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Thursday, September 19

संपादकीय

तिरछा तीर: फिर हम कब बनेंगे एम एल ए

तिरछा तीर: फिर हम कब बनेंगे एम एल ए

Editorial, home, rajasthan, मुख्य पृष्ठ, संपादकीय
- संजय आचार्य 'वरुण' हम रविवार की आलसी सुबह में प्रात:काल नौ बजे तक अपने बिस्तर पर सप्ताह के छह दिनों की नींद में रही कमी को पूरा करने का प्रयास कर रहे थे। कम से कम एक-आध घंटे तक और सोने के हमारे लक्ष्य को श्रीमती जी की आवाज ने भंग कर दिया, उन्होंने हमें ये हृदय विदारक सूचना दी कि 'उठिए, आपके मित्र चकरम जी आए हैं।' (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); यह नाम सुनकर हमारी नींद कपूर की तरह उड़ गई। इतना भय शायद लोगों को सी बी आई और ई डी की रेड के समय भी नहीं लगता होगा जितना हमें हमारे मित्र चकरम जी के अप्रत्याशित आगमन पर लगा करता है, और लगे भी क्यों नहीं, चकरमजी हमारे शहर की एक महान विभूति जो ठहरे। उनको अगर अतृप्त इच्छाओं का मानवीय स्वरूप कहा जाए तो गलत नहीं होगा। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); कभी वे साहित्यकार बन जाते हैं त...
दृष्टिकोण: पार्टियां अपने नेताओं को अनुशासन कब सिखाएंगी

दृष्टिकोण: पार्टियां अपने नेताओं को अनुशासन कब सिखाएंगी

Editorial, Politics, rajasthan, मुख्य पृष्ठ, संपादकीय
~ संजय आचार्य वरुण जब भी सोशल मीडिया के माध्यम से देश और प्रदेश के नेताओं के भाषण सुनने का अवसर मिलता है तब मन बड़ा अशांत हो जाता है। बार- बार दिमाग में यही सवाल आता है कि 'ये कहां आ गए हम..' कच्चे रास्तों पर चलते- चलते हम अर्थात हमारी वर्तमान राजनीति, वहां पहुंच गई है, जहां बहुत अंधेरा है। इस अंधेरे में हर किसी को सत्ता के रोशन गलियारे और दमकती हुई कुर्सी तो दिखाई देती है लेकिन इंसान, इंसानियत, मर्यादा और शालीनता जरा भी दिखाई नहीं देती। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); पता नहीं किसने आज के छोटे- बड़े लगभग सभी नेताओं के दिमागों में यह डाल दिया है कि दूसरी पार्टी और विचारधारा का हर व्यक्ति हमारा शत्रु होता है। तीन- चार दशक पहले तक विपक्षी केवल विपक्षी ही होता था, उस समय विरोध सामने वाले की विचारधारा का होता था, और विरोध भी तार्किक था, विरोध करने के लि...
कब बदलेगा आलम… कब सुधरेंगे हालात

कब बदलेगा आलम… कब सुधरेंगे हालात

Editorial, संपादकीय
~ संजय आचार्य वरुण मैंने अपने जीवन की चार दशक की यात्रा मुसलसल इसी शहर बीकानेर में पूरी की है। तेरह- चौदह साल की उम्र से चुनाव, विधायक, मंत्री, सभापति और महापौर आदि देखते आ रहे हैं। इन सबको आते- जाते देखने के साथ ही इस शहर को भी देखा है और आज भी देख रहे हैं। कुछ स्वाभाविक परिवर्तनों के अलावा मोटे तौर पर सिर्फ चेहरों को ही बदलते देखा है। शहर आज भी लगभग वैसा ही है यानी शहर की व्यवस्थाएं आज भी यथावत हैं। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); मेरे मस्तिष्क में कई दशकों के चुनावी वादे, दावे और भाषण स्मृतियों और छवियों के रूप में बचे पड़े हैं। इस बात का जरा भी आश्चर्य नहीं होता कि बीकानेर के नेताओं के दावे, वादे और भाषण आज भी तीस- चालीस साल पुराने ही हैं, उन्हें अपनी स्क्रिप्ट बदलने की जरूरत इसलिए नहीं पड़ी क्योंकि शहर ही नहीं बदला तो भाषण कैसे बदलेंगे ? ...
दृष्टिकोण: वरना सिर्फ सरकार बदलेगी, हालात नहीं

