Welcome to Abhinav Times   Click to listen highlighted text! Welcome to Abhinav Times
Thursday, November 21

टिकैत की भारतीय किसान यूनियन में दो फाड़ : BKU अराजनैतिक नाम से नया संगठन बनाया राकेश टिकैत बोले. ये सबकुछ सरकार के इशारे पर

चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत का भारतीय किसान यूनियन यानी ठज्ञन् उनकी पुण्यतिथि पर ही दो धड़ों में बंट गया। राष्ट्रीय अध्यक्ष नरेश टिकैत और प्रवक्ता राकेश टिकैत अलग.थलग पड़ गए हैं। राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राजेश सिंह चौहान के नेतृत्व में नई भाकियू ;अराजनैतिकद्ध बनाई गई है। खुद राजेश सिंह चौहान इसके राष्ट्रीय अध्यक्ष बने हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि नरेश टिकैत और राकेश टिकैत राजनीति करने वाले लोग हैं। विधानसभा चुनाव में एक दल का प्रचार करने के लिए कहा गया था।

इसके बाद मुजफ्फरनगर में राकेश टिकैत ने भी अपनी बात रखी। उन्होंने कहाए श्हमने मनाने की कोशिश की थी। मैं लखनऊ भी गया था। वे ;राजेश सिंहद्ध मान भी गए थेए फिर भी चले गए। लगता है कि ज्यादा प्रेशर था। सरकार अपनी मंशा में कामयाब हो गई। ये सबकुछ सरकार के इशारे पर हुआ है। कुछ लोगों के जाने से संगठन पर असर नहीं पड़ेगा।

पहले मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया था कि राकेश टिकैत को BKU से निकाल दिया गया है और उनके भाई नरेश टिकैत को अध्यक्ष पद से हटाया है। बाद में राजेश सिंह चौहान ने नया संगठन बनाने की ऑफिशियल जानकारी देकर इन चर्चाओं पर विराम लगा दिया।

बता दें कि 2 दिनों तक राकेश टिकैत लखनऊ में रहकर डैमेज कंट्रोल में जुटे थे, लेकिन वह सफल नहीं हुए। टिकैत का साथ छोड़ने वाले किसान नेता इस बात से खफा हैं कि यह संगठन अब किसानों के मुद्दों को छोड़कर राजनीति की तरफ जा रहा है।

मेरा काम राजनीति करना नहीं: राजेश सिंह
लखनऊ में राजेश सिंह चौहान ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की। उन्होंने कहा, ‘कार्यकारिणी के फैसले के बाद मूल भारतीय किसान यूनियन की जगह अब भारतीय किसान यूनियन (अराजनैतिक) का गठन किया गया है। मेरा 33 सालों का संगठन का इतिहास है। 13 महीने के आंदोलन के बाद जब हम घर आए तो हमारे नेता राकेश टिकैत राजनीतिक तौर पर प्रेरित दिखाई दिए। हमने उनसे बात की। हमने कहा कि हम अराजनैतिक लोग हैं। हम किसी भी राजनीतिक संगठन के सहयोग में नहीं जाएंगे।’

‘हमने देखा कि हमारे नेताओं ने कुछ राजनीतिक दल के प्रभाव में आकर एक दल के लिए प्रचार करने के लिए आदेशित किया। मैंने इसका विरोध किया, लेकिन उन्होंने मेरी बात नहीं सुनी। चुनाव के बाद कहा गया कि EVM की रक्षा करें। हमने कहा कि यह किसानों का काम नहीं है। मैंने उसका भी विरोध किया। यह राजनीतिक दल के लोगों का काम है।’

बीकेयू (अराजनैतिक) का अध्यक्ष हूं। हम 13 महीने आंदोलन के बीच रहे। आंदोलन में बराबर साथ दिया। न मैंने चंदे का रुपया छुआ। 33 साल में जितने भी हिंदुस्तान में आंदोलन हुए हैं। कंधे से कंधा मिलाकर लड़ा। अब मैं राजनीतिक दल में नहीं रहूंगा।

हमारा काम किसानों को सम्मान दिलाना है। राकेश टिकैत अपने संगठन के अध्यक्ष हैं। मैं कोई कॉन्ट्रोवर्सी नहीं क्रिएट नहीं करना चाहता हूं। यह नया संगठन है। टिकैत फैमिली को लेकर सवाल पूछने पर उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। बता दें कि राजेश सिंह चौहान यूपी के फतेहपुर जिले के रहने वाले हैं।

गन्ना संस्थान में बाबा टिकैत को किया याद
रविवार यानी आज बाबा महेंद्र सिंह टिकैत की 11वीं पुण्यतिथि है। इस मौके पर लखनऊ के गन्ना शोध संस्थान में कार्यक्रम हुआ। इसमें मूल भारतीय किसान यूनियन को बदलकर भारतीय किसान यूनियन (अराजनैतिक) बना दिया गया। कार्यक्रम का नाम – ‘किसान आंदोलन की दशा और दिशा’ रखा गया था।

असंतुष्टों को नहीं मना पाए राकेश टिकैत
असंतुष्ट किसान नेताओं को मनाने के लिए भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत शुक्रवार को ही लखनऊ पहुंच गए थे। वे हरनाम सिंह के आवास पर ठहरे। शुक्रवार देर रात तक असंतुष्ट गुट से समझौता वार्ता होती रही, लेकिन कोई समाधान नहीं निकला। इसके बाद शनिवार शाम टिकैत लखनऊ से मुजफ्फरनगर के लिए वापस लौट गए, क्योंकि रविवार को मुजफ्फरनगर में महेंद्र सिंह टिकैत की पुण्यतिथि पर बड़ा कार्यक्रम था।

टिकैत का झुकाव राजनीति की तरफ होने से हैं नाराज
भाकियू के NCR अध्यक्ष मांगेराम त्यागी ने ‘दैनिक भास्कर’ से बातचीत में कहा कि संगठन का नेतृत्व बाबा टिकैत के आदर्शों से भटक गया है। बिजली, खाद, पानी के मुद्दों पर संघर्ष की बजाय ईवीएम की रक्षा करने में लग गया है, जो किसान संगठन का काम नहीं है। भाकियू अराजनीतिक था। कुछ दिन पहले लखनऊ के प्रमुख किसान नेता हरिनाम सिंह वर्मा ने भी भास्कर से बातचीत में इसी बात पर नाराजगी जताई थी कि राकेश टिकैत अब राजनीतिक होने लगे हैं।

1 मार्च 1987 को हुआ था भाकियू का गठन
1 मार्च 1987 को महेंद्र सिंह टिकैत ने किसानों के मुददे को लेकर भाकियू का गठन किया था। इसी दिन करमूखेड़ी बिजलीघर पर पहला धरना शुरू किया। इस धरने में हिंसा हुई, तो आंदोलन उग्र हो गया और पीएसी के सिपाही और एक किसान की गोली लगने से मौत हो गई। पुलिस के वाहन फूंक दिए गए। बाद में बिना हल के धरना समाप्त करना पड़ा। 17 मार्च 1987 को भाकियू की पहली बैठक हुई, जिसमें निर्णय लिया गया कि भाकियू किसानों की लड़ाई लड़ेगी और हमेशा गैर-राजनीतिक रहेगी।

Click to listen highlighted text!