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Sunday, November 24

बर्थ एनिवर्सरी:कई कारों-बंगलों के मालिक भारत भूषण को आखिरी सालों में खाने पड़े थे बस के धक्के…

हिंदी सिनेमा के बेहतरीन एक्टर्स में से एक भारत भूषण की आज 102वीं बर्थ एनिवर्सरी है। 50 के दशक में लड़कियां भारत भूषण के गुड लुक्स और चार्मिंग पर्सनालिटी की दीवानी थीं। उस दौर में जब राज कपूर, देव आनंद और दिलीप कुमार का दौर था, उस समय भारत भूषण ने अपने लुक्स और बेहतरीन अदाकारी से एक अलग पहचान बनाई।

भारत ने बैजू बावरा, आनंद मठ, मिर्जा गालिब और मुड़-मुड़ के ना देख जैसी बेहतरीन फिल्मों में अपनी अदाकारी का लोहा मनवाया। इस दौर में किस्मत भारत के साथ थी लेकिन ये सिलसिला ज्यादा नहीं चला। भारत के दिन बदल गए और ऐसे बदले कि उन्होंने अर्श से फर्श पर आ गए।

पिता नहीं बनने देना चाहते थे एक्टर

भारत भूषण का जन्म 14 जून 1920 को मेरठ में हुआ। उनके पिता रायबहादुर मोतीलाल वकील थे। रायबहादुर अपने बेटे भारत को भी वकील ही बनाना चाहते थे। लेकिन, भारत की दिलचस्पी फिल्मों में एक्टिंग करने की थी। लिहाजा, भारत अलीगढ़ से ग्रैजुएशन करने के बाद मुंबई चले आए। मुंबई आते ही उनका स्ट्रगल शुरू हो गया। ऐसे में वो फिल्मों में रोल पाने के लिए भटकने लगे तभी उन्हें रामेश्वर शर्मा ने अपनी फिल्म “भक्त कबीर” में काशी नरेश का रोल और 60 रुपए महीना की नौकरी दी। 1942 में रिलीज हुई “भक्त कबीर” उनकी पहली फिल्म थी। इस फिल्म के बाद उनकी किस्मत ने उनका साथ दिया और उन्होंने भाईचारा, सावन, जन्माष्टमी बैजू बावरा, मिर्जा गालिब जैसी कई फिल्में कीं। बैजू बावरा भारत भूषण की सुपरहिट फिल्म थी इस फिल्म से वो रातोंरात स्टार बन गए थे।

भारत की चमकी किस्मत

50-60 के दशक में भारत की किस्मत चमक गई थी। उनकी कमाई भी अच्छी खासी होने लगी थी। जिसके चलते उन्होंने मुंबई में बंगलों और लग्जरी गाड़ियां खरीद ली थीं। ऐसे में बड़े भाई रमेश ने उन्हें प्रोड्यूसर बनने की सलाह दी और भारत ने उनका कहना माना और कई फिल्में प्रोड्यूस कीं। इनमें से दो ही फिल्में बसंत बहार और बरसात की रात सुपरहिट हुईं। भारत की फिल्मी दुनिया में अबतक बेहतरीन नाम बन चुका था। उनका गीत ‘ओ दुनिया के रखवाले’ उनकी बेहतरीन अदाकारी का नमूना है।

फैन ने बार में देख मारा चांटा

भारत भूषण के चेहरे पर मासूमियत दिखती थी और अपनी फिल्मों में वो अधिकतर संस्कारी रोल में नजर आते थे। ऐसे में उनके फैंस के मन में भी उनकी संस्कारी छवि बनी हुई थी। लेकिन एक दफा उनके एक फैन ने बार में उन्हें शराब पीते देख लिया। उसे इतना गुस्सा आया कि उसने भारत को जाकर चांटा जड़ दिया और कहा- ‘मैं तो आपको सीधा सादा इंसान मानता था पर आप तो शराब पी रहे हैं।’

