( फिल्म समीक्षा ) – मनोज आचार्य (कोलकाता)
अभिनव रविवार। मर्यादा पुरुषोत्तम राम के कथानक पर आधुनिक दौर में आर्थिक हष्टिकोण से कई धार्मिक फिल्में व धारावाहिक के निर्माण होते है पर लेखकों व निर्देशकों का उदेश्य हिन्दू – संस्कृति से परे धन – अर्जन का उद्देश्य सर्वोपरी होता आया है और उसी क्रम मे 16 जून को फिल्म ‘ आदिपुरुष ‘ का प्रदर्शन हुआ जो विवादों मे घिर चुकी है ।
फिल्म देखने गये दर्शक अपने बच्चों को मर्यादा पुरुषोतम राम व रामायण के विभिन्न चरित्रों का परिचय कराने ले गये लेकिन फिल्म देखकर दर्शक निराश हो गये। हाँ, बच्चों को कार्टूननुमा फिल्म देखकर थोड़ा मजा जरूर आया । फिल्म निर्माण करते समय रामायण के चरित्रों के संवादों, संस्कारों व उनकी मर्यादाओं को तोड़ मरोड़ कर उन्हे टपोरी संवादों व अभिनय को दर्शकों के समक्ष प्रस्तुत किया गया जो भारतीय जनता के हृदय को कुठाराघात करते हुए प्रतीत हुआ है ।
इस फिल्म मे लिखे गये डॉयलाग हिन्दू- भावनाओं को ठेस पहुँचाते नजर आये क्योंकि रामायण का मूलभाव बिलकुल परिवर्तित होगया । इस फिल्म के डायलॉग लिखने वाले मनोज मुंतशिर ने अपने डायलॉग को लेकर माफी मांगी और कहा कि हमे टारगेट किया जा रहा है, हमारी कमी यह है कि हमने फिल्म को शुद्धता के पैमाने पर सेल नही किया है, हमने आज की पीढ़ी के अनुसार भाषा का इस्तेमाल किया है। यदि संवाद रामायण के युग की भाषा में रखने होते तो फिर मै अपनी गलती मानता हूं क्योंकि मुझे फिर संस्कृत में लिखना था पर लिख नही पाता क्योंकि मुझे संस्कृत नही आती है ।
सोचिए, जिस फिल्म निर्माता या उसके डायलॉग लिखने वालो को रामायण के चरित्रों या उनके संस्कारों व मर्यादाओं की जानकारी या ज्ञान नहीं था तो किसी अन्य विषय पर फिल्म बना कर धम कमाते, भारतीय धर्म गाथा को टपोरी संवादों व अभिनय के आधार पर दर्शकों को परोसने की क्या जरूरत पड़ गई ?
डायलॉग लेखक मनोज मुंतशिर आगे कहते हैं कि शुद्धता कभी हमारा मकसद नही था, मकसद था उन बच्चों तक पहुंचाना जो नही जानते थे कि भगवान राम कौन है ? मुंताशिर का कहना है कि मुझे बहुत दुःख हो रहा कहते हुए कि 10 – 12 साल के बच्चे भगवान राम के बारे में उतना ही जानते जितना उनके अभिभावकों ने उन्हें बताया है या घर पर भगवान राम की तस्वीर दिखाई हो, बस उतना ही जानते हैं ।
फिल्म का निर्माण हुआ और दर्शक उत्साहित हो कर सिनेमा गृहों मे गये अपने बच्चों को लेकर पर उन सिनेमा गृहो के रजतपटल पर हिन्दुस्तान के दर हिन्दू के हृदय स्थल में बसने वाले चरित्रों व उनके मर्यादित संवादों व संस्कारो की जब धज्जियां उड़ते देखी तब दर्शकों की नजरें रजत पटल पर फिल्म देखने में कम और शर्म के मारे शायद जमीन में ज्यादा गड़ रही थी ।
अगर हम गौर करें तो फिल्म मे टपोरी डायलॉग कर के मूल रूप से छेडछाड़ करके संस्कारयुक्त संवादों का मज़ाक उडाया गया है। फिल्म के एक दृश्य के सीन मे जब हनुमान अशोक वाटिका में टहल रहे थे तो एक राक्षस ने हनुमान से कहा,” यह तेरी बुआ का बगीचा है जो हवा खाने आया, जब रावण को अंगद ललकारते हैं तो अंगद कहते है ‘ रघुपति राघव राम बोल और अपनी जान बचा ले, वरना आज खडा है, कल लेटे हुए मिलेगा ।
फिल्म मे इस तरह के कई टपोरी टाइप के डायलॉग (संवाद) हैं जिनकी राजनितिक – सामाजिक व धार्मिक स्तर पर आलोचना हो रही है। फिल्मे पहले भी बनती थी और फिल्म मे किसी भी तरह के आपतिजनक या दर्शक के मनःमस्तिक को ठेस पहुंचाने वाले संवाद या दृश्यों पर सेंसर बोर्ड कैंची चला देता था पर शायद आज कैंची में धार कम हो गई और आर्थिक दृष्टिकोण से उन कमियों को नजर अंदाज कर दिया जाता है।
आज दर्शकों की धार्मिक भावना को ठेस पहुँचाने वाली इस तरह की फिल्मे क्या हमें राम युग की मर्यादा या संस्कारों से परिचय करा सकती है? कुछ लोग अपने अर्थ – लोभ मे हिन्दुस्तान के करोड़ों हिंदुओं को धर्म से भ्रमित करके हिन्दू भावनाओं पर आघात कर रहे हैं।
मनोज आचार्य (कोलकाता)