:- मालचंद तिवाड़ी
बीकानेर के सोनगिरी कुआं क्षेत्र में मोहल्ला चूनगरान उतना ही पुराना है, जितना पुराना खुद शहर बीकानेर। तो उस मोहल्ले में एक अल्लारखी रहती थी। भोली, भली और नेकदिल अल्लारखी। उसके पांच संतानें थीं – चार बेटे और एक बेटी। बेटी अपने चारों भाइयों से छोटी थी। घर में सबकी लाडली और बेइंतहा खूबसूरत भी। खूबसूरत तो हमारी अल्लारखी भी कम न थी, मगर चूंकि अब उम्रदराज थी सो ‘खंडहर बता रहा है कि इमारत कभी आबाद थी’ वाला मामला था। अल्लारखी की बेटी का नाम एमना था। बेटी चाहे जितनी प्यारी हो, पर होती तो वह पैदाइशी पराई चीज है। वक़्त आने पर एमना की भी शादी हुई और वह अपनी ससुराल के बहाने नागौर चली गई। लेकिन वह जब भी पीहर आती, पूरे मोहल्ले को खुशी होती और हर कोई कहता सुनाई पड़ता,” तुमने देखा क्या, अपनी एमना बिटिया आई हुई है।’ किस्सा क़ोताह, एक बार एमना आई तो उसके साथ उसके शोहर भी आए। अल्लारखी ने पूरे मोहल्ले में शीरनी(प्रसाद) बंटवाई और आन की आन में यह ख़बर फैल गई कि अल्लारखी के जंवाई आए हुए हैं। अब जंवाइयों को शोभा तो यही देता है कि ससुराल में चार दिन ख़ातिर-तवज्जो का शौक पूरा करें और चलते बनें। लेकिन अल्लारखी के जंवाईसा को ससुराल ऐसी रास आई कि उनके दिल से वापस लौटने का ख़्याल ही जाता रहा। बकौल ग़ालिब – ‘जाना ख़याल दिल से तेरी अगुश्ते-हिनाई का/हो गया गोश्त से नाखून का जुदा होना।’ लगभग यही मामला था।अब ख़बर की फितरत बदल गई। पहले वह इस तरह थी कि अल्लारखी के जंवाई आए हुए हैं और अब कुछ ऐसे हो गई कि अल्लारखी के जंवाई गए कि नहीं ? होते-होते हुआ यह कि अल्लारखी सब्जी या दूध लेने भी जाती तो हर कोई सवाल करता,”अल्लारखी, तेरे जंवाई गए कि नहीं ?” एक, दो, चार, छ, आठ महीने करते-करते मामला हिसाब से बाहर निकल गया और अल्लारखी के जंवाई वहीं के वहीं। लोग बाज़ थोड़े ही आते हैं, पूछते ज़रूर,”अल्लारखी, तेरे जंवाईसा गए कि यहीं हैं?”
आख़िर को अल्लारखी तंग आ गई इस सवाल से। एक दिन बालू की दुकान से सौदा लेने गई, तो वह भी पूछ बैठा,”अल्लारखी, जंवाई गए कि यहीं हैं?” अब अल्लारखी के सब्र की सीमा ख़त्म हो गई लेकिन उसने ख़ुद पर काबू रखा। बोली,” बालू भाई, जंवाई तो क्या जांगे,अब तो हम ही जांगे !” कुदरत की बात, चौथे दिन ही मोहल्ले भर में सवेरे-सवेरे एक ही ख़बर इधर से उधर घूमती फिर रही थी,” सुना तुमने, मसज़िद के मिंबर से क्या ऐलान हुआ आज ? अपनी अल्लारखी कल रात इन्तकाल फरमा गई। अच्छी-भली थी, बस एक ही ख्वाहिश दिल में लेकर चली गई कि बेटी-जंवाई को बिदाई दे दूं तो चैन की नींद सोऊं!”