● संजय आचार्य वरुण
बीकानेर में भारतीय जनता पार्टी की पहली ईंट रखने वाले चुनिन्दा लोगों में से एक वरिष्ठ नेता एडवोकेट ओम आचार्य का गुरुवार की शाम को निधन हो गया। बीकानेर की जनता के बीच ‘ओमजी’ नाम से लोकप्रिय एडवोकेट ओम आचार्य एक जमाने में बीकानेर भाजपा का चेहरा माने जाते थे। उन्होंने उस दौर में भाजपा का झण्डा थामा था, जिस दौर में लोग भाजपा को पूरी तरह जानते तक नहीं थे। उन्होंने दो बार विधानसभा और एक बार लोकसभा का चुनाव लड़ा था। लोकसभा चुनाव तो उन्होंने पार्टी के दबाव में लड़ा था। बीकानेर के परकोटे के पुष्करणा ब्राह्मण होने के बावजूद ओमजी ने उस समय के विशाल बीकानेर लोकसभा क्षेत्र मे भाजपा की सशक्त उपस्थिति दर्ज करवाई थी।
एडवोकेट ओम आचार्य और मक्खन जोशी जैसे नेता बीकानेर को मिले, लेकिन बीकानेर की जनता उन्हें समय रहते पहचान नहीं पाई। ओमजी कुशल वक्ता और बेहतरीन संगठक थे। आज भाजपा अगर बीकानेर की राजनीति में सबसे सफल पार्टी है तो उसमें कहीं न कहीं ओमजी का महत्वपूर्ण योगदान है। भाजपा के शहर जिलाध्यक्ष के रूप में दूसरी बार सफलता पूर्वक कार्य कर रहे विजय आचार्य उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी एवं पुत्र तुल्य भतीजे हैं। विजय आचार्य का समस्त राजनीतिक कौशल ओमजी की ही देन है। उनके पिता स्व.दाऊदयाल आचार्य स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ ही अनेक भाषाओं के ज्ञाता और अत्यंत विद्वान व्यक्तित्व थे।
कहा जा सकता है कि ओमजी को राजनीतिक कौशल, संघर्ष की क्षमता, विद्वता और त्याग करने की प्रवृति अपने पिता से विरासत में मिली थी। ओमजी ने भाजपा में प्रदेश महामंत्री सहित विभिन्न पदों पर सफलता से कार्य किया लेकिन आज ये कहा जा सकता है कि पार्टी ओमजी की असीम ऊर्जा और प्रतिभा का समुचित उपयोग नहीं कर पाई। साथ ही यह भी सच है कि ओमजी की अद्वितीय योग्यता के अनुरूप उन्हें राजनीतिक उपलब्धियां नहीं मिली। इन सन्दर्भों में कहीं न कही उस समय के पार्टी के प्रदेश नेतृत्व को दोषी माना जा सकता है। वे राज्यसभा में भेजे जाने योग्य व्यक्तित्व थे।
लोकसभा चुनावों में उम्मीदवार न मिलने पर उन्हें लोकसभा प्रत्याशी तो बना दिया गया लेकिन पार्टी के सशक्त हो जाने पर उन्हें प्रदेश अध्यक्ष या राज्यसभा उम्मीदवार क्यों नहीं बनाया गया ? ओमजी के निधन के साथ ही आज बीकानेर की राजनीति का एक गौरवशाली अध्याय समाप्त हो गया है।
वे शुचिता की राजनीति के एक मजबूत स्तम्भ थे। ओमजी तत्कालीन समीकरणों के कारण भले ही स्वयं चुनाव नहीं जीत पाए लेकिन अनेक चुनावों में भाजपा प्रत्याशियों के रणनीतिकार वे ही रहे। किसी जमाने में बीकानेर को कांग्रेस का गढ़ माना जाता था, उस गढ़ में सेंध लगाने वाले नन्दू महाराज की जीत के रणनीतिकार ओमजी ही थे। स्व. गोपाल जोशी के भाजपा से प्रथम चुनाव और जीत में ओमजी की अहम भूमिका रही थी। ओमजी राष्ट्रीय स्तर की राजनीतिक सोच और उसी कद के नेता थे। यह बात उस समय के प्रदेश भाजपा के अनेक बड़े नेता जानते थे, इसलिए उनकी राजनीतिक प्रतिभा को सोची- समझी योजना के तहत दबाए रखा गया, जैसे और जितने अवसर उन्हें मिलने चाहिए, वे नहीं मिले, यह बीकानेर का भाग्य था।
बहरहाल, ओमजी का जाना दुखद है, क्योंकि ऐसे व्यक्तित्व और नेता बार-बार नहीं आते। ओमजी ने अपना सम्पूर्ण जीवन बहुत ही सादगी और सरलता से जीया। जीवन का अंतिम समय अस्वस्थता के कारण कुछ कष्टदायक अवश्य रहा लेकिन शारीरिक कष्ट उनके चेहरे की मुस्कान और आत्मबल नहीं छीन पाया। धरातल से जुड़े इस विराट व्यक्तित्व के नेता को शत शत नमन।