“आ तो सुरगाँ नैं सरमावै,ईं पर देव रमण नैं आवै,ईं रो जस नर नारी गावै, धरती धोराँ री” जैसा सुप्रसिध्द राजस्थानी गीत लिखने वाले महाकवि स्व.कन्हैया लाल सेठिया का यह जन्म शताब्दी वर्ष के बाद दूसरा वर्ष है। महाकवि सेठिया का जन्म एक सौ दो वर्ष पूर्व 11 सितम्बर 1919 को सुजानगढ़ (चुरू) में हुआ। उनके पिता का नाम छगन मल सेठिया और माता का नाम मनोहरी देवी था। कन्हैया लाल सेठिया को जन्म के समय से ही अपनी मातृभूमि राजस्थान से बहुत लगाव था क्योंकि उस समय राजस्थान को अन्य प्रदेशों की तुलना में पिछड़ा हुआ माना जाता था इसलिये यहाँ की गौरवपूर्ण संस्कृति और शौर्य गाथाओं से पूरे देश को परिचित कराने और राजस्थान के सुसुप्त जन-जीवन को पुनर्जागृत करने हेतु उन्होंने साहित्य का मार्ग चुना।
एक प्रकार से राजस्थान का “राज्य-गीत” बन चुके “धरती धोराँ री” गीत में जिस प्रकार महाकवि सेठिया ने यहाँ के विभिन्न जिला-क्षेत्रों की सांस्कृतिक-भौगोलिक विशेषताओं का वर्णन किया है वहीं “पीथल और पाथळ”
कविता में “पीथल के खमता बादळ री जो रोकै सूर उगाळी नैं,सिंहा री हाथळ सह लेवै बा कूख मिली कद स्याळी नैं” लिख कर यहाँ की शौर्य गाथा को भी ओजस्वी वाणी प्रदान की।
तत्कालीन स्वतंत्रता-संग्राम में पूरे मनोयोग से भाग लेते हुये उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्यवाद और राजस्थान के सामन्तवाद के विरुध्द दोहरा संघर्ष किया और कृषि भूमि पर सामन्तों-जागीरदारों के अधिकार को हटवा कर वास्तविक कृषकों का अधिकार करवाने हेतु “कुण ज़मीन रो धणी” जैसी कविता के माध्यम से एक वैचारिक प्रतिबध्दता की अलख जगाई |उनकी काव्य-भाषा में किसान के दु:ख-दर्द और मेहनत का अनूठा चित्रण मिलता है “हाड़ मांस चाम गाळ,खेत म्हैं पसेव सींच,लू लपट ठण्ड मेह सै सवै दांत भींच,फाड़ चौक कर करै, जोतणी र बोवणी” और फिर इस स्थिति को सामन्तों के ऐश्वर्य से तुलना करते हुये कवि स्वयं से और समाज से पूछता है”बो ज़मीन रो धणी क ओ ज़मीन रो धणी?”
कविवर सेठिया जी को उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिये 1988 में ज्ञानपीठ का मूर्तिदेवी पुरस्कार तथा 2004 में साहित्य अकादमी एवं भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया। 1976.में राजस्थानी भाषा की काव्यकृति “लीलटाँस” के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार,1983 में साहित्य अकादमी,उदयपुर के सर्वोच्च सम्मान “साहित्य मनीषी” और हिन्दी साहित्य सम्मेलन,प्रयाग द्वारा ‘साहित्य वाचस्पति” सम्मान से अलंकृत महाकवि सेठिया को साहित्य के अतिरिक्त स्वतंत्रता सेनानी,समाज सुधारक,चिन्तक और दार्शनिक के रूप में भी लगभग पचासों सम्मान प्राप्त हुये हुये थे।
