Welcome to Abhinav Times   Click to listen highlighted text! Welcome to Abhinav Times
Thursday, September 19

दृष्टिकोण: विरोध की नहीं, सहयोग की राजनीति हो, जनादेश को स्वीकार करने के अर्थ तक पहुंचें

संजय आचार्य वरुण

पिछले तीन महीनों से चल रहा दावों, प्रयासों और कयासों का सिलसिला कल 3 दिसम्बर को अगले पांच सालों के लिए पूरी तरह से समाप्त हो गया है। अब एक इस बात के कयास बचे रह गए हैं कि अगला मुख्यमंत्री कौन होगा ? ऐसा लगता है कि इस सवाल का जवाब भी आज- कल में ढूंढ़ ही लिया जाएगा। यह लोकतंत्र की खूबसूरती है कि इसमें अहम और वहम दोनों के लिए कोई स्थान नहीं है। जिस किसी पर भी सत्ता का अहम और जीत का वहम हावी हुआ नहीं कि जनता जनार्दन उसे जमीन पर लाकर खड़ा कर देती है। लगातार पांच साल तक एक शक्तिशाली जीवन जीते हुए जैसे ही नेतागण यह भूलने लगते हैं कि वे समाज के अंतिम पायदान पर खड़े बहुत ही सामान्य से व्यक्ति के एक- एक वोट की बदौलत इस शक्ति और सामर्थ्य का केन्द्र बने हैं, वैसे ही लोकतंत्र का सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान चुनाव उन्हें शून्य पर लाकर खड़ा कर देता है और शिद्दत से याद दिलाता है कि वे स्वयं व्यवस्था नहीं हैं बल्कि व्यवस्था की बहुत छोटी सी इकाई मात्र हैं। यह बात जितनी अपने आप को बाहुबली समझने वाले किसी विधायक पर लागू होती है, उतनी ही मुख्यमंत्री सहित तमाम कद्दावर कहे जाने वाले मंत्रियों पर भी लागू होती है।

लोग कहते हैं कि फलां प्रदेश में हर पांच साल बाद सत्ता बदलने का रिवाज है, परम्परा है। दरअस्ल, ऐसा कुछ नहीं होता, ये केवल एक संयोग है कि जनता पांच साल में एक पार्टी से ऊबकर दूसरी को अवसर देती है। जब जनता के पास अधिक विकल्प न हो तो स्वाभाविक है कि ‘एक बार इसको तो एक बार उसको’ ही मौका मिलेगा। जब एक आम मतदाता ईवीएम का बटन दबा रहा होता है तब उसके अवचेतन में कोई भी राजनीतिक परम्परा या रिवाज की स्मृति नहीं होती है। यहां पर अगर कुछ होता है तो वह होता है उसके द्वारा पिछली बार चुने गए जन प्रतिनिधि से उसका संतोष या असंतोष। आम मतदाता चाहता है कि नेता चुनाव जीतने के बाद भी उसके साथ उतना ही सहज एवं सरल बना रहे जितना कि वह वोट मांगने के वक्त होता है। लेकिन सामान्यतौर पर ऐसा होता नहीं है।

चुनाव जीतने के बाद नेता साहब अथवा सर बन जाता है। उसे उस आम वोटर की शक्ल याद नहीं रहती जिसके सामने वह हर पांच साल बाद वोट के लिए गिड़गिड़ाता है। बस, वोटर का यही असंतोष विपरीत चुनाव परिणाम के रूप में सामने आता है। अब जब पूरा मानवीय समाज ही बहुत प्रैक्टिकल हो गया है, ऐसे में आप ये क्यों नहीं समझते कि वह सामान्य सा दिखने वाला वोटर भी तो इसी प्रैक्टिकल मानवीय समाज का एक हिस्सा है। आपका वक्त आने पर जब आप उससे बदल जाते हैं तो उसका वक्त आने पर वह आपसे क्यों नहीं बदलेगा ?हमारे इसी दौर में बार बार लोगों की पसन्द बनने वाले, बार-बार जीतने वाले और बार-बार सरकार बनाने वाले दल और नेता भी तो मौजूद हैं, जरा सोचिए कि उनमें और आपमें ऐसा क्या फर्क है कि उनको वही आम मतदाता बार-बार, हर बार चुन रहा है और आपको खारिज कर रहा है। दरअस्ल, चुनाव हारने के बाद एक रवायत के चलते नेता यह कह तो देते हैं कि जनादेश शिरोधार्य है, हम आत्मचिंतन करेंगे अथवा जन सामान्य के हित में पहले की भांति कार्य करते रहेंगे, वे सिर्फ ऐसा कहते हैं ऐसा करते नहीं है। न तो वे खुले मन से जनादेश को स्वीकार कर पाते हैं, न ही स्वयं से हो चुकी गलतियों पर आत्मचिंतन करते हैं और न ही अगले पांच साल तक सच्चे मन से जनहित के कार्य करते हैं।

लोकतंत्र में राजनीति करने वाले के लिए विनम्रता सदैव अनिवार्य रहती है। हर नेता जनता के वोट से ही सत्ता का भागीदार बन सकता है। उस जनता के साथ आपको सहज व्यवहार रखना ही पड़ेगा। उससे किए वादों को क्रियान्वित करना ही पड़ेगा, उसके लिए आपको उपलब्ध रहना ही पड़ेगा, उसकी बात आपको सुननी और समझनी ही पड़ेगी क्योंकि आप जो कुछ भी हैं, आपको उसी जनता ने बनाया है।

जिन्हें इस बार जनता जनार्दन द्वारा चुना गया है, वे भी धरातल पर रहें। आपको भी पिछली बार इसी जनता द्वारा खारिज कर दिया गया था, अगले पांच साल बाद फिर ऐसा न हो, इस हेतु अभी से ही बहुत सहजता, निष्ठा, सरलता और ईमानदारी के साथ काम करना पड़ेगा। वरना हर चुनाव के बाद विश्लेषक यही कहते नजर आएंगे कि साहब इस प्रदेश में तो हर पांच साल बाद सत्ता परिवर्तन का रिवाज है। आपके पास अवसर है कि इस बार आप ये रिवाज बदलकर दिखाएं।चुनाव में पराजित होने वाली पार्टियों और नेताओं को वास्तविक रूप से जनादेश को स्वीकार करते हुए यह चिंतन करना चाहिए कि आखिर क्यों हम जनता की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतर पा रहे हैं।

राजनीतिक दल अपनी नीतियां और अपने तरीके जनता पर न थोपकर यह समझने के प्रयास करे कि जनता आखिर उनसे क्या चाहती है। जनादेश को स्वीकार करने का अर्थ है कि जिसे जनता ने पसंद किया है, आप भी सकारात्मक दृष्टिकोण से उन्नत समाज के निर्माण में उनको सहयोग करें, वे भी आपके अनुभवों और ऊर्जा को राष्ट्र हित में बिना राजनीतिक विद्वेष के उपयोग करें। हमारे देश की राजनीति को विरोध की राजनीति नहीं, सहयोग की राजनीति बनाइए। जनता आपको हर बार पसंद करेगी।

Click to listen highlighted text!