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Thursday, November 21

संपादकीय

दृष्टिकोण: त्यौहार और चुनाव, दूरियां न बढ़े, सद्भाव बना रहे

दृष्टिकोण: त्यौहार और चुनाव, दूरियां न बढ़े, सद्भाव बना रहे

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संजय आचार्य वरुण अभिनव टाइम्स देखने- सुनने और पढ़ने वाले लगभग एक लाख आत्मीय जनों के परिवार को धनतेरस की बहुत बहुत बधाई और आपके मंगलमय जीवन के लिए मंगलकामनाएं। चुनाव के परवान चढ़ते माहौल के बीच त्यौहार का रंग कई गुना बढ़ जाता है। एक तरफ जहां त्यौहार कटुता को समाप्त कर सद्भाव का विस्तार करते हैं वहीं चुनाव कहीं न कहीं दूरियां पैदा कर देते हैं। हमें कभी भी दूरियों और वैमनस्य का समर्थन नहीं करना है। हमारी विचारधारा हमारे साथ रहे और दूसरे की विचारधारा का अपमान न हो, स्वच्छ राजनीति इसी को कहते हैं। अक्सर देखा जाता है कि नेताओं से ज्यादा उनके समर्थक भावुक होते हैं। वे अपने प्रिय नेता के लिए जरूरत से ज्यादा जज्बाती हो जाते हैं। राजनीति हमारे मानवीय समाज के कल्याण के लिए होती है। राजनीति से समाज का वातावरण खराब नहीं होना चाहिए। कार्यकर्ताओं और समर्थकों को संयमित और शालीन रखना उनके नेता और प...
दृष्टिकोण: केवल चुनाव के समय बैनर लगाकर दावेदार न बनें

दृष्टिकोण: केवल चुनाव के समय बैनर लगाकर दावेदार न बनें

Editorial, rajasthan, मुख्य पृष्ठ, संपादकीय
~ संजय आचार्य वरुण केवल चुनाव के समय बैनर लगाकर दावेदार न बनें। अब जनता पहले जितनी भोली नहीं है। हाथ जोड़कर फोटो खिंचवाने से जनता का समर्थन हासिल नहीं होता, जनता का समर्थन मिलता है, हर परिस्थिति में जनता के साथ खड़े रहने से। अगर आप राजनीति करना चाहते हैं तो चुनाव से साढ़े चार साल पहले तक आम लोगों के साथ खड़े रहिए। उनके सुख- दु:ख के भागीदार बनिए। चुनाव से चार महीने पहले 'बींद' बनकर हर तरफ दिखाई देना राजनीति नहीं होता। राजनीति होता है लोगों की परेशानियों को बिना बुलाए जाकर दूर करना। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); चुनाव जीतने से पहले जनता का ये विश्वास जीतना जरूरी होता है कि 'और कोई हो न हो, फलां व्यक्ति जरूर हमारे साथ है।' जनता का भरोसा पाए बिना भी चुनाव नहीं जीते जाते और जनता का विश्वास खोकर भी चुनाव नहीं जीते जाते। यदि आप जनता के हक के लिए लड़ेंगे ...
दृष्टिकोण: मुद्दे ढूंढ़ती कांग्रेस में परिपक्व नेतृत्व का संकट

दृष्टिकोण: मुद्दे ढूंढ़ती कांग्रेस में परिपक्व नेतृत्व का संकट

Editorial, मुख्य पृष्ठ, संपादकीय
संजय आचार्य 'वरुण' इन दिनों भारत की राष्ट्रीय राजनीति की सरगर्मियां काफी तेज हैं। गुरुवार को लोकसभा में विपक्षी दलों के गठबंधन द्वारा नरेन्द्र मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया, जैसा कि लोकसभा के सीटों के आंकड़ों से स्पष्ट था, उसी के अनुसार ये अविश्वास प्रस्ताव ध्वनिमत से गिर गया। इस अविश्वास प्रस्ताव की विफलता से और खास तौर से प्रधानमंत्री मोदी के दो घंटे तेरह मिनट के आक्रामक भाषण से राहुल गांधी बुरी तरह भन्ना गए हैं, एक और घटनाक्रम में प्रधानमंत्री के लिए आपत्तिजनक शब्द का इस्तेमाल करने के लिए कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी को अगले निर्णय तक लोकसभा से निलम्बित कर दिया गया है। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); इसी पर अपना गुस्सा जाहिर करने के लिए राहुल गांधी ने शुक्रवार को दोपहर कांग्रेस मुख्यालय में प्रेस कॉन्फ्रेंस की। संसद में राहुल ग...
तिरछा तीर: फिर हम कब बनेंगे एम एल ए