दूज का चांद’ से हुआ भारी नुकसान

भारत भूषण ने अपने भाई के साथ फिल्म ‘दूज का चांद’ बनाई। ये फिल्म बुरी तरह फ्लॉप रही जिससे भारत भूषण को काफी नुकसान उठाना पड़ा। भारत भूषण अपने जमाने के सबसे अमीर एक्टर्स में से एक थे लेकिन, उनकी फिल्म बरसात की रात के ठीक 9 साल बाद भारत 49 साल की उम्र में लीड एक्टर्स के पिता के रोल निभाने लगे थे। हद तो तब हो गई जब 1969 में आई फिल्म ‘प्यार का मौसम’ में भारत ने शशि कपूर के पिता का रोल प्ले किया। भारत नए जमाने के राजेश खन्ना, शशि कपूर, धर्मेंद्र जैसे स्टार्स के सामने टिक नहीं पाए और उनकी प्रोडक्शन कंपनी की लगातार फ्लॉप होती फिल्मों ने उनके फिल्मी करियर को पूरी तरह खत्म कर दिया और भूषण कंगाली की कगार पर आ गए।

किए जूनियर आर्टिस्ट के रोल

भारत 1970 तक अपनी पूरी प्रॉपर्टी बेच चुके थे और किराए के मकान में रहने लगे थे। जहां एक तरफ भारत के पास बंगलों और लग्जरी गाड़ियों की कमी नहीं थी वहीं दूसरी ओर वो अब बसों में धक्के खाने लगे थे। अपने एक ब्लॉग में अमिताभ बच्चन ने कहा था कि, ‘एक दिन मैंने भारत भूषण को बस में आम लोगों के बीच धक्के खाते हुए चढ़ते देखा। 50 के दशक में जो भारत सुपरस्टार हुआ करते थे ऐसे में वहां उन्हें कोई पहचान नहीं रहा था।’ 1990 के दशक में उन्होंने फिल्म ‘हमशक्ल’ और ‘प्यार का देवता’ में जूनियर आर्टिस्ट का रोल प्ले किया। लेकिन यहां भी उनकी किस्मत खराब रही और फिर उन्हें जूनियर आर्टिस्ट के रोल मिलना भी बंद हो गए।

जहां लोग सलाम करते थे वहीं की गार्ड की नौकरी

कहा जाता है एक दौर में जिस स्टूडियो में हर आदमी भारत भूषण को सलाम करता था वहीं उन्होंने बहुत समय तक गार्ड की नौकरी की। ऐसे में तंगहाली ऐसी थी कि भारत को एक वक्त के खाने के लिए भी परेशान होना पड़ता था।

बंगला बिका पर दुख किताबों को रद्दी के भाव बेचने पर हुआ

भारत की कारें, बंगला और सबकुछ बिक गया पर, किताबें पढ़ने के शौकीन भारत को अब भी सुकून था कि उनकी किताबें उनके साथ हैं। लेकिन एक रोज तंगहाली ने ये साथ भी उनसे छीन लिया। भारत को पेट की भूख मिटाने के लिए अपनी किताबें भी रद्दी के भाव बेचनी पड़ीं। किताबों को इस तरह से बेचना उनके लिए सबसे बड़ा दुख था।

दुनिया को अलविदा कहने के बाद हुआ दुखों का अंत

भारत की किस्मत उनसे इस तरह रुठी थी कि वापस उनकी तरफ देख ही न रही थी। आखिरी वक्त में भारत भूषण बहुत बीमार हो गए थे। लेकिन ऐसे में न कोई उनका इलाज करवाने वाला था और न ही कोई अर्थी उठाने वाला। कहते हैं हर दर्द का अंत निश्चित है सो इस दर्द का अंत भी हुआ। भारत की 71 साल की उम्र में 27 जनवरी 1992 को मौत हो गई। इस दुनिया से जाते-जाते भारत ने एक ही बात कही- “मौत तो सबको आती है पर जीना सबको नहीं आता, और मुझे तो बिल्कुल नहीं आया।”

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