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Saturday, November 23

चांद छू लेने की हूंस: मोनिका गौङ

चिलचिलाती धूप से ज्यादा
पेट की आग के खातिर
यूनिफार्म में तैनात
महिला ट्रैफिक हवलदार
क्रम से चलाती है
शहर का ट्रैफिक
मन की पगडंडियों में भटकती सरपट
कसमासाती अंतर्द्वंदों में
किस तरह रखे पंक्तिबद्ध
गृहस्थी के खर्चो का गाड़ा
जिम्मेदारियों की लारी
चेन उतरी हुई सपनो की साइकिल
चारों ओर से बरसती धूप -घाम में
सड़क के एन मध्य
भीड़ से लडालूम चौराहे पर
खड़ी है निपट एकाकी
ज़िन्दगी के महाभारत में
अभिमन्यु की भांति
बदलती भूमिकाओ, उम्मीदों
उचक कर् चाँद छू लेने की हूंस ने
ला पटका
आंगन से आसमान की जगह
ज़िन्दगी के चौरास्ते
धूल धूसरित हो गयी
पैरों पर खड़े होने की
रूमानी कल्पना
स्वप्नों के खंडहर पर
वक़्त का खारा जहर सत्य
बन गया मजबूरी
कोई भी नोकरी करने की
ट्रैफिक हवलदार होना
सोख रहा
अंतस का अमृत
फिर भी
दो बाई दो के स्कार्फ से
माथा ढके
करती है प्रयास
अपनी नजाकत बचाने की
ट्रैफिक हवलदार
दो बाई दो के स्कार्फ में
अंवेर रही है
अपना स्त्रीत्व
शहर के ट्रैफिक को
लाइन से चलाते हुई

– मोनिका गौङ

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