विजय सिंह नाहटा
महाश्रमण भारतीय ॠषि परम्परा के जाज्ज्वल्यमान नक्षत्र हैं। आत्म कल्याण के लिए उनकी अहर्निश साधना पर कल्याण की दिशा में भी प्रवहमान है। तेरापंथ के एकादशम अधिशास्ता आचार्य प्रवर अनूठी मेधा , प्रत्युत्पन्न मतित्व , सहज सरल और सौम्य व्यक्तित्व , समत्व और ब्रहमतेज से विभूषित, समता करूणा के पर्याय , दूरदृष्टा और विलक्षण प्रशासकीय कौशल से अलंकृत आध्यात्म जगत की विरल विभूति हैं। आपका हर पल आत्म रमण में गतिमान है। आपने विनय विवेक और निरभिमानिता के गुण से दो प्रभावक आचार्यों — गणाधिपति तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञ का दिल जीतकर आपश्री जैसे उन दोनों महान आत्माओं के परम प्रिय शिष्य और मानस कृति में रूपाकार हो गये। यह भरत क्षेत्र आपके अवतरण से आह्लादित और धन्य है। तीर्थंकर के प्रतिनिधि के रूप में आप कठोर श्रम और पावन चारित्र साधना से लाखों लाख जन को प्रेरणा पाथेय प्रदान कर युग को कुशल नेतृत्व प्रदान कर रहे हैं। आपका बाह्य व्यक्तित्व
जितना मनोहारी है उसी तरह आपका आंतरिक व्यक्तित्व अनन्त गुणों की सुवास से मंडित है। आचार की पवित्रता , जिनवाणी और जिनाज्ञा के प्रति अप्रमत्त भाव से अनुगामिता और मुनि जीवन की सम्यक अनुपालना रूपि आधार भित्तियों पर आपका विराट व्यक्तित्व संकेन्द्रित होकर सकल संघ में आचार क्रान्ति के शंखनाद में हेतुभूत बना है। आपके शासन में मुनिचर्या प्रखर और विपर्यय रहित बन कर जिन शासन का मान बढा रही है। अनुशासन का पर्याय तेरापंथ शासन आपके कुशल मार्ग दर्शन में बाह्य और आंतरिक अनुशासन के नवीन क्षितिज गढ रहा है — आगे प्रवर्धमान हो रहा है। एक आचार्य – एक आचार और एक विचार की अनुशासन त्रयी में तेरापंथ का हर साधु साध्वी श्रमण श्रमणी श्रावक श्राविका समाज जैसे आबद्ध है और अपनी आत्म चेतना को निरन्तर भावित कर रहा है। आपकी नेतृत्व क्षमता का लोहा सम्पूर्ण मानव जाति ने माना है जब पूर्ववर्ती दोनों महान आचार्यों के आलोक में उनकी महान विरासत को न केवल आपने आगे बढाया है अपितु नवोन्मेषों से नवीन और स्वर्णिम इतिहास बनाया है। तेरापंथ को तत्व के प्रति सजगता प्रदान कर तत्वान्वेषी और तत्व का ज्ञानार्जन करने की दिशा में महती कार्य हुआ है और हो भी रहा है।अणुव्रत के कार्य क्रम में युग के अनुरूप परिवर्धन और विस्तार हुआ है। तेरापंथ को नवीन और अधुनातन दिशाबोध मिल रहा है लेकिन जो पुरातन और सारभूत है उसके प्रति जागरूकता के साथ अपनी जड़ों से जुड़ाव का भाव भी अक्षुण्ण बना है। आपकी विद्वत्ता और वाग्मिता विस्मय विमुग्ध करती है — जैन शास्त्रों और आगमों का वृहद अध्ययन और गहन अनुशीलन रूपी नवनीत आपकी करूणामयी वाणी का वैभव पाकर और आपके धीर गंभीर और उदात्त व्यक्तित्व का स्पर्श पाकर प्रवचन पाथेय के रूप में जन जन को आप्लावित कर रहे हैं। तेजस्विता , कर्मठता और करणीय की गहरी सूझबुझ आपको युग प्रधान और प्रभावक जैनाचार्य के रूप में प्रतिष्ठापित करते हैं। भगवत्ता और महानता की लेशमात्र गर्वानुभूति आपको छू तक नहीं गयी है। आपका विनम्र , शालीन और संयमित व्यवहार संपर्क में आये हर व्यक्ति के दिल पर अमिट छाप छोड़ जाता है। धर्म के मूल मे आपका गहन अभिनिष्क्रमण आध्यात्म की पावन गाया है। विषयानुकूल और विविध प्रसंगों पर आपके व्याख्यान और फरमावणी तेरापंथ धर्म संघ की अमूल्य धरोहर है। ऐसे निःस्पृह संत शिरोमणि आचार्यप्रवर