डॉ . वैद्य शिवरतन सेवग
करेला खुश्क व गर्म प्रकृति का होता है इसलिये इसे घी में छौंककर खाना अधिक लाभदायक होता है। करेला दो प्रकार का होता है बड़ा व छोटा छोटा करेला अधिक गुणकारी है। हरा व कच्चा करेला गुणकारी होता है। इसकी सब्जी सूजन , बुखार , दमा , यकृत , तिल्ली , चर्मरोग ठीक करती है। करेले की सब्जी रोजाना खाने से शरीर को पर्याप्त फास्फोरस , विटामिन ए , बी तथा सी की पूर्ति होती रहती है जिससे शरीर में स्फूर्ति रहती है । आयुर्वेद अनुसार करेले का रस भूखे पेट पीना अतिलाभदायक है। यह मधुमेह , कफ व बलगम रोग ठीक करता है । करेले को सूखाकर चूर्ण बनाकर रख लें। सूखने पर भी करेले के गुण नष्ट नहीं होते।
रोगानुसार चिकित्सा
निम्न प्रकार है
- मधुमेह करेले में इन्सुलिन पर्याप्त मात्रा में होती है , फलतः मूत्र व रक्त दोनों की शर्करा नियंत्रित हो जाती है। इसलिए रोजाना करेले का रस व टमाटर का रस मिलाकर पीना चाहिए।
- खुजली – रक्त में अम्लता बढ़ने से खुजली , चमीग होते हैं , करेले का रस आधा कप व बराबर पानी मिलाकर पीने से रक्त शुद्धि हो जाती है। सरसों का तेल चार चम्मच लेकर इसका रस चार चम्मच मिलाकर मालिश करें।
- पीलिया करेले का आधा गिलास रस बराबर पानी मिलाकर भूखे पेट पी लें , इससे दस्त लगेंगे पेट की खराबी दूर हो जायेगी पीलिया ठीक हो जायेगा। करेले की सब्जी खाना भी लाभ करेगा। 4. यकृत , तिल्ली , जलोदर , गुर्दे की सूजन- इन सभी रोगियों को सौ ग्राम करेले का रस व बराबर पानी मिलाकर उसमें दो चम्मच शहद डालकर पीने से एक माह में रोग से छुटकारा मिल जाता है।
- पथरी करेले में फास्फोरस व मैग्निशियम होता है जो मूत्राशय व वृक्क की पथरी को तोड़कर पेशाब द्वारा बाहर फैंक देता है। पेशाब की मात्रा बढ़ाकर जलन भी ठीक हो जाती है। अतः दो करेले का रस व एक कप छाछ मिलाकर पीने से पथरी ठीक होती है , लेकिन यह क्रिया तीन दिन करें व तीन दिन नहीं करें।
- खांसी- खाँसी , कफ , गले में खराश , दमा रोग हो तो बिना घी लगाई रोटी व करेले का भुर्ता सेवन करें पूर्ण लाभ मिलेगा।
- स्तन दूधवर्धक करेले के बीस पत्ते मसलकर एक गिलास पानी में उबालें , आधा पानी रहने पर छान कर पी लें , शिशु की माँ के स्तनों में दूध बढ़ने लगेगा।
- खूनी मस्सा- आधा कप करेले का रस उसमें मिश्री मिलाकर पीने से लाभ होगा। यदि बादी मस्सा हो तो करेले का रस सेवन के साथ – साथ शौच के बाद मस्सों पर रस लगाना भी है।
- पैरों की जलन करेले या इसके पत्तों की रस की मालिश करने से पैरों के तलवे की जलन मिट जाती है।
- गठिया – करेला गठिया व जोड़ों के दर्द को ठीक करता है। अतः करेले का भुर्ता / चटनी देशी घी में बनाकर खवें , जोड़ों पर रस की मालिश करें। इस प्रकार करेले का सेवन संधिवात , स्नायुवात का नाशक है। करेले के दुष्प्रभावों को मिटाने हेतु घी और चावन का सेवन करना चाहिए।
- मासिक धर्म मासिक के विकार ( अनियमित मासिक , अधिक / कम मासिक , दर्द के साथ होना या बंद हो गया हो ) में करेले की सब्जी , भुर्ता / चटनी देशी घी में बनाकर खावें साथ ही सुबह के समय आधा कप करले के रस में बराबर पानी मिलाकर पी ले तो शीघ्र लाभ होगा।
12 मुँह के छाले एक गिलास पानी में आधा कप करेले का रस मिलाकर उसमें एक ग्राम फिटकरी डालकर सुबह – शाम कुल्ले करने से छाले ठीक हो जाते हैं। करेले के एक चम्मच रस में थोड़ी सी मिश्री मिलाकर चाटने से भी छाले ठीक हो जाते हैं। – हौम्योपैथिक में करेले के मूल अर्क को एल्कोहल में मिलाकर मदर टिचर तैयार किया जाता है जो विभिन्न रोगों में उपयोगी कहलाती है। - खसरा ( छोटी माता ) – खसरा व माता के फैलाव के समय हौम्यो पद्धति द्वारा तैयार मोमर्डिका कैरणिया औषधि 3 शक्ति में पांच बूंद दवा आधा कप पानी में डालकर सात दिन पिलावें , सुबह – शाम माता / खसरा होने से बचाव होगा । यदि खसरा / माता निकल चुकी हो तो उक्त दवा दिन में पांच बार देवें। चेचक व खसरा के सारे कुप्रभाव ( बुखार , खांसी , बदनदर्द , जुकाम ) ठीक होने के साथ – साथ दाने भी ठीक हो जायेंगे ।
- इस हौम्योपैथिक दवा से कब्ज , दस्त , स्तनवृद्धि में लाभ होगा। सावधानी – अधिक मात्रा में करेला सेवन करने से गले व सीने में जलन होने लगती है। गर्भवती महिला को करेला सेवन नहीं करना चाहिए। आसोज ( अश्विन ) माह में आयुर्वेद अनुसार किसी को करेला सेवन नहीं करना चाहिए।