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Saturday, November 23

एक था कार्टूनिस्टों का चौक रेत के अथाह समंदर के बीच अठखेलियां करता एक शहर: प्रभात गोस्वामी

बीकानेर राजस्थान के उत्तर-पश्चिम में बसे इस शहर का एक मोहल्ला गोस्वामी चौक है। बचपन यहीं बीता। यहां के अधिकांश लोग संगीत, कला, संस्कृति से जुड़े हुए थे। पर व्यंग्य चित्रकला की वजह से भी इसकी पहचान कायम हुई। एक समय था जब चौक के हर घर में एक कार्टूनिस्ट हुआ करता था। हास्य-व्यंग्य का गज़ब का बोध था। होली पर पहले दीवारों पर भित्तिचित्रों के रूप में कार्टून उकेरे जाते थे। गुदगुदी करते हास्यमयी दोहों ,कविताओं, कुंडलियों ,पैरोडियों, लघु कथाओं के साथ ‘हुड़दंग’, ‘हुल्लड़’, जैसी पत्रिकाओं का प्रकाशन होता था। इन पत्रिकाओं में भी कार्टून्स हुआ करते थे। एक दौर ऐसा भी था जब लोग व्यंग्यात्मक कविताओं में सवाल-ज़वाब भी किया करते थे। लेकिन ये सब गोस्वामी चौक की सीमा पार नहीं कर पाए। चौक से राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर हमारे कार्टूनिस्टों ने ही अपनी ज़ोरदार उपस्थिति दर्ज कराई।
गोस्वामी चौक के पहले कार्टूनिस्ट पंकज गोस्वामी से प्रेरित होकर किशोर से युवा वर्ग के कार्टूनिस्टों ने उस दौर में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई। इनमें सुधीर तैलंग, जो देश के ख्यातिप्राप्त कार्टूनिस्ट बने, सुधीर गोस्वामी, जिनके नाम के पीछे गोस्वामी होने की वजह से गफलत होती थी। तब सुधीर ने तैलंग लिखना शुरू किया। पुर्नेंदु-शशि कार्टूनिस्टों की जोड़ी उन दिनों फिल्म लेखक सलीम-जावेद से प्रभावित होकर बनी। हरिनारायण, अवनीश, संकेत, अनूप, अजय, सुशील, विनीत, रवि,विकास, अशोक भट्ट और न जाने कितने ही कार्टूनिस्ट हुए। सारे लोग राज्य स्तर पर राजस्थान पत्रिका, इतवारी पत्रिका, राष्ट्रदूत, जलतेदीप और राष्ट्रीय स्तर पर दैनिक हिन्दुस्तान, नवभारत टाइम्स, साप्ताहिक हिंदुस्तान, दीवाना, तेज़, मधु मुस्कान, बाल भारती सहित विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में छपते रहे। मेरे फूफाजी शंकर राव तैलंग (रायपुर) भी सुपरिचित कार्टूनिस्ट थे। गोस्वामी चौक के दामाद होने की वजह से उन्हें भी हमारी सूचि में प्रमुखता से जोड़ा गया था।
खाकसार के भी करीबन अस्सी कार्टून्स विभिन्न स्तर से प्रकाशित हुए। कुछ रोचक किस्से भी याद आ रहे हैं। सन 1970-71 की बात होगी। मैं अपने बालसखा सुधीर तैलंग के साथ कार्टून बनाने का नियमित अभ्यास किया करता था। सुधीर का पहला कार्टून दैनिक हिंदुस्तान में छप चुका था। तब उसकी उम्र दस साल थी। मैं पहले कार्टून के प्रकाशन के इंतजार में था। उन दिनों लिफाफे में पच्चीस पैसे का टिकट लगा करता था। मेरे पास मात्र पंद्रह पैसे थे। छोटे भाई से कहा,’ दस पैसे देदे.’ पर उसने कहा कि उसका नाम जोड़ने पर ही दे सकता है। मरता क्या नहीं करता। मैंने पहली बार प्रभात-अशोक के नाम से कुछ कार्टून्स नवभारत टाइम्स, दिल्ली में भेजे। एक कार्टून स्वीकृत हुआ और छपा। दस रूपए पारिश्रमिक मिला . फिर मुझे भाई की ज़रूरत नहीं हुई। इसी तरह से पूर्णेंदु-शशि में एक चित्र बनाता था और दूसरा सटायर करता था।