पर हम सभी को नाज होना स्वतः और स्वाभाविक है। तेरापंथ सरताज के रूप में आपका विनयावनत अभिनन्दन गुरु भक्ति है वहीं आत्मा के अनुसंधान की दिशा में उठे आपके कदम असंख्य गुरु भक्तों और साधर्मिकों को ‘ तिन्नाणं तारयाणं ‘ के महान पथ पर वर्धमान कर भव मुक्ति की ओर ले जाने का महान उपक्रम बने हैं — एतदर्थ आपका आध्यात्मिक अनुमोदन है। हे महामनस्वी ! हे महातपस्वी !! किन शब्दों में आपका वंदन अभिनंदन और गुणानुवाद करूँ ? — जहां शब्द और भाषा दोनों ही असमर्थ हैं । वाणी मौन है। कृतित्व की पर्वत सी ऊंचाई और सागर सी गहराई शब्द की वर्णनीय सामर्थ्य से बाहर है। आपका भाव व्यक्तित्व अमाप्य गहराइयों से युक्त है। आत्म रमण में सदैव गतिमान रहते हुए भी आप दैनंदिन रुप से अनेकों लोगों को प्रतिबोध और सम्यक समाधान प्रदान कर रहे हैं। सरदारशहर से निकलकर आपका व्यक्तित्व दिगंत की ऊँचाईयों तक आरोहित है। सरदारशहर का झूमर –नेमा सुत आज तो लाखों दिलों का सरदार है। आपकी शख्सियत का शिखर बिन्दु है आपकी ॠजुता और सरलता। सरल मुस्कान तो मानो हर समस्या का अचूक समाधान ही सिद्ध हुई है। कठिन से कठिन क्षणों में भी आपश्री की सरल सुगम्य सी हास्य भंगिमा जैसे यात्रा पथ पर उज्ज्वल रेख के समान है — या फिर है अंधियारी रात में आलोक का कोई स्फुलिंग। आज दुखी मानवता आशा भरी नजरों से आपको निहार रही है। आप परिव्राजक और यायावर हैं। भारतीय उपमहाद्वीप को अपनी प्रलंब यात्राओं से आपके चरण द्वय ने नापने का अनूठा कर्तृत्व किया है। और इसका निमित्त भूत बनी है अहिंसा यात्रा। नवम्बर 2014 से प्रारंभ यह यात्रा तीन देशों और भारतीय गणराज्य के 20 से अधिक सूबों से गुजरते हुए हाल ही में नयी दिल्ली में उपसंहार को प्राप्त हुई है । आपने अब तक 50000 किलोमीटर से अधिक की पाद यात्राएं संपादित की है।परन्तु यह यात्रा का औपचारिक सत्रावसान भर है — निष्पत्ति के रूप में इसने भारतीय जनमानस को गहरे तक उद्वेलित किया है और अहिंसा की व्यापक भावभूमि और वातावरण की निर्मिति हुई है। अहिंसा के भाव जागरण में यह यात्रा उदबोधक बनी है। इस यात्रा के मूल में आपकी दृष्टि और श्रम रहा है। लाखों लोगों से मिलन , प्रवचन पाथेय ,सदभावना निर्माण , नैतिकता का शंखनाद और नशा मुक्ति के अनगिन संकल्प — इस यात्रा के सार्थक और सुखद परिणाम कहे जा सकते हैं। आपकी यह यात्रा युग युगों तक भारतीय आध्यात्म के क्षेत्र में अमिट छाप छोड़ गयी है । अहिंसा यात्रा पूज्य राष्ट्र पिता महात्मा गांधी की डांडी मार्च से 125 गुना बड़ी और पृथ्वी की परिधि से 1. 25 गुना अधिक है। हाल ही शासन माता साध्वी प्रमुखा श्री कनकप्रभा जी के प्रति गुरु अनुकम्पा और वत्सलता का सागर सम उल्लास उमड़ आया। साध्वी प्रमुखा श्री कनकप्रभा जी का स्वास्थ्य उत्तरोतर गिरावट का संकेत दे रहा था। चिकित्सक वर्ग और समग्र समाज में मायूसी और उद्विग्नता की मनोदशा थी। गुरुदेव दिल्ली की तरफ यात्रायित थे। चिन्ताजनक मेडिकल बुलेटिन आ रहे थे ।