Welcome to Abhinav Times   Click to listen highlighted text! Welcome to Abhinav Times
Friday, November 22

संवाद अदायगी के विशेष अंदाज के लिए याद किए जाते हैं अभिनेता कन्हैया लाल

अभिनेता कन्हैयालाल बॉलीवुड के उन दिग्गज अभिनेताओं में शुमार हैं जिनके अभिनय की छाप दशकों बाद आजतक फीकी नहीं पड़ी है । हिंदी सिनेमा के उन शुरुआती कलाकारों की उस पीढ़ी के प्रतिनिधि भी हैं जिन्होंने देश-विदेश के सिनेमा जगत को अपनी एक्टिंग क्षमता से हिलाकर रख दिया। आज उनकी टक्कर का शायद ही कोई कैरेक्टर आर्टिस्ट नजर आए। अगर मदर इंडिया की वजह से नर्गिस अभिनय के शिखर पर दिखती हैं तो कन्हैयालाल भी उनके अपोजिट धूर्त और मौक़ा परस्त साहूकार की भूमिका में सर्वश्रेष्ठ खलनायक नजर आते हैं । हालांकि सिनेमा में उनके योगदान को भुला दिया गया है लेकिन उनका अभिनय आज भी मिसाल की तरह मौजूद है । बड़े दुख की बात है कि देश के सिनेमा में उत्कृष्ट योगदान देने के बावजूद किसी चर्चा या पहल में उनके हिस्से का क्रेडिट नजर नहीं आता ।

कन्हैयालाल की बेटी हेमा सिंह इस बात से दुखी जरूर हैं लेकिन उन्होंने अलग तरीका अपनाया है, सिनेमा में पिता के योगदान को उन्होंने खुद लोगों के सामने रखने का फैसला किया है। उन्होंने कन्हैलाल के समूचे जीवन संघर्ष को एक डॉक्युमेंट्री में समेटा है ।

कन्हैयालाल का पूरा नाम कन्हैयालाल चतुर्वेदी है । अभिनय कला विरासत में मिली थी । बनारस में उनके पिता रामलीला मंडली चलाते थे लेकिन पिता की काफी पहले मौत हो गई और कन्हैयालाल का परिवार मुश्किलों में आ गया । इन दिनों उन्हें पंसारी की दुकान तक चलानी पड़ी । लेकिन अभिनय में उनकी जान थी । कुछ समय बाद सिनेमा के लिए उन्होंने मुंबई जाने का फैसला किया ताकि पैसे कमाकर घर की मदद कर सकें । कन्हैयालाल भाई संकट प्रसाद चतुर्वेदी के साथ मुंबई चले आए और फिल्मों में जूनियर आर्टिस्ट के रूप में कम करने लगे । साल 1938 में उनकी पहली फिल्म ‘कन्हैया’आई । उनकी शक्ल सूरत और गंवई अंदाज ने उन्हें बड़ी पहचान दिलाई ।

1940 में महबूब खान की औरत में कन्हैया लाल ने यादगार भूमिका निभाई । 17 साल बाद 1957 में मदर इंडिया के रूप में इसी फिल्म का रीमेक सामने आया । फिल्म में ‘सुखीलाला’ के रूप में कन्हैया लाल की भूमिका ने हर किसी का ध्यान खींचा । धूर्त, कपटी और लम्पट सुखीलाला का उनका किरदार अमर हो गया। सुखीलाला की टक्कर का दूसरा किरदार बॉलीवुड में शायद ही देखने को मिले । कन्हैयालाल का निधन साल 1982 में हुआ । उन्होंने 1938 से 1982 तक करीब 105 फ़िल्में की और कई मौकों पर लाजवाब कर दिया । उनकी प्रमुख फिल्में थी- औरत (1940 ), निर्दोष (1941), जीत (1949), मिस्टर सम्पत (1952), बहुत दिन हुए (1954), नौकरी (1954), नाता (1955 ), मदर इंडिया (1957), सहारा (1958), घराना (1961), उपकार (1967), धरती कहे पुकार के (1969), दुश्मन (1971), हीरा (1973), दोस्त (1974 ), अनोखा (1975), हत्यारा (1977), सत्यम शिवम सुन्दरम (1978), सितारा (1980) और दाग (1982)
कन्हैयालाल की संवाद अदायगी का एक विशेष अंदाज था जो दर्शकों को बहुत पसंद आता था। वे एक स्वाभाविक अभिनेता थे। उनके पूरा व्यक्तित्व में भारतीयता झलकती थी। उनके बाद उनकी शैली के अभिनेता हिन्दी सिनेमा में देखने को नहीं मिले।

Click to listen highlighted text!