~संजय आचार्य वरुण
हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में हाल ही में सम्पन्न हुए चुनावों और उनके घोषित परिणामों के आधार पर यही निष्कर्ष निकलता है कि भारत की जनता को राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस स्वीकार नहीं है। पता नहीं, कांग्रेस का चश्मा लगाए रखने वाले लोग इस बात पर किस तरह प्रतिक्रिया करेंगे लेकिन पिछले चार विभिन्न चुनावों से यही देखने को मिल रहा कि जनता कांग्रेस नेतृत्व की परिपक्वता को लेकर आशंकित है।
राहुल गांधी थोड़े- थोड़े समय के अंतराल से अपने कच्चे- पक्के बयानों और भाषणों से जनता के मन में उनको स्वयं को लेकर बैठी हुई आशंका की पुष्टि कर देते हैं। पता नही, इतनी बड़ी पार्टी का कर्णधार और परिपक्व आयु का एक सुशिक्षित व्यक्ति बिना तैयारी और बिना सोचे- समझे लाखों लोगों के सामने ऐसी बातें किस तरह कह जाता है जो हास्यास्पद होती हैं। वे अपनी पार्टी और अपने राजनीतिक जीवन का एक विजन क्यों तैयार नहीं करते, जो उन्हें गम्भीर और जिम्मेदार नेता सिद्ध कर सके। भारत की जनता कम से कम पिछले 15 सालों से लगातार देख रही है कि उनकी राजनीतिक दृष्टि केवल मोदी और भाजपा के विरोध तक सीमित है।
न जाने राहुल गांधी को ये आभास क्यों नहीं हो रहा है कि उन्होंने इतने समय तक मोदी और भाजपा विरोध की राजनीति करके देख ली, जब इससे उन्हें कुछ भी हासिल नहीं हो रहा है तो उन्हें अपनी लाइन को बदलना चाहिए। वे देख रहे हैं कि उनकी वर्तमान की नीतियों से जनता उनके साथ नहीं आ रही है तो भी वे आंखें मीचे हुए वही करते जा रहे हैं, जो उनको ठीक लग रहा है। दिक्कत ये भी है कि उनकी पार्टी के दशकों का राजनीतिक अनुभव रखने वाले नेता भी अपनी बेतुकी बातों और बेहूदा बयानों से कांग्रेस जैसी सबसे पुरानी और प्रतिष्ठित पार्टी का बंटाधार कर रहे हैं। पुराने समय में जीत और हार को बहुत सहृदयता से स्वीकार किया जाता था और पराजय पर आत्मचिंतन करके उन कारणों की तलाश की जाती थी, जिनके चलते पार्टी हारती थी।
अब ये परम्परा तो बिल्कुल लुप्त हो गई है, खासतौर से कांग्रेस में। जहां हारे, वहां तंत्र की जीत हुई है और जहां स्वयं जीते, वहां लोकतंत्र की जीत हुई है। हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के परिणाम घोषित होने के बाद कांग्रेस के पवन खेड़ा ने बिल्कुल यही बयान दिया था। कांग्रेस पार्टी देश की प्रमुख राजनीतिक पार्टी है, उसके बड़े नेताओं की गैर जिम्मेदाराना बयानबाजी पार्टी को निरन्तर कमजोर कर रही है। देश पर शासन करने की आकांक्षा रखने वाली कांग्रेस को भीतर से अनुशासित होने की आवश्यकता है।