राजस्थानी काव्यकृति “सबद” के लिये उन्हें राजस्थानी अकादमी का सर्वोच्च पुरस्कार “सूर्य मल्ल मीसण पुरस्कार” भारतीय भाषा परिषद,कोलकाता द्वारा “सतवाणी” के लिये महत्त्वपूर्ण “टाटिया सम्मान” तथा 1992 में राजस्थान सरकार द्वारा स्वतंत्रता सेनानी के रूप में ताम्रपत्र प्रदान किया गया तथा 1997 में लखोटिया पुरस्कार प्रदान किया गया। 1998 में उनके 80वें जन्मदिवस पर तत्कालीन शिक्षा मंत्री प्रताप चन्द्र चुन्दर की अध्यक्षता में प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर द्वारा स्वयं उन्हें सम्मानित किया गया।
महाकवि सेठिया ने राजस्थानी भाषा में रमणिया रा सोरठा,गळगचिया,मींझर,लीलटाँस,धर कूँचां धर मजलां,मायड़ रो हेलो,सबद,सतवाणी और दीठ सहित लगभग पन्द्रह कविता संग्रह तथा हिन्दी में वनफूल,अग्निवीणा,दीपकिरण,मेरा युग,प्रतिबिम्ब,आज हिमालय बोला,खुली खिड़कियाँ चौड़े रास्ते,मर्म,प्रणाम,निर्ग्रन्थ,वामन विराट और श्रेयस सहित लगभग बीस कृतियों की रचना एवं सम्पादन किया। 11 नवम्बर 2008 को 90 वर्ष की उम्र में मातृभूमि के लाडले सपूत महाकवि सेठिया का कोलकाता में निधन हुआ।
कहा जा सकता है कि महाकवि कन्हैया लाल सेठिया राजस्थान की मरुधरा के सच्चे रत्न थे जिन्हें राजस्थान का “राज्य कवि” और उनके द्वारा रचित गीत “धरती धोरां री” को “राज्य गीत” की श्रेणी में रखा जाना उनके प्रति हमारी सच्ची श्रध्दांजलि होगी। उन्होंने न केवल राजस्थानी भाषा वरन हिन्दी में भी उच्चस्तरीय रचनायें लिखीं |कविवर सेठिया मौन रह कर रचना करने वाले विद्वान थे जिन्होंने लिखा कि “मौन प्रार्थनायें जल्दी पहुँचती हैं/ईश्वर तक/क्योंकि मुक्त होती हैं वे/शब्दों के बोझ से”
-कन्हैयालाल सेठिया
जीवन वाड्मय
कन्हैयालाल सेठिया जी जन्म 11 सितम्बर, 1919 जन्म भूमि सुजानगढ़, चुरू, राजस्थान मृत्यु11नवम्बर, 2008 अभिभावक छगनमलजी सेठिया तथा मनोहरी देवी संतान दो पुत्र- जयप्रकाश, विनयप्रकाश; एक पुत्री- सम्पत देवी दूगड़।
मुख्य रचनाएं
रमणियां रा सोरठा, लीलटांस, वनफूल, अग्णिवीणा, मेरा युग, खुली खिड़कियां चौड़े रास्ते, ‘पाथल व पीथल’ आदि।भाषाहिन्दी, राजस्थानी, उर्दू विद्यालय राजस्थान विश्वविद्यालय शिक्षा बी.ए.पुरस्कार-उपाधि’पद्म श्री’, ‘डॉ. तेस्सीतोरी स्मृति स्वर्ण पदक’, ‘सूर्यमल मिश्रण शिखर पुरस्कार’, ‘पृथ्वीराज राठौड़ पुरस्कार’, ‘मूर्तिदेवी साहित्य पुरस्कार’ आदि।
1942 में जब महात्मा गाँधी ने ‘करो या मरो’ का आह्वान किया, तब कन्हैयालाल जी की ‘अग्निवीणा’ प्रकाशित हुई, जिस पर बीकानेर राज्य में इन पर राजद्रोह का मुक़दमा चला और बाद में राजस्थान सरकार ने इनको स्वतंत्रता-संग्राम सेनानी के रूप में सम्मानित भी किया।
कन्हैयालाल सेठिया
