Welcome to Abhinav Times   Click to listen highlighted text! Welcome to Abhinav Times
Friday, November 22

14 साल की उम्र में ही आजादी की लड़ाई में कूद पड़े चूरू के जन्मे ये स्वतंत्रता सेनानी, पढ़ें पूरी कहानी

अभिनव टाइम्स । सन् 1926 में चूरू जिले की तारानगर तहसील के छोटे से गांव ढिंगी (लांबा की ढाणी) मोहन राम लांबा के घर नारायण सिंह लांबा ने जन्म लिया था. मोहन राम के पांच पुत्र और तीन पुत्रियां है. नारायण सिंह तीसरी संतान थे. आठ भाई और बहनों में सबसे अलग ख्यालात के थे. छोटीसी उम्र में पिता मोहन राम का साया सिर से उठ गया था. साया उठ जाने के बाद नारायण सिंह को काफी संघर्षों का सामना करना पड़ा, फिर भी वे बेबाक रहकर अपने स्वतंत्र विचार और शोषण के खिलाफ आवाज उठाने में पीछे नहीं रहते थे और किसी भी परिस्थिति में अन्याय के खिलाफ कभी समझौता नहीं किया. 

उस समय शिक्षा का अभाव था. परिवार की आर्थिक स्थिति भी इतनी अच्छी नहीं थी इसलिए विद्यालय जाना तो बहुत दूर की बात थी उस समय हो रहे शोषण और अत्याचारों के खिलाफ व सामान्तवादी सरकार की खिलाफत करना बड़ा मुश्किल कठिन काम था, लेकिन नारायण सिंह लांबा शोषण और अत्याचारों के खिलाफ अपनी आवाज उठाते रहे. इसी का ही परिणाम है कि 14 वर्ष की छोटी सी उम्र में सामान्तवादी सरकार के अत्याचारों की खिलाफत करते हुए किसान आंदोलन का हिस्सा बनें और अपनी अहम भूमिका निभाई. 

किसान आंदोलन में जब उन्होंने भाग लिया तो वे मात्र 14 वर्ष की उम्र के थे. कुछ दिनों के बाद सादुलपुर में दुबारा किसान आंदोलन हुआ, जिसमें भी नारायण सिंह लांबा ने काफी बढ़-चढ़‌कर भाग लिया. 

किसान आंदोलन में अग्रणिय होने के कारण लांबा को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और उन्हें सजा सुनाकर बीकानेर जेल भेज दिया. सजा पूर्ण कर बीकानेर से रिहा होने के बाद भी लांबा यहां तक ही नहीं रुके. 

सन् 1944 में पंजाब रेजीमेंट में शामिल हुए. सेना में रहते हुए उन्होने द्वितीय विश्व युद्ध में भाग लिया. सन् 1945 में बर्मा में तैनात रहते हुए नारायण सिंह ने दुश्मनों के छक्के छुड़ाए. इसके बाद 1947 में उन्होंने डीएससी ज्वाइन की और पढ़ाई की तरफ अपना ध्यान दिया. सेना में रहते हुए पढ़ाई करके लांबा में मैट्रिक में अच्छे नंबरों से उतीर्ण हुए. सुबेदार के पद तक पदोन्नत होकर 1,981 में सेवा निवृत हुए. लांबा दो बार भारत के राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित होने का गौरव भी प्राप्त कर चुके थे. 

2 अक्टूबर 1987 को राजस्थान के तात्कालिन मुख्यमंत्री ने नारायण सिंह लांबा को ताम्र पत्र से नवाजा गया. उनके तीन पुत्र और एक पुत्री है. दो पुत्र सरकारी सेवा से सेवानिवृत हो चुके हैं और सबसे छोटा पुत्र निहाल सिंह लांबा सरकारी सेवा में कार्यरत है. 

पुत्र निहाल सिंह लांबा अपने पिताजी के पर्यावरण के प्रति लगाव से प्रेरित होकर 70 हजार से अधिक पेड़ सरकारी स्कूलों और सार्वजनिक स्थानों पर लगा चुके है और क्षेत्र में ‘वृक्ष मित्र’ के नाम से जाने जाते हैं. स्वर्गीय नारायण सिंह लांबा के तीन पोते और दो पोती हैं. 24 जनवरी 2018 को अंतिम सांस लेते हुए देवलोक गमन हो गया.

Click to listen highlighted text!