इसी तरह एक बार विनीत गोस्वामी के दिमाग में एक सटायर खलबलाया। उसे चित्र बनाना नहीं आता था। उसने अपने पड़ोसी सुशील से कहा कि चित्र तुम बना दो। फिर शर्त लगाई गई कि उसे (सुशील) भी श्रेय मिलना चाहिए। तब साप्ताहिक हिंदुस्तान में उनका कार्टून छपा, जिसमें लिखा गया व्यंग्य विनीत चित्र सुशील गोस्वामी। उन दिनों पोस्टमैन का सभी साथ मिलकर इंतज़ार किया करते थे। कभी स्वीकृति-अस्वीकृति का तो कभी पारिश्रमिक का। चौक में वापस आने वाले लिफाफे का सबके सामने पोस्टमार्टम किया जाता था। स्वीकृति होने पर मिठाइयां तक बांटी गईं थीं। अस्वीकृति पर मंथन होता था। एक रोचक किस्सा खुद भाई अवनीश ने सुनाया। एक दिन वह अपने मामा त्रिभुवन गोस्वामी के घर गया था। वहां उसने देखा कुछ कार्टून्स कार्डशीट पर पेन्सिल से बनाए हुए पड़े थे। अवनीश की नियत डोली और उसने वह कार्टून्स चुरा लिए। घर आकर काली स्याही से उनको दुरुस्त किया और भेज दिए। उनमें एक कार्टून छपा भी।
लेकिन इस होड़ा-होड़ में पंकज गोस्वामी, सुधीर तैलंग, सुधीर गोस्वामी और बाद में सुशील गोस्वामी ही ऐसे कार्टूनिस्ट थे जो निरंतर इस कला से जुड़े रहे। पंकज भाईसाहब सरकारी सेवा में आ गए। व्याख्याता बन गए। सुधीर तैलंग आठवें दशक में टाइम्स ऑफ़ इंडिया, बम्बई में प्रशिक्षु व्यंग्य चित्रकार नियुक्त हुए। एक साल के प्रशिक्षण के बाद सुधीर पहले नवभारत टाइम्स में नियुक्त हुए। यहां से होते हुए इण्डियन एक्सप्रेस और फिर हिंदुस्तान टाइम्स में आए। देखते ही देखते वह देश के सुपरिचित कार्टूनिस्ट बन गए।
सुधीर तैलंग को देश-विदेश में अनेक पुरस्कारों ,सम्मानों से सम्मानित किया गया। उसे भारत सरकार द्वारा वर्ष 2004 में पद्मश्री से अलंकृत किया गया। उसके अनेक संकलन निकले। इंडियन एक्सप्रेस,एशियन एज सहित अनेक बड़े अखबारों में राजनीतिक व्यंग्य चित्रकार सुधीर मात्र 56 साल की उम्र में हमें सदा के लिए छोड़कर चले गए। पर आज भी जब देश के नामचीन कार्टूनिस्टों की चर्चा होती है तो सुधीर तैलंग का नाम पूरे सम्मान के साथ लिया जाता है। मेरे लिए तो यह वाकई एक बड़ी क्षति थी। मैंने अपना पहला व्यंग्य संग्रह- “बहुमत की बकरी”, सुधीर तैलंग को समर्पित किया। व्यंग्य का मुट्ठीभर संस्कार उसी के साथ पाया था। सुधीर गोस्वामी ने अमर उजाला,राजस्थान पत्रिका,सरिता जैसी पत्रिकाओं के साथ अनेक समाचार पत्रों में काम किया। आज भी वह सरिता पत्रिका के साथ दैनिंक जागरण के लिए कार्टून बना रहा है। सुशील गोस्वामी ने भी राजस्थान पत्रिका, आउट लुक सहित अनेक समाचार पत्र-पत्रिकाओं से जुड़े रहे . कालांतर में सुशील गोस्वामी विज्ञापन की दुनिया में चले गए। जहाँ आज भी सक्रिय हैं। फिल्म सेंसर बोर्ड के सदस्य बने। फिल्मों भी से जुड़ाव रहा। नवें दशक में कई अख़बारों में गोस्वामी चौक के कार्टूनिस्टों पर आलेख छपे। सुप्रसिद्ध टीवी पत्रकार विनोद दुआ ने तब गोस्वामी चौक के कार्टूनिस्टों पर एक कार्यक्रम तैयार किया था, जिसका प्रसारण दूरदर्शन पर हुआ था। किस तरह से कच्ची-पक्की उम्र के कलाकारों को एक मुकाम हासिल हुआ . कार्टून कला की एक कहानी बनी,चर्चित हुई। गोस्वामी चौक को देश में कार्टूनिस्टों का चौक कहा गया। आज बीएस कुछ स्मृतियाँ ही शेष हैं।

– प्रभात गोस्वामी, मुम्बई

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