जन्म- 11सितम्बर, 1919, चुरू, राजस्थान; मृत्यु- 11 नवम्बर, 2008) आधुनिक काल के प्रसिद्ध हिन्दी व राजस्थानी लेखक थे। इनकी सर्वाधिक प्रसिद्ध काव्य रचना ‘पाथल व पीथल’ है।[१] राजस्थान में सामंतवाद के ख़िलाफ़ इन्होंने जबरदस्त मुहिम चलायी थी और पिछड़े वर्ग को आगे लाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी, समाज सुधारक, दार्शनिक तथा राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के कवि एवं लेखक के रूप में कन्हैयालाल सेठिया को अनेक सम्मान, पुरस्कार एवं अलंकरण प्राप्त हुए थे। भारत सरकार द्वारा इन्हें ‘पद्म श्री’ से भी सम्मानित किया जा चुका है।
- जन्म तथा शिक्षा
कन्हैयालाल सेठिया का जन्म 11 सितम्बर, 1919 को राजस्थान के चुरू ज़िले में सुजानगढ़ नामक स्थान पर हुआ था। इनके पिता का नाम छगनमलजी सेठिया था तथा माता मनोहरी देवी थीं। कन्हैयालाल जी की प्रारम्भिक पढ़ाई कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में हुई। स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़ने के कारण कुछ समय के लिए इनकी शिक्षा बाधित भी हुई, लेकिन बाद में इन्होंने राजस्थान विश्वविद्यालय से बी.ए. स्नातक की उपाधि प्राप्त की। दर्शन, राजनीति और साहित्य इनके प्रिय विषय थे।
विवाह
वर्ष 1937 में कन्हैयालाल सेठिया जी का विवाह धापू देवी के साथ हुआ। इनके दो पुत्र- जयप्रकाश तथा विनयप्रकाश और एक पुत्री सम्पत देवी दूगड़ हैं। - साहित्य चिंतन
कन्हैयालाल सेठिया के समग्र साहित्य में मूल्य बोध है। उनका व्यक्तिगत चिंतन यथार्थवादी है। सत्य को वे क़रीब से महसूस करते थे। दर्शन उनके रोम-रोम में विराजमान था तो वहीं आम आदमी उनके हर वास-उच्छ्वास में निवास करता था। कवि को कन्हैयालाल सेठिया अनुभूति का माध्यम मात्र मानते थे। उनकी रचनाओं में एक दृिष्ट पाठक को मिलती है और पाठक स्वयंमेव उद्योग के प्रति उद्धत हो उठता है। कविवर सेठिया ने कवियों को उद्देश्य युक्त रचनाओं के सृजन की ओर प्रेरित करते हुए कहा है-
“रचना वा जिण में दिखै
सिरजणियै री दीठ
नहीं स बोझो सबद रो
लद मत कागद पीठ।”
रचनाएँ
कन्हैयालाल जी की अब तक हिन्दी में 18, उर्दू में 02 व राजस्थानी में 14 पुस्तकों का प्रकाशन हो चुका है। यदि सेठिया जी के सृजन दौर का क्रमिक अध्ययन किया जाए तो शुरुआत राजस्थानी ‘रमणियां रा सोरठां’ (विक्रम संवत 1997) से मानी जा सकती है। इनसे इतर ‘नीमड़ो’ राजस्थानी की लघु पुस्तिका है। ‘इरा’ में चुनी हुई कविताएं हैं तो वहीं ‘सप्त किरण’ संयुक्त प्रकाशन है। ‘परम वीर शैतानसिंह’, ‘जादूगर माओ’, ‘रक्त दो’, ‘चीन की ललकार’ आदि लघु कृतियाँ भी सेठियाजी की ही हैं। इन सबके अलावा कन्हैयालाल सेठिया की अनेक रचनाएं अप्रकाशित हैं तथा अनेक विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में बिखरी पड़ी हैं। उनकी कई रचनाएं विभिन्न भाषाओं में अनुवादित हो चुकी हैं।
राजस्थानी
रमणियां रा सोरठा, गळगचिया, मींझर, कूंकंऊ, लीलटांस, धर कूंचा धर मंजळां, मायड़ रो हेलो, सबद, सतवाणी, अघरीकाळ, दीठ, क क्को कोड रो, लीकलकोळिया एवं हेमाणी।
हिन्दी