तिरछा तीर: फिर हम कब बनेंगे एम एल ए

Editorial, home, rajasthan, मुख्य पृष्ठ, संपादकीय
- संजय आचार्य 'वरुण' हम रविवार की आलसी सुबह में प्रात:काल नौ बजे तक अपने बिस्तर पर सप्ताह के छह दिनों की नींद में रही कमी को पूरा करने का प्रयास कर रहे थे। कम से कम एक-आध घंटे तक और सोने के हमारे लक्ष्य को श्रीमती जी की आवाज ने भंग कर दिया, उन्होंने हमें ये हृदय विदारक सूचना दी कि 'उठिए, आपके मित्र चकरम जी आए हैं।' (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); यह नाम सुनकर हमारी नींद कपूर की तरह उड़ गई। इतना भय शायद लोगों को सी बी आई और ई डी की रेड के समय भी नहीं लगता होगा जितना हमें हमारे मित्र चकरम जी के अप्रत्याशित आगमन पर लगा करता है, और लगे भी क्यों नहीं, चकरमजी हमारे शहर की एक महान विभूति जो ठहरे। उनको अगर अतृप्त इच्छाओं का मानवीय स्वरूप कहा जाए तो गलत नहीं होगा। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); कभी वे साहित्यकार बन जाते हैं त...
दृष्टिकोण: पार्टियां अपने नेताओं को अनुशासन कब सिखाएंगी

दृष्टिकोण: पार्टियां अपने नेताओं को अनुशासन कब सिखाएंगी

Editorial, Politics, rajasthan, मुख्य पृष्ठ, संपादकीय
~ संजय आचार्य वरुण जब भी सोशल मीडिया के माध्यम से देश और प्रदेश के नेताओं के भाषण सुनने का अवसर मिलता है तब मन बड़ा अशांत हो जाता है। बार- बार दिमाग में यही सवाल आता है कि 'ये कहां आ गए हम..' कच्चे रास्तों पर चलते- चलते हम अर्थात हमारी वर्तमान राजनीति, वहां पहुंच गई है, जहां बहुत अंधेरा है। इस अंधेरे में हर किसी को सत्ता के रोशन गलियारे और दमकती हुई कुर्सी तो दिखाई देती है लेकिन इंसान, इंसानियत, मर्यादा और शालीनता जरा भी दिखाई नहीं देती। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); पता नहीं किसने आज के छोटे- बड़े लगभग सभी नेताओं के दिमागों में यह डाल दिया है कि दूसरी पार्टी और विचारधारा का हर व्यक्ति हमारा शत्रु होता है। तीन- चार दशक पहले तक विपक्षी केवल विपक्षी ही होता था, उस समय विरोध सामने वाले की विचारधारा का होता था, और विरोध भी तार्किक था, विरोध करने के लि...
कब बदलेगा आलम… कब सुधरेंगे हालात

कब बदलेगा आलम… कब सुधरेंगे हालात

Editorial, संपादकीय
~ संजय आचार्य वरुण मैंने अपने जीवन की चार दशक की यात्रा मुसलसल इसी शहर बीकानेर में पूरी की है। तेरह- चौदह साल की उम्र से चुनाव, विधायक, मंत्री, सभापति और महापौर आदि देखते आ रहे हैं। इन सबको आते- जाते देखने के साथ ही इस शहर को भी देखा है और आज भी देख रहे हैं। कुछ स्वाभाविक परिवर्तनों के अलावा मोटे तौर पर सिर्फ चेहरों को ही बदलते देखा है। शहर आज भी लगभग वैसा ही है यानी शहर की व्यवस्थाएं आज भी यथावत हैं। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); मेरे मस्तिष्क में कई दशकों के चुनावी वादे, दावे और भाषण स्मृतियों और छवियों के रूप में बचे पड़े हैं। इस बात का जरा भी आश्चर्य नहीं होता कि बीकानेर के नेताओं के दावे, वादे और भाषण आज भी तीस- चालीस साल पुराने ही हैं, उन्हें अपनी स्क्रिप्ट बदलने की जरूरत इसलिए नहीं पड़ी क्योंकि शहर ही नहीं बदला तो भाषण कैसे बदलेंगे ? ...
दृष्टिकोण: वरना सिर्फ सरकार बदलेगी, हालात नहीं

दृष्टिकोण: वरना सिर्फ सरकार बदलेगी, हालात नहीं

bikaner, Editorial, rajasthan, मुख्य पृष्ठ, संपादकीय
संजय आचार्य ‘वरुण’ राजस्थान की राजनीति का ऊंट चुनाव के बाद किस करवट बैठेगा, इस सवाल पर फिलहाल कयास ही लगाए जा सकते हैं और किया भी यही जा रहा है। कांग्रेस समर्थक कह रहे हैं प्रदेश में अशोक गहलोत सरकार रिपीट होगी। भाजपा समर्थकों के दावे हैं कि विभिन्न सर्वे रिपोर्टों में वसुंधरा राजे को मुख्यमंत्री का चेहरा बताए बगैर भाजपा तकरीबन 140 सीट लाती नजर आ रही है। भाजपा के ये दावे कितने सही साबित होंगे, ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा लेकिन इतना तय है कि इस बार भाजपा प्रदेश का ये चुनाव मोदी के नाम पर ही लड़ेगी। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); गौरतलब तथ्य यह है कि प्रदेश की दोनों प्रमुख पार्टियां अन्तर्कलह से ग्रस्त हैं। दोनों पार्टियों में प्रथम पंक्ति के बड़े नेता अब अपनी महत्वाकांक्षाओं को दबा नहीं पा रहे हैं। कांग्रेस के सचिन पायलट तो अब खुलकर सामने भी आ चुके...
मुगालतों में कोई न रहे, एक जगह जीतने वाला दूसरी जगह हारता है

