को भी याद करें

गांधीजी और शास्त्रीजी के साथ आज भादानी जी को भी याद करें

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संजय आचार्य वरुण आज 2 अक्टूबर है। इस दिन को गांधी और शास्त्री जयंती के रूप में पूरे देश में मनाया जाता है। आज के दिन का महत्व केवल इतना ही नहीं है, आज का दिन बीकानेर में जाये- जन्मे राजस्थान के जन- जन के प्रिय कवि हरीश भादानी की पुण्य तिथि भी है । हरीश जी के संघर्ष भी गांधीजी और शास्त्रीजी के संघर्षों से अलग नहीं थे, फर्क सिर्फ इतना था कि भादानीजी ने अपने संघर्षों में कविता को अपना हथियार बनाया था। कविता के जरिये किया गया आंदोलन भी अहिंसात्मक होता है, इसलिए भादानी जी गांधीजी से जुड़ते हैं, इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती । सवाल पार्टीगत विचारधारा का नहीं होता, सवाल होता है व्यक्ति के उद्देश्यों का। शास्त्रीजी ने अपने विभिन्न कार्यकालों में देश में रोटी का संकट देखा था, विदेशों से गेहूं आयात करने का घटनाक्रम उन्हें भीतर तक हिला गया था । रोटी जीवन की सबसे बड़ी जरूरत है, विकास के सारे दा...
राजू श्रीवास्तव : सहज, मौलिक और गरिमामय मनोरंजन के युग का अवसान

राजू श्रीवास्तव : सहज, मौलिक और गरिमामय मनोरंजन के युग का अवसान

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संजय आचार्य वरुण कई दिनों की पीड़ा झेलने के बाद आज मृत्यु जीत गई और राजू हार गए। जब तक सांस थी, तब तक आस थी कि राजू एक बार फिर खड़े होंगे, खुद भी चहकेंगे और हमें भी हंसाएंगे। विधाता के लिए सब बराबर हैं, हम जानते हैं कि राजू श्रीवास्तव हमारे लिए बहुत कीमती थे। वे हमारी अवसादों, अपराधों और तनावों से भरी दुनिया की मौलिक मुस्कुराहट थे । आज जब इंसान में इंसानियत को छोड़कर सब कुछ है, प्रतिस्पर्धा है, लालच है, महत्वाकांक्षाएं हैं, भोग की बेलगाम वृत्ति है, हांफता- दौड़ता जीवन है, ऐसे में सहेजकर रखने लायक जो था, वही राजू श्रीवास्तव था लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद हम उन्हें नहीं बचा सके । (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); भारत में आज की दिनांक में हंसने - हंसाने का कारोबार अपने चरम पर है। हजारों लोग इस बाजार में उतरे हुए हैं, उन सभी से सभ्य और सहज हास्य की...
उन्होंने भी यही किया था….. संदर्भ  : कांग्रेस

उन्होंने भी यही किया था….. संदर्भ : कांग्रेस

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संजय आचार्य वरुण कांग्रेस विगत एक दशक से भारतीय राजनीति में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है । जो पार्टी पांच दशक से भी अधिक समय तक सत्ता में रही, आजादी से लेकर वर्तमान तक देश के स्वरूप निर्माण में जिसका निर्विवाद रूप से महत्वपूर्ण योगदान रहा है, वह पार्टी आज दिशाहीन सी क्यों नज़र आ रही है ? विपक्ष में रहने पर भी एक बड़ी राष्ट्रीय पार्टी का महत्व और भूमिका कम नहीं हो जाती । विपक्ष लोकतंत्र का सबसे जरूरी हिस्सा है। यह सुखद है कि देश में बहुमत वाली एकल पार्टी सरकारों का दौर लौट आया है लेकिन विपक्ष कमजोर और निष्प्राण है, यह लोकतंत्र के लिए किसी भी सूरत में अच्छा संकेत नहीं है । कांग्रेस चिंतन शिविरों का आयोजन तो करती है किन्तु उनमें धरातल पर उतरकर आत्मचिंतन करने की बजाय सत्तापक्ष का अनावश्यक विरोध कर आमजन मानस में अपनी छवि को नकारात्मक बनाती जा रही है । आप किसी को बुरा बताकर कभी भी अच...
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