दृष्टिकोण: वरना सिर्फ सरकार बदलेगी, हालात नहीं

bikaner, Editorial, rajasthan, मुख्य पृष्ठ, संपादकीय
संजय आचार्य ‘वरुण’ राजस्थान की राजनीति का ऊंट चुनाव के बाद किस करवट बैठेगा, इस सवाल पर फिलहाल कयास ही लगाए जा सकते हैं और किया भी यही जा रहा है। कांग्रेस समर्थक कह रहे हैं प्रदेश में अशोक गहलोत सरकार रिपीट होगी। भाजपा समर्थकों के दावे हैं कि विभिन्न सर्वे रिपोर्टों में वसुंधरा राजे को मुख्यमंत्री का चेहरा बताए बगैर भाजपा तकरीबन 140 सीट लाती नजर आ रही है। भाजपा के ये दावे कितने सही साबित होंगे, ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा लेकिन इतना तय है कि इस बार भाजपा प्रदेश का ये चुनाव मोदी के नाम पर ही लड़ेगी। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); गौरतलब तथ्य यह है कि प्रदेश की दोनों प्रमुख पार्टियां अन्तर्कलह से ग्रस्त हैं। दोनों पार्टियों में प्रथम पंक्ति के बड़े नेता अब अपनी महत्वाकांक्षाओं को दबा नहीं पा रहे हैं। कांग्रेस के सचिन पायलट तो अब खुलकर सामने भी आ चुके...
मुगालतों में कोई न रहे, एक जगह जीतने वाला दूसरी जगह हारता है

मुगालतों में कोई न रहे, एक जगह जीतने वाला दूसरी जगह हारता है

Editorial, मुख्य पृष्ठ, संपादकीय
- संजय आचार्य वरुण शनिवार का दिन भारतीय लोकतंत्र के नाम रहा। तीन राज्यों में तीन चुनावों के परिणाम घोषित हुए। कर्नाटक में प्रदेश की जनता ने देश में दिखाई दे रही 'मोदी लहर' के विपरीत जनादेश देकर 'जनता जनार्दन सर्वोपरि' की उक्ति को एक बार फिर सही साबित कर दिया है। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); पंजाब में जालंधर में हुए उप चुनाव में आम आदमी पार्टी की जीत ने यह संदेश दिया है कि पंजाब में भगवंत मान के नेतृत्व में 'आप' का सत्ता में आना कोई अनायास हुई घटना नहीं थी, और इस परिणाम से कहीं न कहीं यह निष्कर्ष भी निकलता है कि प्रदेश की जनता आम आदमी पार्टी से संतुष्ट है और भगवंत मान जनता की नजर में एक योग्य मुख्यमंत्री मान लिए गए हैं। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); शनिवार को तीसरा परिणाम था उत्तर प्रदेश के स्थानीय निकाय चुनावो...
चकरमजी के चिंतन में कोटगेट कथा

चकरमजी के चिंतन में कोटगेट कथा

Entertainment, मनोरंजन, मुख्य पृष्ठ, संपादकीय
संजय आचार्य वरुण हम सुबह उठकर बरामदे में बैठे हुए अखबार के साथ चाय का आनंद ले रहे थे। खुशनुमा मौसम और होली की छुट्टियों के कारण हमारा मन बहुत ज्यादा प्रसन्न हो रहा था लेकिन हमारी ये प्रसन्नता अधिक देर तक न चल सकी। हमने देखा कि हमारे एकतरफा विवादास्पद मित्र चकरमजी हमारे घर की तरफ ऐसे बढ़े चले आ रहे हैं जैसे कि दो साल पहले कोरोना दुनिया की ओर लपका था। थोड़ी देर पहले तक हमारे चेहरे पर छाई खुशी ऐसे कम होने लगी जैसे डॉलर के सामने रुपये के भाव कम होते जाते हैं।बहरहाल, चकरमजी को तो हमें झेलना ही था। हम मानसिक रूप से तैयार हो पाते इससे पहले तो वे हमारे सामने वाली कुर्सी पर साक्षात सशरीर विराजमान हो गए। हमारी श्रीमती जी को अपने आगमन की (भयानक) सूचना देकर चाय आने का इंतजार करते हुए उन्होंने बिस्किट की पूरी प्लेट का दायित्व अपने हाथों में ले लिया और बिना किसी औपचारिकता के कहने लगे 'मित्र, आज मैं ...
इस शहर में प्राइवेट कुछ नहीं होता

इस शहर में प्राइवेट कुछ नहीं होता

Editorial, मुख्य पृष्ठ, संपादकीय
संजय आचार्य वरुण ये शहर बीकानेर है साहब! ज़िन्दगी को पूरी जिन्दादिली से जीने वाला एक शहर। एक ऐसा शहर जो जीवन के सांस्कृतिक मूल्यों को भारत के दूसरे किसी शहर से ज्यादा अपने भीतर संजोए रखता है। जैसा कि अनेक बुद्धिजीवी कहा करते हैं कि धर्म प्रदर्शन की चीज नहीं, यह तो 'प्राइवेट प्रैक्टिस' है। किन्हीं अर्थों में हो सकता है कि उनकी बात कुछ हद तक सही हो लेकिन अगर इस शहर के वाशिन्दे बीकानेर की प्राचीन मूल संस्कृति को न जानने वाले जबरन स्थापित इन बुद्धजीवियों की बात मान लेते तो ये शहर कभी भी धर्म नगरी, छोटी काशी और राजस्थान की सांस्कृतिक राजधानी आदि अलंकारों से विभूषित न किया जाता। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); ये वो शहर है जहां प्राइवेट कुछ नहीं होता। यहां तो परिवार की खुशियां और ग़म भी घर में नहीं, चौक के पाटे पर सबके साथ मनाए जाते हैं। धर्म को प्राइव...
आख़िर कब तक जारी रहेगा बंदर बांट का सिलसिला