मुगालतों में कोई न रहे, एक जगह जीतने वाला दूसरी जगह हारता है

Editorial, मुख्य पृष्ठ, संपादकीय
- संजय आचार्य वरुण शनिवार का दिन भारतीय लोकतंत्र के नाम रहा। तीन राज्यों में तीन चुनावों के परिणाम घोषित हुए। कर्नाटक में प्रदेश की जनता ने देश में दिखाई दे रही 'मोदी लहर' के विपरीत जनादेश देकर 'जनता जनार्दन सर्वोपरि' की उक्ति को एक बार फिर सही साबित कर दिया है। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); पंजाब में जालंधर में हुए उप चुनाव में आम आदमी पार्टी की जीत ने यह संदेश दिया है कि पंजाब में भगवंत मान के नेतृत्व में 'आप' का सत्ता में आना कोई अनायास हुई घटना नहीं थी, और इस परिणाम से कहीं न कहीं यह निष्कर्ष भी निकलता है कि प्रदेश की जनता आम आदमी पार्टी से संतुष्ट है और भगवंत मान जनता की नजर में एक योग्य मुख्यमंत्री मान लिए गए हैं। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); शनिवार को तीसरा परिणाम था उत्तर प्रदेश के स्थानीय निकाय चुनावो...
चकरमजी के चिंतन में कोटगेट कथा

चकरमजी के चिंतन में कोटगेट कथा

Entertainment, मनोरंजन, मुख्य पृष्ठ, संपादकीय
संजय आचार्य वरुण हम सुबह उठकर बरामदे में बैठे हुए अखबार के साथ चाय का आनंद ले रहे थे। खुशनुमा मौसम और होली की छुट्टियों के कारण हमारा मन बहुत ज्यादा प्रसन्न हो रहा था लेकिन हमारी ये प्रसन्नता अधिक देर तक न चल सकी। हमने देखा कि हमारे एकतरफा विवादास्पद मित्र चकरमजी हमारे घर की तरफ ऐसे बढ़े चले आ रहे हैं जैसे कि दो साल पहले कोरोना दुनिया की ओर लपका था। थोड़ी देर पहले तक हमारे चेहरे पर छाई खुशी ऐसे कम होने लगी जैसे डॉलर के सामने रुपये के भाव कम होते जाते हैं।बहरहाल, चकरमजी को तो हमें झेलना ही था। हम मानसिक रूप से तैयार हो पाते इससे पहले तो वे हमारे सामने वाली कुर्सी पर साक्षात सशरीर विराजमान हो गए। हमारी श्रीमती जी को अपने आगमन की (भयानक) सूचना देकर चाय आने का इंतजार करते हुए उन्होंने बिस्किट की पूरी प्लेट का दायित्व अपने हाथों में ले लिया और बिना किसी औपचारिकता के कहने लगे 'मित्र, आज मैं ...
इस शहर में प्राइवेट कुछ नहीं होता

इस शहर में प्राइवेट कुछ नहीं होता

Editorial, मुख्य पृष्ठ, संपादकीय
संजय आचार्य वरुण ये शहर बीकानेर है साहब! ज़िन्दगी को पूरी जिन्दादिली से जीने वाला एक शहर। एक ऐसा शहर जो जीवन के सांस्कृतिक मूल्यों को भारत के दूसरे किसी शहर से ज्यादा अपने भीतर संजोए रखता है। जैसा कि अनेक बुद्धिजीवी कहा करते हैं कि धर्म प्रदर्शन की चीज नहीं, यह तो 'प्राइवेट प्रैक्टिस' है। किन्हीं अर्थों में हो सकता है कि उनकी बात कुछ हद तक सही हो लेकिन अगर इस शहर के वाशिन्दे बीकानेर की प्राचीन मूल संस्कृति को न जानने वाले जबरन स्थापित इन बुद्धजीवियों की बात मान लेते तो ये शहर कभी भी धर्म नगरी, छोटी काशी और राजस्थान की सांस्कृतिक राजधानी आदि अलंकारों से विभूषित न किया जाता। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); ये वो शहर है जहां प्राइवेट कुछ नहीं होता। यहां तो परिवार की खुशियां और ग़म भी घर में नहीं, चौक के पाटे पर सबके साथ मनाए जाते हैं। धर्म को प्राइव...
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