गुरुदेव के निर्धारित पादार्पण की तिथि अभी दूर थी। गुरुदेव ने अपनी दूरदर्शी नेतृत्व क्षमता से सभी को आश्चर्य में डाल दिया। और अब शुरू हुआ प्रलंब विहार का ऐतिहासिक और आहलादित करने वाला दौर। प्रतिदिन ज्यादा समय विहार क्रम मे नियोजित। परिणाम यह कि प्रस्तावित प्रवेश से बहुत-बहुत पूर्व गुरु देव का दिल्ली में मंगल प्रवेश। उपस्थित जनमैदिनी को विश्वास ही नहीं हो रहा था। गुरुदेव की शिष्या के प्रति वत्सलता से हजारों आँखें नम हो रही थी। आध्यात्म साधना केन्द्र महरौली ने युग पुरुष के स्वागत में जैसे पलक पावड़े ही बिछा दिये। गुरुदेव सीधे चिकित्सालय परिसर पधारे। दर्शन देकर मंगल पाठ उद्घोषित हुआ जैसे कोई देव दुन्दुभी बज उठी हो। नियमित दर्शन लाभ का यह क्रम अंतिम सुबह तक चलता रहा। यह है गुरु कृपा और दूरदर्शी नेतृत्व का पावन प्रसाद । यदि प्रलंब यात्राओं का निवेश न हुआ होता तो संभवतः कोई अनहोनी पूर्व में ही घटित हो जाती। आपके जीवन की ऐसी घटनाओं और प्रसंगों को सूचीबद्ध करना भागीरथी कार्य होगा — संभवतः जिसकी सूची बहुत लम्बी है। साहित्य साधना आपके जीवन का एक और महनीय पक्ष है। पंथ और ग्रन्थ से ऊपर आप एक निराले स॔त हैं। आपका लिखित साहित्य तलःस्पर्शी है और साधक को भीतर तक झंकृत करता है — आत्म रूपान्तरण का उपादान बनता है । यह एक तरह से आत्म जागरणा का सद साहित्य है। आपका रचित पुस्तक साहित्य है — ‘ आओ हम जीना सीखें ( चलो जीना सीखें ) , क्या कहता है जैन वांग्मय ? , महात्मा महाप्रज्ञ , दुःख मुक्ति का मार्ग , संवाद भगवान से , सुखी बनो , धम्मो मंगल मुक्किठम और अदृश्य हो गया महासूर्य आदि। सृजन और लेखन निरंतर गतिमान है। धार्मिक व्यवस्था के आचार्य होते हुए भी आपके विचार उदार और सत्य को उदघाटित करने वाले हैं। अहिंसा , नैतिक मूल्यों और सिद्धांतों को बढावा देने में आपका दृढ विश्वास है। अणुव्रत , जीवन विज्ञान और प्रेक्षाध्यान जैसे उपक्रम आपके निदेशन में संचालित हो रहे हैं। उत्तराध्ययन और श्रीमदभागवत गीता पर आधारित प्रवचन श्रृंखला ने आध्यात्मिक जगत में एक अभिनव क्रान्ति का सूत्रपात किया है। एक जैनाचार्य द्वारा उत्तराध्ययन की भांति सनातन परंपरा के श्रद्धास्पद ग्रन्थ गीता की भी साधिकार सटीक व्याख्या करना न केवल आश्चर्यजनक है बल्कि प्रेरक भी है।इसीलिए मानवता का यह मसीहा पंथ और सम्प्रदाय की सीमा रेखाओं से बाहर जन जन में पूजनीय , वंदनीय और असीम लोकप्रिय है।
आचार्य महाश्रमण भगवान महावीर , बुद्ध , गांधी , आचार्य भिक्षु , आचार्य तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञ की आलोकधर्मी परंपरा का नव्य नूतन विस्तार है। ‘ रहें भीतर जीएं बाहर ‘ — उनके आध्यात्मिक चिंतन का नवनीत है। वे दृष्टा भाव से बाहर के लोक में विचरण करते हुए भी प्रतिपल अंतर्यात्रा में प्रवहमान रहने वाले विलक्षण महामानव हैं। चरैवेति चरैवेति चरन वे मधु विंदति — उनके जीवन का महान सूत्र बन गया है। मुनित्व के प्रति अप्रमत्त चेतना उनकी महानता का उज्जवलतर पहलु है। वे साधना का निष्कर्ष यह मानते हैं कि मनुष्य असली स्वरूप को — आत्म तत्व को जान पाये और फिर उसे साधने की दिशा में प्रयाण पथ पर गतिमान बने। आचार्य महाश्रमण दार्शनिक , चिन्तक और मितभाषी प्रवचन कार तो हैं ही उससे कहीं अधिक वे योगीराज और प्रबल पुरुषार्थी साधक हैं। अनेकांतवाद के जरिए युगीन समस्याओं का समाधान किया जा सकता है — ऐसी उनकी प्रबल अवधारणा है। आपके अवतरण से दिग्भ्रातं मानवता को आशा की नयी किरण जैसे भिल गयी है । आपश्री के षष्ठीपूर्ति के पावन प्रसंग पर ह्रदय से यही मंगलमनीषा करता हूं कि आप युग युगों तक तेरापंथ आम्नाय का नेतृत्व करते हुए दुःखी मानव जाति को त्राण प्रदान करते रहें ।
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विजय सिंह नाहटा