आख़िर कब तक जारी रहेगा बंदर बांट का सिलसिला

bikaner, Editorial, rajasthan, मुख्य पृष्ठ, संपादकीय
संजय आचार्य वरुण बेहद अफसोसनाक दौर है ये। साहित्य, संस्कृति और कलाएं भी तुच्छ स्वार्थों से भरी ओछी राजनीति का शिकार हो रही हैं। अकादमियों की नियुक्तियां हों, पुरस्कारों के निर्णय हों अथवा आयोजनों में भागीदारी करवाने की बात हो, आजकल हर जगह योग्यताओं को बेझिझक होकर नज़र अंदाज करने का फैशन सा चल पड़ा है। इंसान में जमीर नाम की कोई चीज बची ही नहीं है। राजनीति का चरित्र तो कई दशकों पहले ही दागदार हो चुका था, अब उसी घटिया राजनीति का प्रवेश साहित्य, कला और सांस्कृतिक क्षेत्र में भी हो चुका है। इसका कारण यह है कि इन क्षेत्रों में वे लोग आ गए हैं, जो इन क्षेत्रों के हैं ही नहीं, उनका उद्देश्य केवल पद, पैसा, प्रतिष्ठा, प्रभाव और पुरस्कार पाना होता है। साधना, अध्ययन, चिन्तन- मनन और निस्वार्थ समर्पण से इनका दूर- दूर का भी कोई नाता नहीं है। चूंकि ये राजनेताओं और अधिकारियों के आसपास ही मंडराते रहते ह...
महत्वपूर्ण चुनावों के परिणाम बहुत कुछ कहते हैं<br>देश की राजनीति में करवट से पूर्व की हलचल

महत्वपूर्ण चुनावों के परिणाम बहुत कुछ कहते हैं
देश की राजनीति में करवट से पूर्व की हलचल

bikaner, Editorial, rajasthan, मुख्य पृष्ठ, संपादकीय
संजय आचार्य वरुणआज का दिन भारतीय लोकतंत्र में जनता की ताकत का दिन है । दो दिन में चार महत्वपूर्ण चुनावों के परिणाम सामने आए हैं । पहला दिल्ली एम सी डी के चुनाव परिणाम, गुजरात विधानसभा, हिमाचल विधानसभा और राजस्थान में सरदारशहर उप चुनाव। चारों ही परिणाम यह स्थापित करते हैं कि भारत में लोकतंत्र अपने सम्पूर्ण सौन्दर्य के साथ विद्यमान है। भारत की जनता अंधेरा नहीं ढोती। विकास और काम का दावा करने वाली तीन प्रमुख पार्टियों को तीन अलग - अलग भूमिकाओं में काम करके दिखाने का अवसर इन चुनावों में जनता ने दिया है। ये वास्तविक अर्थों में 'जनादेश' है । आइए, दावे तो बहुत हो गए, अब राजनीति से ऊपर उठकर थोड़ा काम भी हो जाए । ध्यान रहे, ये सत्ता का सेमी फाइनल हुआ है। अभी तक जनता जनार्दन ने किसी को खारिज नहीं किया है। फाइनल में जनता उसे ही देश की कमान सौंपेगी जिसके दावे और वादे यथार्थ की जमीन पर चहल कदमी करते द...
लिव इन रिलेशनशिप भारतीय जीवन संस्कृति के अनुकूल नहीं

लिव इन रिलेशनशिप भारतीय जीवन संस्कृति के अनुकूल नहीं

Editorial, rajasthan, मुख्य पृष्ठ, संपादकीय
संजय आचार्य वरुण ये हम किस दौर में आ गए हैं ? हम भूल गए हैं कि हम कौन हैं और कैसे जी रहे हैं ? इस दौर में हर रोज न जाने कितनी ही श्रद्धाएं मार दी जाती हैं, इसका जिम्मेदार आखिर कौन है ? श्रद्धा वालकर हत्याकांड जैसी घटना कोई पहली बार नहीं हुई है, यह तो लम्बे समय से हो रही क्रूरतम वारदातों की एक और पुनरावृत्ति भर है। हां, हत्या को छुपाने का तरीका ऐसा है कि दैत्यों की रूह भी कांप जाए। सवाल वही है कि आखिर ऐसा हो क्यों रहा है ? इस पूरे घटनाक्रम में क्या केवल आफताब ही दोषी है ? इस घटना पर मनन कीजिए। आप पाएंगे कि यह सब कुछ एक दिन या साल- दो साल में नहीं होता। ऐसी घटनाएं हमारे सांस्कृतिक और सामाजिक पतन का दुष्परिणाम है। इसीलिए संत, महात्मा, विचारक और ज्ञानी लोग कहते हैं कि बच्चों को अच्छे संस्कार दीजिए, अपनी संस्कृति का महत्व समझिए, भोगवादी पाश्चात्यता को अपने घरों में दाखिल मत होने दीजिए। लेकि...
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