वनफूल, अग्णिवीणा, मेरा युग, दीप किरण, प्रतिबिम्ब, आज हिमालय बोला, खुली खिड़कियां चौड़े रास्ते, प्रणाम, मर्म, अनाम, निर्ग्रन्थ, स्वागत, देह-विदेह, आकाशा गंगा, वामन विराट, श्रेयस, निष्पति एवं त्रयी।
उर्दू
ताजमहल एवं गुलचीं।
राजद्रोह का मुक़दमा
वर्ष 1942 में जब महात्मा गाँधी ने ‘करो या मरो’ का आह्वान किया, तब कन्हैयालाल सेठिया की कृति ‘अग्निवीणा’ प्रकाशित हुई, जिस पर बीकानेर राज्य में इनके ऊपर राजद्रोह का मुक़दमा चला और बाद में राजस्थान सरकार ने इनको स्वतंत्रता-संग्राम सेनानी के रूप में सम्मानित भी किया। महात्मा गाँधी की मृत्यु पर भी कन्हैयालाल जी की एक कृति प्रकाशित हुई थी। इसमें देश बंटवारे के दौरान हुई लोमहर्षक व वीभत्स घटनाओं से जुड़ी रचनाएं संग्रहीत हैं। इसके बाद 1962 में हिन्दी की कृति ‘प्रतिबिम्ब’ का प्रकाशन हुआ। इसका अंग्रेज़ी अनुवाद भी प्रकाशित हुआ है। इसकी भूमिका हरेन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय ने लिखी है
सम्मान एवं पुरस्कार
स्वतन्त्रता संग्रामी, समाज सुधारक, दार्शनिक तथा राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के कवि एवं लेखक के नाते कन्हैयालाल सेठिया को अनेक सम्मान, पुरस्कार एवं अलंकरण प्राप्त हुए, जिनमें प्रमुख हैं
1976 – राजस्थानी काव्यकृति ‘लीलटांस’ पर, साहित्य अकादमी, नई दिल्ली द्वारा राजस्थानी भाषा की सर्वश्रेष्ठ कृति के नाते पुरस्कृत।
1979 – हैदराबाद के राजस्थानी समाज द्वारा मायड़ भाषा की मान्यता हेतु संघर्ष के लिए सम्मानित। मायड़ भाषा को जीवन्त रखने की प्रेरणा दी।
1981 – राजस्थानी की उत्कृष्ट रचनाओं हेतु लोक संस्कृति शोध संस्थान, चूरू द्वारा ‘डॉ. तेस्सीतोरी स्मृति स्वर्ण पदक’ सम्मान प्रदत्त।
1982 – विवेक संस्थान, कोलकाता द्वारा उत्कृष्ट साहित्य सृजन के लिए ‘पूनमचन्द भूतोड़िया पुरस्कार’ से पुरस्कृत।
1983 – राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर द्वारा सर्वोच्च सम्मान ‘साहित्य मनीषी’ की उपाधि से अलंकृत। ‘मधुमति’ मासिक का श्री सेठिया की काव्य यात्रा पर विशेषांक एवं पुस्तक भी प्रकाशित।
1983 – हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग द्वारा ‘साहित्य वाचस्पति’ की उपाधि से अलंकृत।
1984 – राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर द्वारा अपनी सर्वोच्च उपाधि ‘साहित्य मनीषी’ से विभूषित।
1987 – राजस्थानी काव्यकृति ‘सबद’ पर राजस्थानी अकादमी का सर्वोच्च ‘सूर्यमल मिश्रण शिखर पुरस्कार’ प्रदत्त।
1988 – हिन्दी काव्यकृति ‘निर्ग्रन्थ’ पर भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली द्वारा ‘मूर्तिदेवी साहित्य पुरस्कार’ प्रदत्त।
1989 – राजस्थानी काव्यकृति ‘सत् वाणी’ हेतु भारतीय भाषा परिषद, कोलकाता द्वारा ‘टांटिया पुरस्कार’ से सम्मानित।
1989 – राजस्थानी वेलफेयर एसोशियेसन, मुंबई द्वारा ‘नाहर सम्मान’।
1990 – मित्र मन्दिर, कलकत्ता द्वारा उत्तम साहित्य सृजन हेतु सम्मानित।
