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Thursday, September 19

प्राचीन जीवनशैली:फिर अपनाएं प्राचीन और आयुर्वेदिक जीवनशैली, जानिए इनके बारे में

हमारी जीवनशैली व्यस्त होने के साथ-साथ अस्वस्थ भी है। समय और मेहनत बचाने के लिए हम आधुनिक उत्पादों पर पूरी तरह से आश्रित हो चुके हैं। जबकि अधिक से अधिक केमिकल रहित वस्तुओं का इस्तेमाल करके इस निर्भरता को समाप्त किया जा सकता है। हमारी प्राचीन और आयुर्वेदिक आदतों को दिनचर्या का हिस्सा बनाकर अपनी जीवनशैली और स्वास्थ्य, दोनों को बेहतर बना सकते हैं। किन आदतों को दोबारा अपनाना है, यहां पढ़िए…

तेल से कुल्ला

यह एक प्राचीन आयुर्वेदिक विधि है जो मुंह की सेहत के लिए लाभकारी है। इसे सुबह ख़ाली पेट करना फ़ायदेमंद होता है। इससे मुंह की कई बीमारियां दूर होती हैं और मसूड़ों में मज़बूती बनी रहती है। नियमित तौर पर कुल्ला करने से मुंह में मौजूद हानिकारक कीटाणु अच्छी तरह से साफ़ हो जाते हैं। साथ ही साथ मुंह की दुर्गंध, मसूड़ों का सड़ना, कैविटी की समस्या, मसूड़ों की सूजन व दांत दर्द जैसी समस्याएं दूर होती हैं। कुल्ला करने के लिए एक बड़ा चम्मच तिल का तेल लें और एक मिनट तक इसे मुंह में चारों तरफ़ घुमाएं। हालांकि इसे पांच से दस मिनट तक मुंह में घुमाना होता है, जो कि आसान नहीं है इसलिए सिर्फ़ एक मिनट करने से भी लाभ मिल सकता है। एक मिनट बाद तेल थूक दें। इसे निगले नहीं। फिर गुनगुने पानी से कुल्ला कर लें।

आज़माएं दातुन

जब टूथ ब्रश और पेस्ट नहीं हुआ करते थे, तो लोग नीम की टहनी का इस्तेमाल दातुन के लिए करते थे। आयुर्वेद के अनुसार नीम कीटाणुओं से लड़ने में कारगर होता है इसलिए मुंह के जीवाणु इससे दूर होते हैं। इससे मसूड़ों को मज़बूती मिलती है, दांत सफेद और चमकदार होते हैं। दातुन के लिए नीम, कनेर या बबूल के पेड़ की ताज़ी टहनी इस्तेमाल कर सकते हैं। ब्रश करने के लिए पहले दांतों से टहनी की छाल को एक-दो इंच तक चबाएं। टहनी थोड़ी सख्त होती है इसलिए इसे चबाकर ब्रश में बदलने में वक़्त लग सकता है। जब यह मुलायम हो जाए तो दातुन ब्रश को ऊपर के दांतों पर ऊपर से नीचे ले जाएं और नीचे के दांतों पर नीचे से ऊपर ले जाएं। पेड़ की दातुन के साथ अच्छी बात यह होती है की इसे प्रतिदिन बदल सकते हैं।

अभ्यंग लाभ

अभ्यंग (मालिश का एक तरीक़ा) शरीर का तापमान नियंत्रित करता है। ये शरीर में रक्त प्रवाह और दूसरे द्रवों के प्रवाह में भी सुधार करता है। शरीर के साथ-साथ मन की ऊर्जा का संतुलन बनाता है। अभ्यंग में सुबह के समय शरीर पर हल्के हाथों से तिल, सरसों, या नारियल तेल आदि से मालिश की जाती है। यदि आप योग, जिम, साइकिलिंग, खेल-कूद में सक्रिय हैं तो आपके लिए तेल का प्रयोग और भी ज़्यादा उपयोगी है, क्योकि इससे शरीर की मांसपेशियों में लचीलापन आता है व कोई गतिविधि करने पर किसी तरह के खिचाव आने की सम्भावना भी कम हो जाती है। साथ ही शरीर में स्फूर्ति भी आती है, इसलिए हल्के हाथ से सुबह के समय तेल की मालिश अवश्य करें।

ज़मीन पर चलना

हम दिनभर जूते-चप्पल पहने रहते हैं। घर के अंदर भी अक्सर चप्पल पहन लेते हैं। किंतु कुछ वक़्त के लिए जूते और चप्पल के बिना ज़मीन पर चलना ज़रूरी है। जब बिना चप्पल और जूतों के ज़मीन पर चलते हैं तो पैरों को ऑक्सीज़न मिलती है व रक्त संचार बेहतर होता है। साथ ही, पैरों की मांसपेशियां भी सक्रिय हो जाती हैं। ज़मीन पर पैर रखने से पैरों और पंजों पर दबाव पड़ता है जो एक्यूप्रेशर का काम करता है। इसके अलावा धरती से प्राकृतिक ऊर्जा मिलती है जो पूरे शरीर में संचारित होती है। लिहाज़ा घर में ज़्यादा से ज़्यादा पादुका के बिना चलने की कोशिश करें। सुबह के वक़्त ज़मीन पर कुछ मिनट नंगे पैर चलने की कोशिश करें।

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