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Thursday, September 19

दृष्टिकोण: केवल चुनाव के समय बैनर लगाकर दावेदार न बनें

~ संजय आचार्य वरुण

केवल चुनाव के समय बैनर लगाकर दावेदार न बनें। अब जनता पहले जितनी भोली नहीं है। हाथ जोड़कर फोटो खिंचवाने से जनता का समर्थन हासिल नहीं होता, जनता का समर्थन मिलता है, हर परिस्थिति में जनता के साथ खड़े रहने से। अगर आप राजनीति करना चाहते हैं तो चुनाव से साढ़े चार साल पहले तक आम लोगों के साथ खड़े रहिए। उनके सुख- दु:ख के भागीदार बनिए। चुनाव से चार महीने पहले ‘बींद’ बनकर हर तरफ दिखाई देना राजनीति नहीं होता। राजनीति होता है लोगों की परेशानियों को बिना बुलाए जाकर दूर करना।

चुनाव जीतने से पहले जनता का ये विश्वास जीतना जरूरी होता है कि ‘और कोई हो न हो, फलां व्यक्ति जरूर हमारे साथ है।’ जनता का भरोसा पाए बिना भी चुनाव नहीं जीते जाते और जनता का विश्वास खोकर भी चुनाव नहीं जीते जाते। यदि आप जनता के हक के लिए लड़ेंगे तो जनता खुद आपको टिकट दिलाने के लिए लड़ेगी। अपने बारे में आप खुद कुछ मत कहिए और जनता आपके बारे में कह सके, निस्वार्थ भाव से इतनी जन सेवा कीजिए। राजनीति का मकसद केवल चुनाव जीतकर एम एल ए, एम पी और मंत्री बनना नहीं होता। राजनीति का मकसद लोकतांत्रिक व्यवस्था में एक आम नागरिक के सच्चे हितैषी के रूप में स्थापित होना होता है।

पुराने नेताओं का राजनीतिक जीवन जनहित के आंदोलनों से ही शुरू होता था। उनके दिमाग में ये बात होती ही नहीं थी कि उन्हें एम एल ए, एम पी या मंत्री पद को सुशोभित करना है। राम मनोहर लोहिया, जय प्रकाश नारायण, जॉर्ज फर्नांडीस,पूर्व प्रधानमंत्रीअटलबिहारी वाजपेयी, चंद्रशेखर, लालकृष्ण आडवाणी आदि वे नाम हैं जिनका राजनीतिक मकसद केवल जनता के लिए आंदोलन और संघर्ष करना होता था। जनता के लिए लगातार काम करते- करते वे आगे बढ़े। बैनर लगाकर या प्रचार प्रसार करके अपना नाम और चेहरा तो लोगों को याद करवाया जा सकता है लेकिन लोगों के मन में स्थान नहीं बनाया जा सकता। बड़े नेताओं के सभा स्थलों पर खूब सारे होर्डिंग्स लगवाने के बजाय उस धन को गरीब जनता के कल्याण में लगाएंगे तो बड़े नेता खुद आपके पास आएंगे।

सोशल मीडिया पर टीम अलाना, टीम फलाना बनाने से राजनीति नहीं होती, जमीनी स्तर पर खुद को पूरा झौंक देना पड़ता है। फेसबुक पर टीम के नाम से पेज बनाने के बजाय लोगों के बीच जाना ज्यादा असरदार हो सकता है, उस वक्त टीम अपने आप बन जाएगी, एक बहुत प्रसिद्ध शे’र है- मैं अकेला ही चला था जानिबे मंजिल मगर, लोग साथ आते गएऔर कारवां बनता गया। बीकानेर शहर में सर्वाधिक लोकप्रिय नेता मुरलीधर व्यास हुए हैं। उनके पास कौनसी टीम थी, जो व्यक्ति खाली जेब घर से निकल जाता, वो हजारों रुपये के बैनर कहां से लगवाता और कहां से समाचार पत्रों में पूरे- पूरे पृष्ठ के महंगे विज्ञापन दे पाता। वे नेता बने जनता के लिए संघर्ष करके, जीवन का एक बड़ा हिस्सा जन आन्दोलनों में लगा दिया। आन्दोलनों में जनता के लिए जेल जाने से भी घबराए नहीं।

बिल्कुल इसी तरह के एक और नेता थे बीकानेर के पूर्व विधायक गोकुल प्रसाद पुरोहित, उन्हें भी श्रमिक नेता इसीलिए कहा जाता है कि उन्होंने मजदूर वर्ग के अधिकारों के लिए अनेक संघर्ष किए, आन्दोलन किए। ता उम्र वे आम आदमी के लिए व्यवस्था से लड़ते रहे। नेता तो ऐसे लोगों को ही कहा जाता है, बाकी तो हाथ जोड़कर फोटो खिंचवाना और बड़े बड़े पोस्टर लगवाना राजनीतिक मॉडलिंग है। आज के समय में वास्तव में ऐसे नेताओं की जरूरत है जो ईमानदार हो और राजनीति के ग्लैमर अप्रभावित रहते हुए पदों का मकसद रखे बगैर सार्वजनिक जीवन में आम आदमी के लिए परिश्रम कर सके। इसमें कोई दो राय नहीं कि एक आदर्श समाज का निर्माण राजनीति ही कर सकती है। टिकट, चुनाव और लाल बत्ती की गाड़ियों के मोह से मुक्त जन नेता हमारे दौर की सबसे बड़ी जरूरत है। देखते हैं कि आदर्श राजनीति का दौर आखिर कब तक लौटकर आता है।

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