1992 – राजस्थान सरकार द्वारा ‘स्वतन्त्रता सेनानी’ का ताम्रपत्र प्रदत्त कर सम्मानित।
1997 – रामनिवास आशादेवी लखोटिया ट्रस्ट, नई दिल्ली द्वारा ‘लखोटिया पुरस्कार’ से विभूषित।
1997 – हैदराबाद के राजस्थानी समाज द्वारा मायड़ भाष की सेवा हेतु सम्मानित।
1998 – 80वें जन्म दिन पर डॉॅॅ. प्रतापचन्द्र चन्दर की अध्यक्षता में पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर तथा अन्य अनेक विशिष्ट व्यक्तियों द्वारा सम्मानित।
2004 – राजस्थानी भाषा संस्कृति एवं साहित्य अकादमी, बीकानेर द्वारा राजस्थानी भाषा की उन्नति में योगदान हेतु सर्वोच्च सम्मान ‘पृथ्वीराज राठौड़ पुरस्कार’ से सम्मानित।
2004 – ‘पद्म श्री’ – भारत सरकार द्वारा
2005 – राजस्थान फाउन्डेशन, कोलकाता चेप्टर द्वारा ‘प्रवासी प्रतिभा पुरस्कार’ से सम्मानित।2005 – ‘राजस्थान विश्वविद्यालय’ द्वारा पी.एच.डी. की मानद उपाधि प्रदत्त।
धरती धोरां री
धरती धोरां री
आ तो सुरगां नै सरमावै,
ईं पर देव रमण नै आवै,
ईं रो जस नर नारी गावै,
धरती धोरां री !
सूरज कण कण नै चमकावै,
चन्दो इमरत रस बरसावै,
तारा निछरावल कर ज्यावै,
धरती धोरां री !
काळा बादलिया घहरावै,
बिरखा घूघरिया घमकावै,
बिजली डरती ओला खावै,
धरती धोरां री !
लुळ लुळ बाजरियो लैरावै,
मक्की झालो दे’र बुलावै,
कुदरत दोन्यूं हाथ लुटावै,
धरती धोरां री !
पंछी मधरा मधरा बोलै,
मिसरी मीठै सुर स्यूं घोलै,
झीणूं बायरियो पंपोळै,
धरती धोरां री !
नारा नागौरी हिद ताता,
मदुआ ऊंट अणूंता खाथा !
ईं रै घोड़ां री के बातां ?
धरती धोरां री !
ईं रा फल फुलड़ा मन भावण,
ईं रै धीणो आंगण आंगण,
बाजै सगळां स्यूं बड़ भागण,
धरती धोरां री !
ईं रो चित्तौड़ो गढ़ लूंठो,
ओ तो रण वीरां रो खूंटो,
ईं रे जोधाणूं नौ कूंटो,
धरती धोरां री !
आबू आभै रै परवाणै,
लूणी गंगाजी ही जाणै,
ऊभो जयसलमेर सिंवाणै,
धरती धोरां री !
ईं रो बीकाणूं गरबीलो,
ईं रो अलवर जबर हठीलो,
ईं रो अजयमेर भड़कीलो,
धरती धोरां री !
जैपर नगर्यां में पटराणी,
कोटा बूंटी कद अणजाणी ?
चम्बल कैवै आं री का’णी,
धरती धोरां री !
कोनी नांव भरतपुर छोटो,
घूम्यो सुरजमल रो घोटो,
खाई मात फिरंगी मोटो
धरती धोरां री !
ईं स्यूं नहीं माळवो न्यारो,
मोबी हरियाणो है प्यारो,
मिलतो तीन्यां रो उणियारो,
धरती धोरां री !
ईडर पालनपुर है ईं रा,
सागी जामण जाया बीरा,
अै तो टुकड़ा मरू रै जी रा,
धरती धोरां री !
सोरठ बंध्यो सोरठां लारै,
भेळप सिंध आप हंकारै,
मूमल बिसर्यो हेत चितारै,
धरती धोरां री !
ईं पर तनड़ो मनड़ो वारां,
ईं पर जीवण प्राण उवारां,
ईं री धजा उडै गिगनारां,
धरती धोरां री !
ईं नै मोत्यां थाल बधावां,
ईं री धूल लिलाड़ लगावां,
ईं रो मोटो भाग सरावां,
धरती धोरां री !
ईं रै सत री आण निभावां,
ईं रै पत नै नही लजावां,
ईं नै माथो भेंट चढ़ावां,
भायड़ कोड़ां री,
धरती धोरां री ।